यमदूत और पंडित की कहानी | Motivational Story Hindi
यमदूत और पंडित की कहानी | Motivational Story Hindi | हिन्दी धार्मिक कहानियां
भाग्य का लिखा कभी नहीं मिटता यह एक पंडित और यमदूत की कहानी है दोस्तों कहानी को ध्यानपूर्वक सुनिएगा बहुत ही अच्छी कहानी है जय श्री कृष्णा दोस्तों।
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| यमदूत और पंडित की कहानी |
यमदूत और पंडित की कहानी | Motivational Story Hindi .
दोस्तों एक समय की बात है किसी गांव में एक बहुत ही ज्ञानी पंडित रहता था। एक दिन वह अपने बचपन के मित्र से मिलने के लिए दूसरे गांव जा रहा था। वह मित्र बचपन से ही गूंगा वह एक पैर से अपाहिज था मित्र का गांव काफी दूर था।
रास्ते में और भी कई छोटे-छोटे गांव पड़ते थे पंडित अपने धुन में चला ही जा रहा था कि रास्ते में उसे एक और आदमी मिल गया वह भी पंडित के साथ साथ चलने लगा। पंडित ने सोचा चलो अच्छा ही हुआ साथ साथ चलने से सफर जल्दी कट जाएगा।
चलते-चलते पंडित ने उस आदमी से उसका नाम पूछा तो उस आदमी ने अपना नाम महाकाल बताया पंडित को यह नाम थोड़ा अजीब सा लगा पर पंडित ने नाम के विषय में कुछ और पूछना उचित नहीं समझा दोनों धीरे-धीरे साथ में चल ही रहे थे। तभी रास्ते में एक गांव आया तो महाकाल ने पंडित से कहा तुम आगे चलो मुझे इस गांव में एक संदेश देना है।
मैं तुमसे आगे मिलता हूं पंडित ने कहा ठीक है और आगे की ओर चल दिया तभी गांव में खबर फैली कि एक व्यक्ति को पैसे नहीं मार दिया है। जैसे ही वैसे ने उस व्यक्ति को मारा ठीक थोड़ी ही देर में महाकाल आ गया फिर चलते-चलते दोनों एक दूसरे गांव के बाहर पहुंचते हैं यहां पर एक छोटा सा मंदिर बना था।
करने की व्यवस्था भी अच्छी लग रही थी पंडित के मित्र का भी गांव वहां से दूर था और रात्रि भी होने वाले थी तो पंडित ने कहा रात्रि होने वाली है। पूरा चलते-चलते इतनी थकान भी लग रही है और भूख भी लगी है तो यही भोजन करके आराम कर लेते हैं सुबह आराम से आगे का सफर करेंगे महाकाल ने कहा ठीक है।
मुझे इस गांव में किसी को कुछ जरूरी सामान देना है तुम खाना खा लो और आराम करो मैं बाद में जाकर खा लूंगा इतना कहकर वह चला गया। लेकिन उसके जाते ही कुछ ही देर में उस गांव में धुआं उठता दिखाई दिया और देखते ही देखते पूरे गांव में आग लग गई पंडित ने आश्चर्य से सोचा यह महाकाल जहां भी जाता है।
वहां किसी ना किसी तरह की हानि जरूर हो जाती है कुछ तो गड़बड़ है। लेकिन पंडित ने रात्रि में महाकाल से इस बात का कोई जिक्र नहीं किया सुबह दोनों ने फिर अपने गंतव्य की ओर चलना प्रारंभ कर दिया कुछ ही दूर में फिरे गांव आया था में कानूनी कि पंडित से कहा आप आगे चलते जाइए मैं कुछ दूर में आपसे मिलता हूं।
मुझे इस गांव में भी कुछ जरूरी काम है तो काम करके मैं आपसे कुछ आगे मिल लेता हूं यह कहकर महाकाल जाने लगा। लेकिन इस बार पंडित आगे नहीं बढ़ाया बल्कि वहीं खड़ा होकर महाकाल को देखता रहा कि वह कहां जाता है और क्या करता है तभी लोगों की आवाज सुनाई देने लगी कि किसी व्यक्ति को सांप ने काट लिया है और वह मर गया है।
ठीक उसी समय महाकाल फिर से उस पंडित के पास पहुंच गया लेकिन इस बार पंडित को सहन नहीं हुआ उसने महाकाल से पूछ लिया कि तुम जिस गांव में जाते हो वहां कोई न कोई नुकसान जरूर हो जाता है। क्या तुम मुझे बता सकते हो ऐसा क्यों होता है तो महाकाल ने जवाब दिया पंडित जी आप तो मुझे बहुत बड़े फैन मालूम पड़े थे।
इसीलिए मैं आपके साथ चलने लगा था क्योंकि ज्ञानियों का संग बहुत अच्छा होता है परंतु आप अभी तक समझ नहीं पाया मैं कौन पंडित ने कहा मैं समझ गया हूं। लेकिन मुझे कुछ शंका है अगर आप ही अपना उपयुक्त परिचय दे दें तो मुझे आसानी होगी तो महाकाल ने जवाब दिया मैं हम दूत हूं और यमराज की आज्ञा से उन लोगों के प्राण हरण करता हूं।
