होली क्यों मनाई जाती हैं| होली निबंध | आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं
होली क्यों मनाई जाती हैं| होली निबंध | आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं
होलिका दहन होलिका दहन हिंदू धर्म में होलिका दहन का आयोजन बड़े हर्षो लास के साथ किया जाता है। इस पर्व को फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है। साथ ही इससे जुड़ी कथा का भी विशेष महत्व है होली का कथा जानने से पहले कुछ विशेष बात की चर्चा करने वाले हैं।
तो कहानी को पूरा देखिएगा नमस्कार दोस्तों आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है हमारी चैनल Best Life Hindi में तो दोस्तों इस कहानी में आपको होली से रिलेटेड बहुत सारा ऐसी चीज बताई गई है। जिनको जना सबको जरूरी है तो दोस्तों इस कहानी को हल्के में मत लीजिएगा। अगर होली को दिल से मैनेट हो तो कहानी को पूरा देखिएगा।
होली क्यों मनाई जाती हैं| होली निबंध
हिंदू धर्म में कई प्रमुख व्रत एवं त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं। जिनमें होली पर्व का विशेष महत्व है होली पर्व की शुरुआत वास्तव में होलि का दहन से होती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होलिका दहन पर्व को बुराई पर हुई अच्छाई की जीत के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों में होलिका दहन के संदर्भ में नारायण भक्त प्रहलाद की कथा को वर्णित किया गया है।
जिसमें बताया गया है कि कैसे अत्याचारी राजा हिरण्य कश्यप ने पुत्र की हत्या के लिए षड्यंत्र रचा था जो भगवान नारायण की कृपा से सफल नहीं हो पाया।
भारत के विभिन्न हिस्सों में होलिका दहन को छोटी होली और होलिका दीपक के नाम से भी जाना जाता है साथ ही इस पर्व के आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण दोनों छिपे हुए हैं। तो दोस्तों आपको अब बताने वाले हैं कि कब और कैसे मनाई जाती है होलिका कहानी अच्छी लग रहा है तो कहानी को लाइक करके चैनल को भी सब्सक्राइब कर लीजिएगा।
होली कब और क्यों मनाई जाती है | 2024 होली
तो दोस्तों हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर प्रदोष काल में हो का दहन का आयोजन किया जाता है यह आयोजन गांव या मोहल्ले के किसी खुली जगह पर किया जाता है।
खास लकड़ियों से तैयार की गई चिता पर गोबर से बने होलिका और भक्त प्रहलाद को स्थापित किया जाता है जिसे कुलारिया बड़कुल्ला के नाम से जाना जाता है। इसके बाद होलिका दहन के शुभ मुहूर्त में होलिका के पास गोबर से बनी ढाल भी रखी जाती है और चार मालाएं जो मौली फूल गुलाल ढाल और गोबर से बने खिलौनों से बनाई जाती है।
उन्हें अलग से रख लिया जाता है इनमें से एक माला पित्रों के नाम समर्पित होती है दूसरी माला हनुमान जी के लिए तीसरी शीतला माता और चौथी माला घर परिवार के लिए रखी जाती है।
होलिका दहन पूजा विधि अगर आप होली को मनते हो तो होली का दहन का पूजा विधि को ध्यान से जैन लेना वरना आपका पूजा अफल ही रह जाएगा होलिका दहन की पूजा में रोली माला अक्षत गंध पुष्प धूप गुड़ कच्चे सूत का धागा बतासे नारियल एवं पंच फल इत्यादि पूजा की सामग्री के रूप में एक थाली में रखे जाते हैं।
इन सभी चीजों को होलिका दहन के समय होलिका के पास रखा जाता है फिर श्रद्धा भाव से होलिका के चारों और सात से 11 बार कच्चे सूत के धागे को लपेट दिया जाता है होलिका दहन के बाद सभी सामग्रियों को एक-एक करके होलिका में आहुति दी जाती है और फिर जल से अर्घ प्रदान किया जाता है।
इसके पश्चात रात होलिका दहन के बाद पंच फल और चीनी से बने खिलौने इत्यादि को आहुति के रूप में समर्पित करने का विधान है अब आपको होलिका दहन की कथा सुनने जा रहे हैं तो दोस्तों अभी तक कहानी को लाइक नहीं किए हो तो कहानी को लाइक कर लो।
होलिका दहन की कथा प्राचीन काल में एक अत्याचारी राक्षस राज हिरण्य कश्यप ने तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान पा लिया कि संसार का कोई भी जीव जंतु देवी देवता राक्षस या मनुष्य उसे नमा सके नहीं वह रात में मरे नहीं दिन में ना पृथ्वी पर और ना आकाश में ना घर में और ना बाहर मरे यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे ना मार पाए।
ऐसा वरदान पाकर हिरण्य कश्यप खुद को भगवान मानने लगा और वह चाहता था कि हर कोई भगवान विष्णु की तरह उसकी पूजा किया करें वहीं अपने पिता के आदेश का पालन न करते हुए हिरण कश्यप के पुत्र प्रहलाद ने उसकी पूजा करने से इंकार कर दिया और उसकी जगह भगवान विष्णु की पूजा करना शुरू कर दिया।
प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की असीम कृपा थी अपने पुत्र प्रहलाद को भगवान विष्णु की आराधना करता देखकर नाराज होने की वजह से हिरण्य कश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को कई सजाएं दी जिनसे वह प्रभावित नहीं हुआ इसके बाद हिरण्य कश्यप और उसकी बहन होलिका ने मिलकर एक योजना बनाई कि वह प्रहलाद के साथ एक चिता पर बैठेगी होलिका के पास एक ऐ सा कपड़ा था।
जिसे ओढ़ने के बाद उसे आग में किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता था दूसरी तरफ प्रहलाद के पास खुद को बचाने के लिए कुछ भी नहीं था जैसे ही आग जली वैसे ही भगवान विष्णु की कृपा से होलिका का वह कपड़ा उड़कर प्रहलाद के ऊपर चला गया और इस तरह प्रहलाद की जान बच गई और उसकी जगह होलिका उस आग में जल गई यही कारण है कि होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
होलिका दहन के दिन एक पवित्र अग्नि जलाई जाती है जिसमें सभी तरह की बुराई अहंकार और नकारात्मकता को जलाया जाता है और उसके अगले दिन हम अपने प्रियजनों को रंग लगाकर त्यौहार की शुभकामनाएं देते हैं और इसके साथ ही नाच गाने और स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ इस पर्व का मजा लेते हैं।
होलिका दहन का कुछ वैज्ञानिक कारण को भी जान लेते हैं होली वसंत के मौसम में खेली जाती है जो सर्दी के अंत और ग्रीष्म ऋतु के के बीच की अवधि होती है ऐसे में पुराने समय में सर्दियों के दौरान लोग नियमित रूप से स्नान नहीं करते थे।
जिसके कारण त्वचा रोग का खतरा बढ़ जाता था इसलिए होलिका दहन के पीछे छिपा वैज्ञानिक कारण यह है कि इस पर्व के दौरान जलाई गई लकड़ियों से वातावरण में फैले हुए खतरनाक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं और होलिका की परिक्रमा करने से शरीर पर जमे हुए कीटाणु भी अलाव की गर्मी से मर जाते हैं।
वहीं देश के कुछ हिस्सों में होलिका दहन के बाद लोग अपने माथे और शरीर पर होलिका की राख लगाते हैं जिसे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है दोस्तों आप सभी को होली के त्यौहार की बहुत-बहुत शुभकामनाएं धन्यवाद. .
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