विधि का विधान - पाप और पुण्य का फल | Buddhist story
विधि का विधान - पाप और पुण्य का फल | Buddhist story | don't change the low of karma
नमस्कार दोस्तों, Best Life Hindi चैनल में आपका दिल से स्वागत है, दोस्तो, सुख और आनंद मनुष्य के भीतर ही निवास करता है लेकिन मनुष्य उसे बाहर की दुनिया में ढूंढता है, किसी और इंसान में ढूंढता है किसी और की जिंदगी में ढूंढता है या अपने भविष्य में ढूंढता है,वह पूरी जिंदगी उस सुख को ढूंढने के लिए उस सुख को हासिल करने के लिए भटकता रहता है, लेकिन वह सुख उसे बाहर कहीं नहीं मिलता क्योंकि वह सुख मनुष्य के भीतर ही छुपा हुआ है आप
जो कुछ भी जिंदगी में चाहते हैं उस चीज को पाने के लिए अगर आप कोशिश नहीं करोगे तो
उस चीज के ना मिलने पर और खो जाने पर आपको रोने का और अफसोस करने का कोई हक नहीं है
यह जिंदगी आपकी है यहां आपको जो कुछ भी चाहिए उसके लिए आपको खुद लड़ना होगा लोग
हमेशा दूसरों को दोष देते हैं कि उसकी वजह से मेरी जिंदगी खराब हो गई या मेरे
हालातों की वजह से मैंने जो जिंदगी में चाहा वह मुझे मिल नहीं पाया तो ना हालातों
को दोष दो ना लोगों को अगर आप जो चाहते हो उसे हासिल नहीं कर पाते इसकी पूरी
जिम्मेदारी सिर्फ आपकी है ना ही किसी और की इसीलिए जो कुछ भी आप जिंदगी में पाना
चाहते हैं उसके लिए आप खुद को लायक बनाएं और लायक बनने के लिए खुद पर मेहनत करना
कभी मत छोड़ना दोस्तों कर्म करो फल की चिंता मत करो इसका अर्थ क्या है आइए इस
कहानी के माध्यम से समझते हैं।
Gautam Buddha Motivational Story In Hindi.
यह बात बहुत ही पुरानी है है किसी राज्य में आदित्य
नाम के एक राजा का राज हुआ करता था राजा आदित्य बड़े धर्मात्मा व्यक्ति थे राजा की
एक बड़ी संस्कारी रानी थी जिसका नाम था शकुंतला देवी था वे दोनों पति-पत्नी भगवान
ब्रह्मा जी के बहुत बड़े भक्त थे ब्रह्मा जी की आराधना करने के लिए मंदिर जाना उनका
प्रतिदिन का नियम था राजा आदित्य धर्म पूर्वक अपने राज्य का संचालन कर रहे थे
उनके राज्य में कोई भी व्यक्ति दुखी नहीं था सारी प्रजा सुख और वैभव से संपन्न थी
चारों तरफ खुशियां ही खुशियां काफी वर्ष हुए परंतु राजा के यहां कोई संतान का जन्म
नहीं हुआ राजा की आयु ढलती जा रही थी लेकिन उनके घर पर अभी भी कोई बालक का जन्म
नहीं हुआ एक दिन की बात है राजा सुबह-सुबह अपनी पत्नी के साथ मंदिर की तरफ जा रहे थे
जब वे दोनों रास्ते से गुजर रहे थे तभी रास्ते में दो पति-पत्नी अपनी छोटी सी
दुकान में फुल बेच रहे थे वे दोनों इसी राज्य के थे जब उन दोनों ने सामने से राजा
को आते हुए देखा तो दोनों पति-पत्नी ने अपना मुंह फेर करर खड़े हो गए उन दोनों का
ऐसा व्यवहार देखकर राजा आदित्य को अच्छा नहीं लगा महाराज उस समय भगवान की पूजा
करने के लिए मंदिर जा रहे थे इसलिए उन दोनों को कुछ नहीं कहा लेकिन महल में
पहुंचने के बाद उन्होंने एक सैनिक को बुलाया और कहा कि तुम जाओ और उस फुल बेचने
वाले को बुलाकर लाओ मुझे उससे कुछ कुछ बात करनी है वह सैनिक तुरंत उस फुल बेचने वाले
