मजबूरी से कभी नहीं डरोगे। | Motivational Story In Hindi

 मजबूरी से कभी नहीं डरोगे। | Motivational Story In Hindi | 2024 Motivational Kahani in Hindi .

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका एक और नए   कहानी  में दोस्तों क्या आपने कभी सोचा है कि जब हम जिम्मेदारी नहीं लेते तो हमारे कामों में क्या होता है अक्सर हम अपनी क्षमताओं को कमजोर समझकर या डर और संदेह के चलते किसी चीज को करने से पीछे हट जाते हैं बिना उसे आजमाने का मौका देने का लेकिन क्या हम यह सोचते हैं कि ऐसे मौके पर हम कितना बड़ा मौका खो देते हैं इस वीडियो में हम देखेंगे कि जब हम जिम्मेदारी से मुकर हैं तो हम स्वयं को अपने पूरे पोटेंशियल को पहचानने और प्राप्त करने का मौका बर्बाद करते हैं जिम्मेदारी लेने के बजाय हम अपने कामों को अधूरा छोड़कर स्वयं को नकारने से बचते हैं और इससे हमारे जीवन में निरंतर संकोच और आत्म संकट की भावना बनी रहती है यह वीडियो आपको यह सिखाएगा कि जब हम खुद पर और अपनी क्षमताओं पर विश्वास करते हैं तो हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं और कैसे हमारे कामों में चमत्कार हो सकता है तो चलिए चलिए बिना किसी देरी के कहानी शुरू करते हैं।

Motivational Story In Hindi

2024 Motivational Kahani in Hindi .

 एक छोटा सा गांव था उस गांव में एक व्यक्ति रहा करता था उस व्यक्ति को भी यही तकलीफ थी वह हमेशा खुद की क्षमताओं पर शक किया करता था वह हमेशा दुविधा में रहता था जो काम वह करता था वह काम उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं था वह तो उस काम को केवल मजबूरी में किया करता था ताकि उसका घर परिवार आसानी से चल सके उन्हें दो वक्त की रोटी मिल सके उनका पेट भर सके और वह हमेशा सपनों में ही खोया रहता कि किसी ना किसी दिन उसे बहुत सारा धन मिल जाएगा और वह उस नगर का सबसे अमीर आदमी बन जाएगा।

 उसके पास वह सब कुछ होगा जो एक धनी व्यक्ति के पास होता है सारी सुख सुविधाएं होंगी उसके पास किसी चीज की कोई कमी ना होगी मन में यही ख्याल लिए वह हमेशा अपने भगवान की पूजा किया करता वह हमेशा यही सोचा करता कि मेरे ईश्वर के आशीर्वाद से उसके जीवन में चमत्कार घटेगा और वह बहुत धनी व्यक्ति बन जाएगा इसीलिए वह दिन रात सुबह शाम केवल अपने इष्ट की पूजा करता उनकी भक्ति में खोया रहता और जब भी कोई उसे किसी कार्य के लिए कहता तो वह यही कहता जो होगा वही करेंगे।

 मैं भला कौन हूं करने वाले तो सब वही है लेकिन वास्तविकता में उसके मन के भीतर एक दुविधा थी कुछ भी करने के लिए वह हमेशा दुविधा में फंसा रहता था वह कभी किसी निर्णय पर पहुंच ही नहीं पाता था और जब भी वह किसी कार्य को पूर्ण नहीं कर पाता था तब भी उसके पास तरह-तरह के बहाने हुआ करते थे जैसे मैंने तो बहुत कोशिश की किंतु यह कार्य पूर्ण हो ही नहीं सकता।

 यह कार्य करना तो असंभव है यह कार्य बहुत कठिन है इस तरह की उसके पास कई तरह के बहाने थे जिससे वह खुद को समझा दिया करता उसकी पत्नी और उसके घर वाले उसे ताना मारा करते उसे तरह-तरह की बातें सुनाया करते लेकिन वह व्यक्ति कुछ करने का नाम ही नहीं लेता था एक दिन उसकी पत्नी उस व्यक्ति से कहती है अरे तुम कुछ करते क्यों नहीं आखिर हमारा परिवार ऐसे कब तक चलेगा तुम जो मजदूरी करके पैसे लाते हो।

