मनुष्य के बर्बादी के कारन | Swami Vivekananda Quotes In Hindi
मनुष्य के बर्बादी के कारन | Swami Vivekananda Quotes In Hindi .
स्वामी विवेकानंद कहते हैं सभी जीवित प्रजातियों में से केवल मनुष्य ही सत्य की प्रकृति या दिव्यता के सार के बारे में निर्देश दिए जाने के लिए सबसे उपयुक्त है एक प्रश्न मन में उठता है कि क्या हम वास्तव में इस मानव जीवन को जानवरों से बेहतर जी रहे हैं और इसका उपयोग कर रहे हैं क्या हमारा आचरण जानवरों से भी बेहतर है कहीं हम मूर्खता पूर्वक इसे बर्बाद तो नहीं कर रहे हैं इसीलिए।
आज हम स्वामी विवेकानंद के विचारों के साथ मनुष्य की बर्बादी के कारणों के बारे में जानने वाले हैं इन्हें जानने से पहले आप हमारे Brst Life Hindi चैनल को सब्सक्राइब कर ले ऊंट के बारे में एक बहुत अनोखी बात कही जाती है जो एक दिलचस्प बात है और यह इंसानों पर भी लागू होती है ।
स्वामी विवेकानंद की कहानी हिन्दी में.
वह यह है कि ऊंट को खीकर खाना पसंद है भले ही उसके मुंह से खून निकलता हो इसी प्रकार एक अज्ञानी और भ्रमित व्यक्ति का मन इंद्रिय संतुष्टि में लिप्त रहता है भले ही उसके शरीर और मन को भयानक पीड़ा हो रही हो मनुष्य की बर्बाद का पहला कारण है जीवन के क्रम को उल्टा जीना स्वामी विवेकानंद कहते हैं जिस प्रकार मनुष्य जीवन में हम पहले बच्चे होते हैं फिर युवा और उसके बाद बूढ़े होते हैं।
उसी प्रकार जीवन जीने का भी एक क्रम होता है इंसान उस क्रम में फेर बदल करके अपने जीवन को बर्बाद कर देता है हम किसी भी क्षेत्र के हो जीवन में तीन स्थितियां जरूर होती हैं निजी पारिवारिक और व्यवसायिक जीवन आज के दौर में इनका क्रम उल्टा बन गया है पहले आदमी व्यवसाय एक जीवन में रहता है फिर समय बचने पर वह परिवार साध होता है और अंत में निजी जीवन पर काम करता है।
इसमें ही उसकी उम्र बीत जाती है कुछ लोगों को तो 50 से 60 साल में याद आता है कि कुछ भीतर भी साधा जाना चाहिए तब तक देर हो जाती है इस क्रम में सुख सुविधा सफलता भले ही मिल जाए पर अशांति हमेशा बनी रहेगी चलिए ।
जीवन का क्रम समझ लेते हैं पहले निजी जीवन यानी आध्यात्मिक जीवन इसमें प्रतिदिन थोड़ा योग प्राणायाम ध्यान करें फिर पारिवारिक जीवन इसमें जितना ध्यान प्राणायाम के निकट होंगे उतने हम प्रेम से सराबोर रहेंगे स्वामी विवेकानंद कहते हैं परिवार प्रेम धैर्य और समझ से चलता है अभी ज्यादातर वृष और जिम्मेदार लोग जब कार्यस्थल पर अपना कार्य आरंभ करते हैं तो 90 % मौकों पर उनके घर से ही फोन आता है।
वे खुद फोन कम करते हैं आप ऐसा करें कार्य शुरू करने से पूर्व स्वयं घर पर फोन लगाकर पूछ ले और बता दें हम काम शुरू कर रहे हैं सब ठीक है ना यह रिवर्स रिस्पांस धीरे-धीरे एक दिन सकारात्मक परिणाम देगा उसके बाद फिर व्यवसायिक जीवन साधे जो लोग इस क्रम से चलेंगे उन्हें अपने व्यवसायिक क्षेत्र में पूरी सफलता तो मिलेगी ही साथ में शांति भी प्राप्त होगी क्योंकि ?