के घर गया जिसने महाराज को देखकर मुंह फेर लिया था सैनिक ने उस व्यक्ति को पूरी बात
बताई और कहा कि महाराज तुम्हें अपने दरबार में बुला रहे हैं वह आदमी मन में विचार
करने लगा कि महाराज का आदेश है टाला तो नहीं जा सकता मुझे दरबार में जाना पड़ेगा
वह फुल बेचने वाला सैनिक के साथ राजा के दरबार की तरफ चल दिया जब वे दोनों महाराज
के दरबार में पहुंचे तब उस आदमी ने राजा को प्रणाम किया राजा कहने लगे आप मुझे एक
बात बताओ आज सुबह जब मैं भगवान ब्रह्मा जी के मंदिर के लिए जा रहा था तब तुम दोनों
पति-पत्नी ने मुझे देखकर अपना मुंह फेर लिया था ऐसा क्यों वह आदमी बड़ी निर्भीकता
से कहने लगा महाराज आप भले ही मुझे मृत्यु दंड दे दे तो भी मुझे कोई ऐतराज नहीं
परंतु मैं सिर्फ सत्य ही बोलूंगा महाराज आपके यहां तो बड़े-बड़े विद्वान और पंडित
हैं अगर मैं गलत बात बोलूं तो आप इनसे पूछिए जो कोई भी सुबह-सुबह आपका मुंह देख
लेता है उसका पूरा दिन खराब हो जाता है क्योंकि आप एक संतान हीन राजा हैं इसीलिए
मैंने आपको देखकर ही अपना मुंह फेर लिया था राजा आदित्य यह सुनकर बड़े अचंभित हुए।
MOTIVATIONAL STORY IN HINDI
मन ही मन वे विचार करने लगे यह आदमी बिल्कुल सही कहता है यदि किसी नगर के राजा
के यहां पुत्र नहीं है तो यह अच्छा नहीं है राजा ने उस आदमी को उसके घर भेज दिया
और मन ही मन विचा विचार करने लगे कि अब मुझे भगवान ब्रह्मा जी के पास जाकर पुत्र
प्राप्ति का यज्ञ करना चाहिए ऐसा विचार करके राजा अपने महल में गए और अपनी रानी
से कहने लगे हमारे नगर के लोग तो हमारा मुंह देखना भी पसंद नहीं करते क्योंकि हम
संतान हीन है चलिए भगवान ब्रह्मा जी के दरबार में चलते हैं और भगवान ब्रह्मा जी
से प्रार्थना करते हैं कि वे हमें पुत्र प्रदान करें यही विचार करके राजा आदित्य
और उन की रानी शकुंतला दोनों ब्रह्मा जी के मंदिर में गए और वहां जाकर उन्होंने
भगवान को प्रणाम किया और पुत्र प्राप्ति यज्ञ का आयोजन किया और बड़े धूमधाम से
यज्ञ किया अब यज्ञ पूरा होने के बाद वे दोनों वापस महल लौट आए काफी दिन हो गए थे
लेकिन अभी भी राजा रानी को पुत्र प्राप्ति नहीं हुआ यज्ञ करने के बाद भी उनके यहां
संतान ने जन्म नहीं लिया राजा का पुत्र प्राप्ति यज्ञ भी निष्फल हो गया इधर जो
यज्ञ करने वाला पंडित था वह सोचने लगा कि आज तक मैंने जितने भी यज्ञ करवाए हैं मेरा
कोई भी यज्ञ निष्फल नहीं हुआ लगता है राजा के भाग्य में ही खोट है राजा के भाग्य में
विधाता ने कोई संतान नहीं लिखी इसीलिए तो पुत्र प्राप्ति यज्ञ करने के बाद भी उनके
यहां कोई संतान का जन्म नहीं हुआ अगली सुबह जब वह राजा अपने महे की बाल्कनी में
खड़े थे तभी उन्होंने देखा कि एक महे के दरवाजे के पास सपाट पर एक संत बैठे हुए
हैं राजा ने तुरंत अपने सैनिकों को आदेश दिया कि बाहर जो महात्मा बैठे हुए हैं
उन्हें बड़े आदर सत्कार से अंदर लेकर आओ तभी वह सैनिक उस महात्मा के पास गया और
कहा कि महात्मा जी आपको हमारे राजा महल में बुला रहे हैं कृपया अंदर आने का कष्ट
करें महात्मा ने कहा ठीक है सैनिक उस महात्मा को अपने साथ लेकर राजा के पास लाए