 उसमें घर का खर्च नहीं चल पाता आखिर तुम कुछ और काम क्यों नहीं करते इस पर वह व्यक्ति कहता है जैसे मालिक की इच्छा वह जैसा रखना चाहेंगे हमें वैसे ही रहना होगा मैं चाहे कितना भी प्रयास क्यों ना कर लूं लेकिन मैं उससे अधिक धन नहीं कमा सकता जब तक कि मेरे मालिक ना चाहे एक दिन उसका बच्चा बहुत बीमार पड़ गया और उसे अच्छे इलाज की आवश्यकता थी लेकिन उस व्यक्ति के पास धन नहीं था।

 तभी उसकी पत्नी रोते हुए उस व्यक्ति के पास आई और कहने लगी अरे जाइए ना कुछ पैसों का बंदोबस्त कीजिए ना हमारा बच्चा यूं ही मर जाएगा इस पर व्यक्ति कहता है अरे पगली तू चिंता क्यों करती है इससे कुछ नहीं होगा मेरे ईश्वर मेरे साथ है और वह इसे बचा ही लेंगे वह ऐसा कुछ नहीं होने देंगे आखिर में उनकी इतनी पूजा करता हूं दिन रात उनकी आराधना करता उनकी भक्ति करता हूं इसलिए हमारे बच्चे को कुछ नहीं होगा तू चिंता मत कर अपने पति की यह बात सुनकर उस व्यक्ति की पत्नी घर से बाहर निकली और उसने हर जगह हाथ पैर मारे हर जगह लोगों से बात की लोगों से धन मांगा लोगों से मदद मांगी।

Motivational kahani in hindi 


 लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की उसे कहीं से भी धन नहीं मिला और थक हार कर वह घर वापस आ गई इधर वह व्यक्ति अपने ईश्वर के भजन गा रहा था उनसे प्रार्थना कर रहा था कि वह उसके बच्चे को स्वस्थ कर दें बच्चा पीड़ा के कारण लगातार रोए जा रहा था उसकी पीड़ा असहनीय होती जा रही थी जिस कारण उसका चीखना चिल्लाना और भी बढ़ता जा रहा था।

 काफी समय तक वह बच्चा चीखता चिल्लाता रहा लेकिन उस व्यक्ति को तनिक भी फर्क नहीं पड़ा और अचानक उस बच्चे का चीखना चिल्लाना बिल्कुल शांत हो गया जैसे ही उस बच्चे की आवाज बंद हुई यह देखकर वह व्यक्ति सोचने लगा कि लगता है मेरे प्रभु ने मेरे बच्चे को ठीक कर दिया उसने प्रभु का धन्यवाद किया और कहा मैं जानता था आप मेरे बच्चे को जरूर स्वस्थ कर देंगे आखिर मैं आपकी इतनी पूजा करता हूं।

 आपकी इतनी आराधना करता मैं जानता था आप मेरा साथ कभी नहीं छोड़ेंगे अपने बच्चे की आवाज ना आती हुई देख उसकी पत्नी उस बच्चे के पास पहुंची और जोर से चिल्लाकर उस बच्चे को उसने अपने गले से लगा लिया और जोर-जोर से रोने लगी तब जब उसने यह सब देखा तो उस व्यक्ति को यह एहसास हो चुका था कि उसके भगवान ने उस बच्चे को नहीं बचाया था बल्कि अब उसका बच्चा इस दुनिया में नहीं रहा और जब उसे एहसास हुआ तब उसे बहुत गहरा धक्का लगा उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि आखिर यह कैसे हो सकता है।

 वह तो अपने प्रभु की इतनी भक्ति करता है इतनी आराधना करता है फिर आखिर यह सब कैसे हो गया उसके मन में ऐसे कई प्रकार के प्रश्न उत्पन्न हो रहे थे और उन प्रश्नों को लेकर वह यहां वहां भटकता रहा और ऐसे ही कई दिन बीत गए दिन के बाद हफ्ते और हफ्तों के बाद महीने बीत गए लेकिन अब तक उसे उसके प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं मिला था जब भी किसी से इसके बारे में बात करता तो हर कोई उसे केवल एक ही जवाब देता कि लगता है तुम्हारी भक्ति में कोई कमी रह गई थी।