वे निजी जीवन से परिपक्व बनकर पारिवारिक जीवन से तृप्त होकर व्यवसायिक क्षेत्र में आ रहे होंगे इसलिए हर काम में उनके आनंद परिश्रम ईमानदारी और योग्यता अलग ही होगी महाभारत भ युद्ध के आरंभ में अर्जुन ने निराश होकर पलायन की बात कह दी थी तब श्री कृष्ण ने सबसे पहले गीता सुनाई थी गीता का संदेश निजी जीवन पर काम करने जैसा है क्योंकि ?
उसमें जीवन की हर समस्या का समाधान मिलता है फिर उन्होंने अर्जुन को परिवार से जोड़ा था उसके बाद व्यवसायिक जीवन यानी युद्ध में उतारा था और अर्जुन विजय के सूत्रधार बने थे यदि हर हाल में जीतना है तो जीवन का क्रम बदलकर इस प्रकार करके देखिए नहीं तो आप अपना बर्बाद कर देंगे मनुष्य की बर्बादी का दूसरा कारण है कि वह अपने व्यवहार के प्रति लापरवाह हो जाता है स्वामी विवेकानंद कहते हैं ।
आपका व्यवहार ही है जिसके कारण लोग आपको महत्व देते हैं हम किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हो अपनी नीचता को कभी नहीं भूलना चाहिए इस बात पर लगातार नजर रखें कि हमारा निजी जीवन कैसा चल रहा है क्योंकि निजी जीवन को दो ही लोग जान पाते हैं एक तो हम स्वयं और दूसरा जाता है लेकिन यदि हम मालिक होंगे तो हम जब चाहे बुलाएंगे।
हमारा परमात्मा बाकी तो जीवन भर साथ रहने वाला साथी भी नहीं जान पाता कि हमारे भीतर क्या चल रहा था निजी जीवन साधने के लिए प्रतिदिन 10 से 12 मिनट कुछ सरलतम विधियों को फॉलो करें उन्हें अपना ले पारिवारिक जीवन छोटे बड़े का अहंकार और छल से नहीं चलता जाता है ।
ज्ञान उसे कहा गया है जो स्वयं एक कृत्य बन परिवार का सबसे सुंदर आधार है प्रेम और विश्वास जब भी घर में रहे प्रेम पूर्ण रहे दुनियादारी के दव पर चप्पल की तरह घर के बाहर ही निकाल कर आए निजी और पारिवारिक जीवन के सधे हुए क्रम से निकलकर व्यक्ति जब व्यवसायिक जीवन में पहुंचता है तो तीन काम करना अपने आप ही सीख जाता है।
स्वयं से पिता जैसा व्यवहार अपने अधीनस्थ से जैसा और अपने वरिष्ठ से परमात्मा जैसा पिता में एक प्रेशर होता है जो स्वयं पर काम आता है मां में हितकारी वृत्ति होती है और परमात्मा के प्रति समर्पण अपने वरिष्ठ के प्रति हमारी वफादारी को कायम रखता है वाणी योग और परिवार से गुजरा व्यक्ति विनम्र संतुलित और उद्देश्य पूर्ण ही बोलता है।
उपहास व्यंगात्मक और अपशब्द लंबे समय में साथियों को आपसे दूर कर देते हैं और इस तरह आपका करियर बर्बाद हो जाता है जिससे आप कभी सुखी नहीं रह पाते इंसान के बर्बाद होने का तीसरा कारण है गलत समय पर आराम का सोचना स्वामी विवेकानंद कहते हैं इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन आलस्य है जो एक पल में आपको उपलब्धि हासिल करने पर भी नीचे गिरा सकता है।