और सैनिक वहां से चला गया और फिर राजा ने उस महात्मा को प्रणाम किया फिर महात्मा
कहने लगे राजन मैंने सुना है कि आपने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया था लेकिन
यज्ञ करने के बाद भी आपकी कोई संतान का जन्म नहीं हुआ राजन आप ऐसा समझिए कि मैं
यहां आपके इस दुख को दूर करने के लिए स्वयं ब्रह्मा जी ने मुझे भेजा है मैं
आपके इस दुख को समझता हूं और मैं जानता हूं कि आपकी संतान का जन्म ना होने का
क्या कारण है तब राजा कहने लगे बताइए महात्मा जी आखिर मेरे यहां संतान उत्पन्न
क्यों नहीं होती तब महात्मा जी कहने लगे राजन यह आपके पिछले जन्मों के कर्मों का
प्रभाव है जिसकी वजह से आपको एक रस्य का श्राप मिला था कि अगले सात जन्मों तक आपको
कोई संतान उत्पन्न नहीं हो सकती परंतु महाराज यदि आप चाहे तो मैं आपको उस श्राप
से मुक्ति दिला सकता हूं आपके घर में एक पुत्र पैदा हो सकता है राजा उसी संत
महात्मा के चरणों में गिर गए और कहने लगे महात्मा जी यदि आपने ऐसा कर दिया तो मुझ
पर आपका बहुत उपकार होगा तब महात्मा ने अपनी पोटली में से कुछ चावल निकाले और वह
राजा को देते हुए कहने लगे राजन आप इन चावलों की खीर बनाकर दोनों पति-पत्नी खाइए
उसके तीन महीने बाद अवश्य ही आपको संतान की प्राप्ति होगी परंतु एक बात हमेशा याद
रखिएगा कि इस पुत्र की आयु केवल 21 वर्ष तक होगी जिस दिन आपका बेटा 21 वर्ष का हो
जाएगा उसी दिन उसकी मृत्यु हो जाएगी यह सुनकर
राजा सोच में पड़ गए वह सोचने लगे चलो 21 वर्ष ही सही कम से कम संतान हीन होने का
कलंक तो मिट जाएगा राजा ने कहा जो भी हो महात्मा जी मुझे पुत्र प्रदान कर दीजिए
क्योंकि गुणवान मनुष्य थोड़े ही समय में बहुत कुछ कर जाता है जीवन भले ही थोड़ा हो
परंतु सत्य कर्मों से युक्त होना चाहिए उस महात्मा ने कहा ठीक है राजन आपको पुत्र
प्राप्ति अवश्य होगी की और फिर वह महात्मा राजा को चावलों की पोटली देकर वहां से चले
गए राजा ने यह सूचना अपने राज्य पुरोहित और महारानी को दी कि अब हमारे घर में बहुत
ही जल्द पुत्र का जन्म होने वाला है राजा और उनकी पत्नी ने उन चावलों की खीर बनाकर
खाई अब धीरे-धीरे समय व्यतीत हुआ और महात्मा के कहे अनुसार तीन महीने बाद रानी
शकुंतला गर्भवती हो गई यह देखकर राजा के घर में खुशी की लहर दौड़ गई राजा बहुत
प्रसन्न हुए पूरे राज्य में उत्सव मनाया गया महाराज के यहां पुत्र ने जन्म लिया
पूरे नगर में आतिशबाजी की गई और नगर को सजाया गया राजा ने अपने पुत्र का नाम
रुद्र प्रताप रखा राजा और रानी ने अच्छे से परवरिश करने लगे धीरे-धीरे रुद्र
प्रताप बड़ा होने लगा राजकुमार अपने पिता की ही तरह धर्मात्मा और ईश्वर का भक्त था
राजा का पुत्र बड़े तेजी से बड़ा होने लगा समय गुजरता चला गया अब वही राजा इस बात से
प्रसन्न रहने लगे कि उनके यहां एक पुत्र है अपने पुत्र के लाड़ प्यार में वह यह
बात भूल ही गए कि उनके पुत्र की आयु मात्र 21 वर्ष है जब उनके बेटे की आयु 18 वर्ष
हो गई तब उन्हीं दिनों की बात है कि एक दूसरे नगर के राजा सुमेर सिंह की एक