 शायद इसी कारण ईश्वर ने तुम्हारी नहीं सुनी लेकिन उसे किसी की बात पर कोई यकीन नहीं था उसे उस जवाब से कोई संतुष्टि नहीं मिल रही थी वह अपने बच्चे को खोने के कारण बहुत तकलीफ में था मन ही मन वह पूरी तरह से टूट चुका था एक दिन वह किसी मार्ग से होता हुआ कहीं जा रहा था लेकिन तेज धूप के कारण वह एक पेड़ की छाव में बैठ गया और वहां पर बैठकर अपने बच्चे को याद करके जोर-जोर से रोने लगा।

 उसी मार्ग से एक साधु होकर गुजर रहे थे उन्होंने जब उस व्यक्ति के रोने की आवाज सुनी तो वह उसके पास पहुंचे और उस व्यक्ति से कहते हैं क्या बात हो गई आखिर तुम इतने जोर-जोर से इस तरह रो रहे हो क्या कोई संकट आ पड़ा है आखिर क्या बात है मुझे बताओ इस पर उस व्यक्ति ने अपनी सारी बातें उन साधु को बता दी और साधु से कहता है हे गुरुवर आखिर इसने मेरी क्या गलती है आखिर मैंने क्या किया मेरी पत्नी मुझे मेरे बच्चे की मौत का जिम्मेदार ठहरा है आप ही बताइए।

 भला मैं अपने बच्चे को क्यों मारना चाहूंगा मैं तो बस ईश्वर से उसकी सलामती के लिए दुआ मांग रहा था तो क्या मैंने गलत किया है तभी उन गुरुवर ने उस व्यक्ति से कहा यदि तुम्हारे बच्चे को इलाज मिल जाता तो क्या वह ठीक हो जाता इस पर वह व्यक्ति कहता है हां अवश्य ठीक हो जाता तभी वह साधु उस व्यक्ति से कहते हैं तो आखिर तुमने इलाज क्यों नहीं करवाया इस पर व्यक्ति कहता है गुरुवर मेरे पास इतना धन नहीं था कि मैं उसका इलाज करवा सकूं तभी गुरुवार उस व्यक्ति से कहते हैं।

 तुम्हारे पास धन क्यों नहीं था तभी वह व्यक्ति इसका जवाब देते हुए कहता है गुरुवर जहां मैं काम करता हूं वहां पर मुझे बहुत ही कम तनख्वाह मिलती है और इससे मेरा घर बड़ी मुश्किल से चल पाता है ऐसे में मैं भला अधिक धन कहां से जोड सकता हूं तभी वह व्यक्ति से कहते हैं यदि तुम्हारी बच्चे की मृत्यु धन ना होने के कारण हुई है तो तुम ईश्वर को क्यों दोष दे रहे हो उसने तो नहीं कहा था कि तुम अधिक धन मत कमाओ उसने तो तुमसे नहीं कहा था कि तुम वहीं पर काम करते रहो जहां पर तुम्हें कम तनख्वाह मिलती है।


 ईश्वर ने तो तुमसे नहीं कहा था कि तुम मेरे भरोसे बैठो यह सुन वह व्यक्ति थोड़ा सा अचरज में पड़ डीडी एच गया उसने उन साधु से कहा गुरुवर तो क्या हमें ईश्वर की मदद नहीं मांगनी चाहिए क्या हमें उनकी पूजा आराधना नहीं करनी चाहिए तभी वह व्यक्ति से कहते हैं तुम्हारा ईश्वर कोई और नहीं बल्कि तुम्हारे भीतर है वह तुम्हारी आंखों से देखते हैं तुम्हारे ही हाथों से कार्य करते हैं।

 तुम्हारे ही पैरों से चलते हैं और जब तुम्हें कुछ करने की के लिए तैयार ना हो तो वह तुम्हारी मदद कैसे कर सकते हैं तुमने ही अपने ईश्वर को हाथ पर हाथ धरे रखने के लिए मजबूर कर दिया है तभी वह व्यक्ति उनसे कहता है ठीक है आपकी बातें बड़ी कड़वी लग रही हैं लेकिन जो कुछ भी आप कह रहे हैं ।

वह सब सत्य है कहीं ना कहीं मैं अंदर से जानता था कि मैं ही अपने बच्चे की मौत का जिम्मेदार हूं यदि मैंने थोड़ा और धन जुटा लिया होता यदि मैंने थोड़ी सी मेहनत की होती लोगों से मदद मांगी होती तो अवश्य ही आज मेरा बच्चा जिंदा होता मेरे साथ होता इतना कहकर व्यक्ति जोर-जोर से रोने लगा कुछ देर रोने के बाद फिर से शांत होकर गुरु से कहता है है गुरुवर जब भी मैं कोई कार्य करने जाता हूं तो मेरे पास इतने साधन नहीं होते थे।