सफलता मिल जाने पर संघर्ष के प्रति विश्राम की मुद्रा आलस्य ही मानी जाती है आलस्य एक तरह का अपराध ही है इसलिए ना सिर्फ सक्रिय रहे बल्कि सचेत भी रहे किसी कार्य का दायित्व हमारे ऊपर हो और उसे हम सफलता पूर्वक पूरा कर भी ले लेकिन बात यही खत्म नहीं होगी सफलता और दायित्व के प्रति निरंतर सचेत नहीं रहेंगे तो सफलता कपूर की भांति उड़ जाएगी।
कपूर वायु में अदृश्य हो जाता है और सुगंध छोड़ जाता है आज भी कई लोग उनकी सफलता के खोज आने के बाद की सुगंध में ही जीते हैं अपनी सफलता और दायित्व के प्रति निरंतर सचेत रहने का अच्छा उदाहरण लक्ष्मण का है वनवास जाते समय उन्होंने श्री राम से कहा था आपके साथ मैं भी चलूंगा तब यह सवाल था कि तुम क्यों चलोगे इसका उत्तर माता सुमित्रा ने दिया कि तुम्हारे ही भाग्य से राम सीता वनवास जा रहे हैं।
तुम उनकी सेवा सहयोग सुरक्षा बुराई पर अच्छाई की जीत के अभियान पर निकलोगे और तुम्हारी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका रहेगी लक्ष्मण ने 14 वर्ष के लिए निद्रा त्यागी और ब्रह्मचर्य का पालन किया यह दो बातें आज भी हमारे व्यवसायिक लक्ष्य की पूर्ति के लिए बड़ी प्रेरणा है स्वामी विवेकानंद ने जीवन की हर सफलता पाने के लिए ब्रह्मचर्य को सबसे महत्त्वपूर्ण माना इससे हर कार्य को निष्ठा और परिश्रम से पूरा किया जा सकता है।
हमें प्रबंधन में समझना चाहिए कि गलत वक्त पर और और ज्यादा समय के लिए पलक झपका ली तो आंख खुलने पर सारा दृश्य बदल जाएगा इसलिए परिश्रम और सजगता इन दोनों का मेल जीवन में बनाए रखना चाहिए परिश्रम में शरीर साथ देगा और सजगता में मन काम करेगा चाहे जितने व्यस्त रहे तन और मन दोनों के लिए संतुलित समय जरूर निकाले वरना आप अपना जीवन बर्बाद कर देंगे मनुष्य की बर्बादी का चौथा कारण है कि घर और बाहर दोनों के बीच का संतुलन बिगाड़ देना ।
स्वामी विवेकानंद कहते हैं एक बुद्धिमान इंसान हर परिस्थिति में समान और मजबूत रहता है व्यवसायिक जीवन में हम लोग अपने रिश्तों को लेकर कभी जरूरत से ज्यादा सावधान रहते हैं और कभी अत्यधिक लापरवाह हो जाते हैं कई लोग ऐसे हैं जो अपने कार्यक्षेत्र में अपने व्यवसाय में अपने वरिष्ठ से अच्छे संबंध रखते हैं ।
लेकिन घर परिवार में में सदस्यों से संबंध नहीं रख पाते हैं दरअसल ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम हर रिश्ते को बाहर से जीने की कोशिश करते हैं दुनिया का स्वभाव है कि वह बाहर की ओर ही खींच दी जाती है इस खींचाव को थोड़ा रोके और हर रिश्ते को भीतर से जीने का प्रयास करें स्वामी जी कहते हैं भीतर के रिश्ते व्यक्तियों से नहीं चलते वृत्तियों से चलते हैं।
यदि आपने अपनी किसी भी वृत्ति से ठीक संबंध बना लिया बाहरी व्यक्तियों से भी संबंध मधुर और प्रेम पूर्ण होंगे क्रोध से हमारे रिश्ते मालिक और नौकर की तरह होने चाहिए इसमें मालिक हमें बनना है और गुलामी क्रोध से करवानी है अभी अधिकांश मौकों पर उल्टा हो जाता है क्रोध हमारा मालिक बन जाता है जब उसकी इच्छा होती है वह जब चाहे आता है और अपनी इच्छा से और अपनी ही इच्छा से उसे विदा कर देंगे।