पुत्री थी वह देखने में बहुत ही सुंदर और अप्सराओं जैसी लगती थी वह एक परम सुंदर
कन्या थी जिसका नाम अवंतिका था वह कन्या बहुत ही दान धर्म थी बचपन से ही उसे अपने
माता-पिता द्वारा धर्म के संस्कार मिले थे वह प्रत्येक जीव पर दया करती थी सुबह उठकर
सबसे पहले वह पक्षियों को दाना डालती और अपने द्वार पर आए हुए किसी भी भिक्षु और
साधु संत को खाली हाथ नहीं लौटने देती थी वह हर भूखे को भोजन कराती थी कन्या
धीरे-धीरे बड़ी हुई तब उसके पिता सुमेर सिंह को पता चला कि पास के राजा आदित्य के
यहां उनका पुत्र रुद्र प्रताप है जो कि अब युवा हो चुका है और शादी के योग्य है तो
राजा ने सोचा कि ऐसी धर्मात्मा और तेजस्वी लड़की के साथ अपने पुत्र का विवाह करना
चाहिए राजा ने अपनी बेटी का रिश्ता राजा आदित्य के यहां पहुंचा दिया राजा आदित्य
ने विचार किया कि मेरे पुत्र की आयु मात्र 21 वर्ष है मुझे इसका विवाह कर देना चाहिए
अगर इसके यहां कोई पुत्र पैदा हो गया तो मेरा वंश आगे बढ़ता रहेगा ऐसा विचार करके
राजा आदित्य ने अपने राजकुमार का रिश्ता उस कन्या के साथ तय कर दिया कुछ ही समय के
बाद राजकुमारी अवंतिका का राजकुमार रूद्र प्रताप के साथ विवाह हो गया राजकुमारी
बहुत ही प्रतिबद्ध स्त्री थी उसका एक नियम था कि वह तब तक पूजन नहीं करती थी जब तक
किसी भूखे प्राणी को भोजन नहीं करवा देती थी धीरे-धीरे समय गुजरता गया इधर राजा
आदित्य को लगने लगा कि उनके पुत्र का अंतिम समय अब नजदीक आ रहा है क्योंकि उसकी
आयु अब पूरी होने वाली थी राजा तो पहले से ही जानता था क्योंकि महात्मा ने उसे सब
कुछ पहले ही बता दिया था कि आपके पुत्र की आयु सिर्फ 21 वर्ष की होगी राजा ने यह बात
किसी और को नहीं बताई थी धीरे-धीरे राजा की चिंता बढ़ती जा रही थी जैसे-जैसे
राजकुमार की उम्र बढ़ रही थी वैसे-वैसे राजा और भी ज्यादा चिंतित रहने लगे जब
राजकुमार की आयु में मात्र 10 दिन शेष रह गए तो राजा सोचने लगे कि अब मैं क्या करूं
मेरा बेटा तो 10 दिन के बाद मर जाएगा पुत्र मोह के कारण राजा बीमार रहने लगे वह
अपने बेटे की मृत्यु की बात सबको बताकर उन्हें चिंतित नहीं करना चाहते थे अब तो
राजा ने भोजन करना भी छोड़ दिया इधर जब वह दिन आ गया जिस दिन उनके पुत्र की मृत्यु
होनी थी उस दिन राजा सुबह से ही ईश्वर के ध्यान में डूब गए कहने लगे हे भगवान मुझे
पुत्र के जाने का दुख सहन करने की शक्ति दो विधि के विधान को तो कोई बदल नहीं सकता
वह तो होकर ही रहेगा उस राजकुमार रुद्र प्रताप की पत्नी प्रतिदिन भूखे गरीबों को
भोजन करवाती थी पक्षियों को दाना डालती और रोज की ही तरह वह अपने धर्म कर्म के कामों
में लगी हुई थी इधर यमलोक में यमराज ने देखा कि आज राजकुमार रूद्र प्रताप की
मृत्यु का दिन है तो यमराज ने तुरंत अपने दो दूतों को आदेश दिया कि जाओ और अब से एक
घंटे के बाद राजकुमार प्रताप के प्राण उसके शरीर से निकाल कर लाओ इसके लिए तुम
एक सर्प के पास जाकर उसे राजकुमार की मृत्यु के लिए प्रेरित करो क्योंकि
राजकुमार की मृत्यु सर्प के डसने से होगी जब उसे कोई सर्प डसेगा तभी हम उसके प्राण