 ना ही धन होता था ना ही किसी का सहयोग मिलता था और जब भी मैं कोई कार्य करने जाता तो मेरे मन में एक शंका होती एक संकोच होता कि क्या मैं इस कार्य को कर सकूंगा या नहीं तभी वह साधु उस व्यक्ति को एक पेड़ की तरफ इशारा करके कहते हैं क्या तुम पेड़ पर चढ़ना जानते हो व्यक्ति कहता है नहीं गुरुवर मैं आज तक कभी भी पेड़ पर नहीं चढ़ा और ना ही मैं पेड़ पर चढ़ना जानता हूं किंतु आप मुझसे यह क्यों पूछ रहे हैं।

 इस पर वह साधु कहते हैं अभी बताता हूं उन्होंने पास में बैठे हुए एक कुत्ते को एक पत्थर मारकर क्रोध दिलाया और वह तुरंत ही पास वाले पेड़ पर चढ़कर बैठ गए और अब उस कुत्ते के सामने वह व्यक्ति था उस कुत्ते ने क्रोधित होकर उस व्यक्ति को दौड़ाया उस व्यक्ति को कुछ समझ नहीं आ रहा था वह बस तेजी से भागता जा रहा था तभी उसे अचानक एक पेड़ नजर आया वह व्यक्ति उस पर जाकर तुरंत चढ़ बैठा कुछ देर बाद जब कुत्ता वहां से शांत होकर चला गया तब साधु उस व्यक्ति के पास आए और उस व्यक्ति से कहते हैं क्या हुआ तुम तो कह रहे थे कि तुम्हें पेड़ पर चढ़ना नहीं आता फिर तुम इस पेड़ पर कैसे चढ़ गए।

 इस पर व्यक्ति कहता है गुरुवर ना जाने क्यों लेकिन अचानक ही मैं इस पेड़ पर च छड़ बैठा मैं नहीं जानता यह मैंने कैसे किया लेकिन मुझे अपनी जान बचाने के लिए यह करना ही पड़ा इस पर वह साधु तो मुस्कुराने लगे और उस व्यक्ति से कहते हैं मजबूरी व्यक्ति से सारे काम करा लेती है फिर चाहे वह उसे कार्य पसंद हो या ना हो जब तुम्हारी जान पर बन आई तो तुम इस पेड़ पर छढ बैठे आखिर उस वक्त तुमने अपने ईश्वर को क्यों नहीं याद किया तुम्हें उन्हें अपनी मदद के लिए क्यों नहीं बुलाया तुम चाहते।

 तो वहीं पर बैठकर अपने ईश्वर को याद कर सकते थे उन्हें अपनी रक्षा के लिए बुला सकते थे लेकिन तुमने ऐसा नहीं किया तुम अपनी जान बचाने के लिए उस पेड़ पर बड़ी सरलता से छड़ गए क्योंकि बात तुम्हारी जान की थी लेकिन जब तुम्हारे बच्चे की जान दांव पर लगी थी तब तुम ईश्वर से आराधना कर रहे थे उनसे प्रार्थना कर रहे थे कि वह तुम्हारे बच्चे की जान बचा ले तुम अपने जिम्मेदारी से भाग रहे थे पर अगर तुम उस जिम्मेदारी को निभाते तो आज हालत कुछ और होते उन साधु की ऐसी कड़वी बातें सुनकर व्यक्ति मन ही मन और और दुखी हो गया।

 वह जोर-जोर से फूट फूट कर रोने लगा और कहता है गुरुवर आप सत्य कहते हैं मैं ही अपने बच्चे की मौत का जिम्मेदार हूं मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था मुझे और अधिक धन जोड़ना चाहिए था यदि मैंने ऐसा कर लिया होता तो मैं आज अपने बच्चे को बचा पाता लेकिन अब क्या करूं मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा इस पर साधु उस व्यक्ति से कहते हैं जो जो हो गया उसे मिटाया नहीं जा सकता।