जैसे ही क्रोध पर इस तरह का नियंत्रण हुआ तो हमारी भीतरी बेचैनी उथल-पुथल खत्म हो जाएगी और बाहर हम जिस किसी से भी रिश्ते रखेंगे उसके मायने बदल जाएंगे आध्यात्मिक जगत में इसे क्रोध का ज्ञान होना कहा जाए एक कुशल सारथी घोड़े को थपथपा है पुछता है और उस पर सवारी करता है इसी तरह हमें भी क्रोध पर सवारी करना है।
क्रोध हम पर सवार ना हो पाए वरना आपका जीवन बर्बाद हो जाएगा मनुष्य के बर्बाद होने का पांचवा कारण है कि विशिष्ट होने की चाह में जिंदगी से सहजता खो देना स्वामी विवेकानंद कहते हैं दुनियादारी की सफलताएं उपलब्धियां प्राप्त होने के बाद मनुष्य को विशिष्ट बना देती है इसके बाद कुछ लोग सफल होने की जगह विशिष्ट होने के चक्कर में लग जाते हैं ।
वे यह भूल जाते हैं कि सफलता परिश्रम का परिणाम है किए हुए का फल है और विशिष्टता की चाहत अहंकार की शुरुआत है इस बात को थोड़ा ध्यान रखें कि यह दुनिया परमात्मा ने बनाई है इसीलिए यहां सब कुछ विशिष्ट है है अद्वितीय और खास है इसके बीच हम अपने आप को और विशिष्ट बनाए यहां से अहंकार का पागलपन शुरू हो जाता है आज के पेशेवर जीवन में सफलता की कामना और विशिष्ट होने की इच्छा का अंतर समझ में आना चाहिए।
जिनके पास ऊंचा पद होता है अधिक धन होता है उन्हें तो इसे बारीकी से समझ जाना चाहिए जैसे-जैसे आप अपने करियर में ऊंचे जाए निश्चित ही आपको अपने कामकाज की संपूर्ण जानकारी होगी इसी के साथ एक और करते चलना चाहिए स्वामी जी कहते हैं जब आप अपने काम को पूरा जानने लगते हैं तब आप लगातार प्रयास करें कि स्वयं को भी जाने हमें हमारा पता नहीं चल पाता और दुनिया भर की जानकारी प्राप्त कर चुके होते हैं ।
यहीं से खतरे शुरू हो जाते हैं फिर हमारी हमारी कोशिश होती है कि दुनिया हमें जान ले कि हम कौन हैं हम अपने कर्तव्य को भूलकर इसी में जुट जाते हैं हमारे लिए कार्य से अधिक छवि काम करने लगती है लोग हमें असाधारण माने असामान्य समझे हम अपने व्यक्तित्व को विशेष सीकृत बनाने में जुट जाते हैं।
हमारा समूचा परिश्रम अहंकार के लेपन से अलग रूप लेने लगता है इसीलिए स्वयं को जानने की शास्त्रों में एक शब्द आया है निर्विका अर्थ होता है विशेषण रहित होना लेकिन इसका गहरा अर्थ होता है हमें ऐसा कोई विशेषण नहीं चाहिए जो हमारे होने की भूख को बढ़ा दे हम सामान्य रहकर भी असामान्य कार्य कर सकते हैं ।
वरना हमारे विशिष्ट होने की भूख हमें बर्बाद कर देती है तो आज के इस वीडियो में हमने स्वामी विवेकानंद के विचारों के साथ मनुष्य की बर्बादी के पांच कारणों को जाना उम्मीद है आप इन विचारों पर जरूर अमल करेंगे।
धन्यवाद
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