हर सकते हैं यमराज ने अपने दूतों से कहा कि जाओ और शीघ्रता से यह काम करो एक घंटे
के अंदर ही राजकुमार के प्राणों को लेकर आना यमराज की आज्ञा पाते ही यमदूत
राजकुमार रुद्र प्रताप के प्राण लेने के लिए चल दिए उधर यमराज की माया से प्रेरित
होकर एक सर्प के मन में विचार आया कि आज मुझे राज महल में प्रवेश करना चाहिए और
वहां घूमना चाहिए देखना चाहिए कि राजमहल कैसा है वह सर्प घूमता घूमता राजमहल में
जा पहुंचा अब क्योंकि वह सर्प यमराज से प्रेरित था इसीलिए घूमता घूमता वह उस कक्ष
में जा पहुंचा जहां राजकुमार सोता था वह जाकर राजकुमार के बिस्तर में सिमटकर बैठ
गया यमराज के दोनों दूत राज महल के द्वार पर खड़े हो गए वे उस सम के पूरा होने का
इंतजार करने लगे सोचने लगे कि एक घंटे का समय कब होगा और कब वह सर्प राजकुमार को
डसेगा तब हम उसके प्राणों को लेकर यमलोक चले जाएंगे जब वे दोनों दूत यह विचार कर
रहे थे तभी क्या होता है कि एक दूसरे गांव में एक गरीब व्यक्ति रहता था उसने समय
रहते अपनी पुत्री का विवाह कर दिया था परंतु उसकी पुत्री का पति था वह बहुत ही
मदिरा पान करता था जुआ खेलता था और उसकी पत्नी को मारता भी था इसीलिए उस गरीब आदमी
की पुत्री हमेशा परेशान रहती थी उसका पति उसे मारता पीटता था और उसे घर से निकालना
चाहता था वह गरीब दंपति की पुत्री जब अपने पति के साथ कुछ समय तक रही तो वह गर्भवती
हो गई एक दिन उसने अपने पति की मारपीट से तंग आकर अपने पिता के घर में शरण ली और
कहने लगी पिताजी आज के बाद मैं अपने पति के घर नहीं जाऊंगी उसका पिता अब बूढ़ा हो
चुका था उसकी कुछ कमाई भी नहीं हो पाती थी इसीलिए वह बेचारा भिक्षा मांगकर गुजारा
करता था भिक्षा मांगकर वह तीनों प्राणियों का पेट पालता था समय पूरा हुआ तो उसकी
पुत्री ने एक बेटी को जन्म दिया अब उसे बहुत तेज भूख लग रही थी उसे भोजन की
आवश्यकता थी क्योंकि प्रसव काल की जो भूख होती है वह बहुत ही तेज होती है वह अपने
पिता से भोजन मांगने लगी परंतु बेचारा गरीब ब्राह्मण भोजन लाने के लिए आसपास के
गांव में गया लेकिन उसके रोज-रोज मांगने के कारण उसे लोग भिक्षा नहीं देते थे
गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है मनुष्य के लिए यह सबसे बड़ा अपमानजनक कष्ट है उस गरीब को
किसी ने भी भोजन नहीं दिया इधर उसकी लड़की भूख से बेचैन हो रही थी वह अपने पिता से
कहने लगी पिताजी मैं भूख के मारे मर जाऊंगी बिना भोजन किए हुए तीन दिन बीत
चुके हैं अगर आपको कुछ भिक्षा में मिला हो तो मुझे खाने को दीजिए नहीं तो मेरे प्राण
निकल जाएंगे तब वह बूढ़ा आदमी कहने लगा मैं अभी के अभी काशीनगर जा रहा हूं अगर
वहां से कुछ मिल जाता है तो मैं तुम्हें लाकर दूंगा मैं आज ही काशीनगर में जाकर
वहां के राजा के द्वार पर भिक्षा मांगूंगा ऐसा विचार कर वह बूढ़ा पिता चल दिया इधर
राजकुमार रूद्र प्रताप की पत्नी जो कि रोजाना गरीबों को भोजन करवाती थी उस दिन
महाराज बीमार पड़े हुए थे क्योंकि पुत्र मोह के कारण वह बहुत ही चिंता में थे वह
अपने कक्ष में थी इसीलिए आज भी अवंतिका ने गरीबों को भोजन नहीं करवाया परंतु उसने