 किंतु जो होने वाला है उसे बनाया अवश्य जा सकता है इसलिए अपने बहानू से ऊपर उठो अपने संकोच को मन से मिटा दो और किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले तुम्हारे मन में दुविधा उत्पन्न होती है उसे पूरी तरह से समाप्त कर दो फिर देखना तुम जैसा चाहोगे वैसा ही होगा।

 तुम जो हासिल करना चाहोगे तुम उसे हासिल कर पाओगे तुम्हारा मन मजबूत होने लगेगा मैं दुविधा से ऊपर उठकर साफ और स्पष्ट तौर पर निर्णय ले सकता उसके बाद से तुम्हारे मन को कभी किसी बहाने की जरू जरूरत नहीं पड़ता इस पर व्यक्ति उस हाथ से कहता है किंतु हे गुरुवर जब भी मैं कोई कार्य करने जाता हूं तो मेरा मन बहुत ही कमजोर पड़ जाता है।

 मैं बहुत घबरा जाता हूं मैं अपने मन को मजबूत कैसे बनाऊं क्या आप मुझे इसके लिए कोई उपाय बता सकते हैं इस पर साधु कहते हैं हां मेरे पास इसका भी उपाय है तभी व्यक्ति कहता है गुरुवर कौन सा उपाय मुझे बताइए इतने में साधु ने उस व्यक्ति का हाथ पकड़ा और उसे एक नदी किनारे ले आए और उस व्यक्ति से पूछते हैं क्या तुम्हें तैरना आता है वह व्यक्ति थोड़ा घबराया लेकिन उसने जैसे तैसे उन गुरु के इस बात का जवाब देते हुए कहा हे गुरुवर मुझे तैरना नहीं आता लेकिन आप मुझसे क्यों ?

 पूछ रहे हैं इस पर गुरु कहते हैं अभी बताता हूं इतना कहकर उन्होंने उस व्यक्ति को पीछे से धक्का दे दिया और वह व्यक्ति सीधा नदी में जा गिरा वह नदी के पानी में हाथ पैर मार रहा रहा था वह बचने का हर मुमकिन प्रयास कर रहा था जब उन साधु ने देखा कि वह व्यक्ति डूबने लगा है तो उन्होंने जाकर उसे उस पानी से बाहर निकाला वह व्यक्ति जैसे ही बाहर आया तो वह हाप लगा वह घबराया हुआ था बहुत डरा हुआ था।

 जैसे तैसे उसने हिम्मत की और वह खड़ा हो गया अबकी बार वह साधु को देखकर बहुत घबरा चुका था बहुत डर चुका था वह उन्हें देखते ही भागने का प्रयास करने लगा लेकिन एक बार फिर उन साधु ने उसे जबरदस्ती पकड़कर नदी में धक्का दे दिया वह नदी में हाथ पैर मारने लगा ताकि कोई उसे बचा ले वह जोर से चिल्लाने लगा बचाओ बचाओ लेकिन आसपास कोई ना था उसकी मदद के लिए कोई नहीं आ रहा था तभी साधु उस पानी में उतरे और उस व्यक्ति को जबरदस्ती पकड़कर सीधा खड़ा कर दिया।

 उस व्यक्ति ने पाया कि उस नदी में पानी केवल उसके कंधे तक ही आ रहा था इस पर वह साधु उस व्यक्ति से कहते हैं अब तुम मुझे यह बताओ कि आखिर तुम इतने कम गहरे पानी में किस तरह से डूबकर मर सकते हो यदि तुम चाहते तो सीधे खड़े होकर इस परिस्थिति का सामना कर सकते थे और तुम्हें यह भी एहसास हो जाता कि इस नदी में पानी केवल तुम्हारे कंधे तक ही है और तुम्हें इस तरह से इतनी मेहनत करने की कोई आवश्यकता ना पड़ती ना तुम घबराते और ना ही इस परिस्थिति से भागने का प्रयास करते।

 किंतु तुम्हें हमेशा से केवल एक डर का सामना किया है और वह यह है कि यदि तुम नदी में गिरे और तुम्हें तैरना नहीं आता तो तुम्हारी मृत्यु निश्चित है और यही कारण है कि तुम सही स्थिति का पता नहीं लगा पा रहे थे तुम यह तक पता नहीं लगा पाए कि आखिर इस नदी में पानी कितना गहरा है एक बार फिर साधु उस व्यक्ति को नदी से बाहर लाए और थोड़ी देर इंतजार करने के बाद उन्होंने एक बार फिर उस व्यक्ति को उस नदी में धक्का दे दिया।