अपने पति के लिए भोजन बनाया और भोजन का थाल सजाकर रख दिया कि जब उसका पति आएगा तो
उसे भोजन करवाएगी क्योंकि उसका पति अपने पिता के पास बैठा हुआ था उसकी सेवा कर रहा
था इधर वह बूढ़ा आदमी महल के द्वार पर आ गया उसे देखकर राजकुमार की पत्नी अवंतिका
को उस बूढ़ा आदमी पर दया आ गई बूढ़े आदमी ने उसकी तरफ देखा और कहने लगा बेटी यदि
मुझे इसमें कुछ भोजन मिल जाए तो तुम्हारा बड़ा ही उपकार होगा रानी ने देखा कि यह
कोई गरीब आदमी है और मुझसे भोजन मांग रहा है परंतु यह भोजन तो मैंने अपने पति के
लिए बनाया है अगर इसीने यह भोजन दे दूंगी तो मेरा पति क्या खाएंगे परंतु दूसरे ही
पल अवंतिका के मन में विचार आया कि मेरे पति तो अब भी आए भी नहीं है वे तो अपने
बीमार पिता के पास बैठे हैं तब तक मैं यह भोजन इस गरीब आदमी को दे देती हूं जब मेरे
पति वापस आएंगे तो उनके लिए मैं और भोजन बना दूंगी ऐसा विचार करके रानी अवंतिका ने
अपने पति के लिए बनाया हुआ भोजन उस गरीब ब्राह्मण को दे दिया भोजन का थाल लेकर वह
गरीब ब्राह्मण जल्दी से चलता हुआ अपने गांव की तरफ निकल गया भोजन लेकर वह अपने
घर पर आया क्योंकि उसकी पुत्री तीन दिन से भूखी थी अब उधर क्या हुआ कि महल में राजा
का पुत्र जो अपने पिता की देखभाल करने के बाद वापस अपने कक्ष में आ रहा था और दो
यमदूत महल के बाहर खड़े हुए थे उसके प्राण निकलने का का इंतजार कर रहे थे और वह नाग
बिस्तर पर लेटा हुआ राजकुमार का इंतजार कर रहा था बूढ़े आदमी ने भोजन लेकर अपनी
पुत्री को दे दिया इधर राजकुमार रूद्र प्रताप चलता चलता अपने कक्ष की तरफ जा रहा
था यमदूत सोच रहे थे कि अब कुछ ही क्षण बचे हैं जैसे ही वह नाग राजकुमार को डसेगा
तो हम उसके प्राण निकाल कर ले जाएंगे बूढ़े आदमी ने वह भोजन अपनी पुत्री को
दिया उसकी बेटी पूछने लगी पिताजी यह भोजन आप कहां से लाए हैं लड़की के पिता ने कहा
बेटी यह भोजन मुझे महारानी ने दिया है यहां के राजा की जो पुत्र वधु है वह बहुत
ही दयालु है उसने मुझ पर दया करके यह स्वादिष्ट भोजन मुझे दे दिया उस भोजन को
देखकर लड़की की आत्मा से आशीर्वाद निकलने लगा वह भगवान से प्रार्थना करने लगी हे
भगवान जिसने भी यह भोजन दिया है उसका सुहाग अमर हो जाए वह सदैव सौभाग्यवती बनकर
रहे जैसे ही भोजन का निवाला उस लड़की ने अपने मुंह में डा
उसकी आत्मा तृप्त हो गई और उसकी आत्मा से आशीर्वाद निकलने लगा कि उसका पति अमर होव
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| Gautam Buddha Motivational Story |
जाए इधर राजकुमार अपने कक्ष की तरफ जा रहा था यहां पर दूत खड़े हुए उसकी मृत्यु का
इंतजार कर रहे थे परंतु जैसे ही राजकुमार अपने बिस्तर पर जाने लगा तभी वहां एक
देवदूत प्रकट हुआ उसने अपनी शक्ति से नाक को बेहोश कर दिया नाक अब चल भी नहीं पा
रहा था उसमें आगे बढ़ने की बिल्कुल भी शक्ति नहीं थी नाक सोचने लगा यह मुझे क्या
हो गया अभी तो मैं इस राजकुमार को डसने आया था परंतु अब मैं चल भी नहीं पा रहा
हूं यह सब क्या हो रहा है असल में यह सब उस आशीर्वाद का प्रभाव था जो उस भूखी