 अब की बार उस व्यक्ति को उस स्थिति का पता चल चुका था वह यह जानता था कि अब जैसे ही वह अपने आप को स्थिर कर लेगा जैसे ही अपने आप को अपने पैरों पर खड़ा कर लेगा यह पानी केवल उसके कंधों तक ही आएगा और उसने बिल्कुल ऐसा ही किया वह सीधा खड़ा हो गया तभी साधु उस व्यक्ति से कहते हैं क्या तुम्हें अब अपने मन को मजबूत करने का मंत्र मिल चुका है।

 या नहीं इस पर वह व्यक्ति कहता है हां मैं समझ चुका हूं कि अपने मन को मजबूत किस तरह से किया जाए आगे गुरुदेव उस व्यक्ति से कहते हैं अब तुम समझे इस दुनिया में कुछ भी करना इतनी बड़ी समस्या नहीं है समस्या तो यह है कि हम कुछ करना ही नहीं चाहते जब भी हमें डर लगे या कोई समस्या खड़ी हो तो हमें उसमें उतर कर देखना चाहिए उसका आकलन करना चाहिए उसे समझना चाहिए जब तक कि वह समस्या संभावना ना बन जाए।

 और तुम्हारे भीतर से उस परिस्थिति का सामना करने का डर निकल ना जाए ऐसे ही हमारा मन मजबूत होता है आज तुम्हारे पानी का डर समाप्त हुआ है लेकिन वास्तविकता तो यह है कि तुम अब भी तैरना नहीं जानते और जब तक तुम तैरना नहीं जान सकोगे तुम गहरे पानी में उतर नहीं सकोगे इसलिए मेरी एक बात हमेशा याद रखना इस संसार में ऐसा कुछ नहीं है जो तुम नहीं कर सकते बस तुम्हें तुम्हारे साथ खड़े होना आवश्यक है तुम्हें अपना साथ देना आवश्यक है।

 इसलिए अपने आप को धोखा देना बंद करो अपने आप को दुविधा से बाहर निकालो अपने आप पर संकोच करना बंद करो अपनी शक्ति को पहचानो तो हर कार्य कर सकते हो जो तुम करना चाहते हो यह सुन उस व्यक्ति को अपनी गलती का एहसास हो गया और उसने गुरु को प्रणाम किया और वापस अपने घर की ओर लौट गया अब से वह हर रोज अपनी गलतियों को सुधारने में लग चुका था अपने मन को मजबूत करने में लग चुका था।

 जब भी उसके सामने कोई परिस्थितियां थी इसका सामना करने में उसका मन घबराता उसका मन डरता तो वह उस परिस्थिति के सामने खड़ा हो जाता और उनका डट के सामने करता अपनी जिम्मेदारियां निभाता क्योंकि यही करते हैं जिम्मेदार लोग डट के खड़े होते हैं उसने अपने मन के संकोच को अपनी दुविधा हों का त्याग कर दिया था और उसने अपना हाथ थाम लिया था जिस भी कार्य में उसे डर लगता वह उस कार्य को जरूर करता है।

 जिससे उसका मन और भी अधिक मजबूत हो जाता अब ना ही उसके मन में कोई संकोच होता था ना ही वह किसी से किसी प्रकार के डर की बातें करता हर परिस्थिति का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार रहता और इसी प्रकार उसके मन का सारा डर खत्म हो चुका था और वह अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए पूरी तरह से तैयार था अब वह जो कुछ भी चाहता था।वह उसे हासिल करने में पूरी तरह से सक्षम था।


 दोस्तों उम्मीद है कि आपने आज के इस कहानी से जरूर कुछ ना कुछ सीखा होगा तो  कहानी को अपने दोस्तों के साथ शेयर करना ना भूलें और अगर आप ऐसी ही गौतम बुद्ध की कहानियों को लिखित रूप में पसंद करते हैं तो बोदी थिंक चैनल हमें ऐसे ही सपोर्ट करने के लिए चैनल को सब्सक्राइब जरूर करिए तो चलिए मिलते ऐसे ही एक और नई  कहानी में तब तक के लिए अपना ख्याल रखें।

 धन्यवाद और नमो बुद्धाय।

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