लड़की ने दिया था जिसके कारण एक देवदूत वहां पर आकर खड़ा हो गया इसके बाद वह
देवदूत उन यम दूतों से कहने लगा तुम इस राजकुमार के प्राण नहीं ले जा सकते वह
कहने लगा जब किसी का श्राप लग सकता है तो आशीर्वाद भी लग सकता है राजकुमार और नाक
के बीच में आशीर्वाद के रूप में वह देवदूत आकर खड़ा हो गया है राजकुमारी का दान
मृत्यु को आगे नहीं बढ़ने दे रहा था यमदूत देवदूत से कहने लगे तुम यहां से लौट जाओ
और हमें हमारा काम करने दो हम इसके प्राण लेकर जाएंगे देवदूत कहने लगा नहीं ऐसा कभी
नहीं होगा मेरे रहते हुए यह बिल्कुल नहीं हो सकता क्योंकि मुझे स्वयं भगवान ब्रह्मा
जी ने भेजा है अब उन दोनों में बहस होनी शुरू हो गई दोनों में युद्ध शुरू हो गया
देवदूत की शक्ति ने यम दूतों को आगे बढ़ने से रोक दिया था यमदूत हार मान गए और वापस
यमलोक चले गए दूतों ने जाकर यमराज से कहा महाराज हम उसके प्राण नहीं ले पाए यमराज
कहने लगे यह कैसी विडंबना है तुम लोग खाली हाथ क्यों वापस लौट आए तब यमदूत कहने लगे
स्वामी उसके प्राणों को लेने के लिए हम गए थे लेकिन बीच में एक देवदूत आकर खड़ा हो
गया और उसके सामने हमारा कोई जोर नहीं चल पाया यमराज कहने लगे ऐसी कौन सी बड़ी ताकत
है जो मृत्यु के मार्ग में बाधा बन रही है यमदू तों ने बताया स्वामी एक तो उसके दान
की शक्ति और आशीर्वाद की शक्ति जिसने देवदूत को और भी शक्तिशाली बना दिया है
यमराज कहने लगे तुम लोग रहने दो लगता है मुझे ही उसके प्राण लेने के लिए धरती लोक
पर जाना पड़ेगा और फिर यमराज स्वयं धरती लोक की तरफ चल दिए और राजा के महल में
प्रकट हुए यमराज राजकुमार के प्राण हरण ही वाले थे कि तभी वहां देवदूत प्रकट हुआ रोज
यमराज को रोक लिया यमराज देवदूत से कहने लगे तुम नहीं जानते कि विधि के विधान के
अनुसार इसकी आयु पूर्ण हो चुकी है और मैं इसके प्राण लेने के लिए आया हूं तब देवदूत
कहने लगे आप मुझे बताइए कि क्या श्राप नहीं लगता श्राप तो ब्रह्मा जी और विष्णु
जी को भी जीने पड़े थे यदि आप किसी श्राप का मान रख सकते हैं तो इसी तरह से आप किसी
की आत्मा से निकले हुए आशीर्वाद का मान भी रख सकते हैं तब यमराज बोले प्रभु अब मुझे
क्या करना पड़ेगा देवदूत ने कहा आप इस राजकुमार की आयु 120 वर्ष कर दीजिए और
उसके बाद ही आप इसके प्राण लेने के लिए आइएगा यही भगवान ब्रह्मा जी का भी आदेश है
यह सुनकर यमराज ने राजकुमार की आयु 1220 वर्ष कर दी इसके बाद यमराज वापस यमलोक लौट
गए और इस तरह से एक भूखे को दान देने पर राजा के पुत्र की आयु बढ़ गई और मृत्यु भी
टल गई इसके बाद राजा आदित्य और उसका परिवार खुश ख खुशी अपना जीवन व्यतीत करने
लगे सच ही कहा गया है कि अन्न का दान सबसे बड़ा दान है किसी भूखे को दिया गया अन्न
एक महान यज्ञ के बराबर है तो दोस्तों कैसी लगी आपको यह कहानी आप हमें कमेंट सेक्शन
में जरूर बताना और अच्छी लगी हो तो इस चैनल को सब्सक्राइब जरूर कर लेना तो चलिए
मिलते हैं ऐसी ही कोई नई कहानी में तब तक के लिए अपना ख्याल रखिए धन्यवाद और नमोह
बुद्धाय ?

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