जिनकी आयु पूर्ण हो चुकी है हलाकि पंडित को पहले से ही इस बात की आशंका थी कि भी महाकाल के मुंह से यह सुन कर पंडित घबरा गया। लेकिन फिर से हिम्मत करके पूछा अगर ऐसी बात है और तुम सचमुच यमदूत हो तो बताओ अगली मृत्यु किसकी है एवं दूध ने जवाब दिया अगली मृत्यु तुम्हारे उसी मित्र की है।
जिससे तुम मिलने जा रहे हो और उस वृद्धि का कारण भी तू ही बनोगे यह बात सुनकर पंडित सहम सा गया और सोच में पड़ गया कि वास्तव में यदि यह महाकाल यमदूत हुआ तो उसकी बात भी सही होगी और उसके कारण मेरे बचपन के सबसे घनिष्ठ मित्र की मृत्यु हो जायगी।
इसलिए अच्छा यही होगा का यह कि मैं अपने मित्र से मिलने ही ना जाऊं कम से कम मैं तो उसकी मृत्यु का कारण नहीं बनूंगा। महाकाल ने कहा तुम जो सोच रहे हो वह सब मुझे पता है मगर तुम्हारे अपने मित्र से मिलने ना जाने से नियति नहीं बदल जाएगी तुम्हारे मित्र की मृत्यु निश्चित है और वह अगले कुछ ही क्षणों में घटित होने वाली है।
महाकाल के मुंह से ऐसी बातें सुनकर पंडित को झटका सा लगा क्योंकि महाकाल ने उसके मन की बात जान ली थी जो एक साधारण व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। अब पंडित को विश्वास हो गया कि महाकाल सचमुच में ही यमदूत है इसलिए वह अपने मित्र के मृत्यु का कारण बने इस कारण वह पीछे की ओर मुड़ा और अपने गांव की ओर जाने लगा।
परंतु जैसे ही पंडित मोड़ा उसका मित्र तेजी से उसकी ओर आता दिखाई दिया जो पंडित को देखकर अत्यंत प्रसन्न दिख रहा था। अपने मित्र के आने की गति को देखकर पंडित को ऐसा लगा जैसे कि उसका मित्र काफी समय से उसके पीछे ही आ रहा है लेकिन वह बचपन से ही गुण व था और पैर से अपाहिज था।
इसलिए ना तो पंडित तक पहुंच पा रहा था और ना ही पंडित को आवाज दे कर रोक पा रहा था लेकिन जैसे ही वह पंडित के पास पहुंचा अचानक उसकी मृत्यु हो गई पंडित हक्का-बक्का होकर महाकाल की ओर देखने लगा जैसे कि और पूछना चाह रहा हो कि आखिर क्या हुआ महाकाल ने पंडित के मन की बात समझ गया और बोला तुम्हारा मित्र पिछले गांव से ही पीछे-पीछे आ रहा था।
लेकिन व अपाहिज और गूंगा होने की वजह से तुम तक नहीं पहुंच सका कि उसने अपनी संपूर्णता कर लगाकर तुम तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन बुढ़ापे में बचपन जैसी ताकत नहीं होती इसलिए ह्रदय घाट के कारण तुम्हारे मित्र की मृत्यु हो गई। क्योंकि तुम से मिलने के लिए वह अपनी सीमाओं को लांघते हुए तुमसे मिलने के लिए पीछे पीछे भाग रहा था ?
इसलिए अपने मित्र के मृत्यु का कारण तुम्हें बने आप पंडित को विश्वास हो चुका था कि सचमुच में महाकाल एक हम दूध है और उसका कार्य जीवो के प्राण हरना है। पंडित एक ज्ञानी व्यक्ति था इसलिए यह भी जानता था कि मृत्यु पर किसी का वश नहीं चलता सभी जीवो को एक न एक दिन तो मरना ही है।
यही सोचकर उसने अपने आपको संभाल लिया लेकिन अचानक पंडित के मन में स्वयं की मृत्यु के बारे में जानने की इच्छा हुई इसलिए उसने महाकाल से कहा जब मृत्यु मेरे मित्र की प्रवीण तो तुम शुरू से ही मेरे साथ क्यों चल रहे थे। महाकाल ने जवाब दिया मैं तो सभी के साथ चलता हूं और हर चलता रहता हूं।
किंतु लोग पहचान नहीं पाते क्योंकि लोगों के पास अपनी समस्याओं के अलावा किसी और व्यक्ति वस्तु या घटना के संदर्भ में सोचने व उसे देखने समझने का समय ही नहीं होता तो पंडित ने कहा कि तुम बता सकते हो मेरी मृत्यु कब और कैसे होगी तो महाकाल ने कहा हालांकि किसी सामान्य जीवन को यह जानना उपयुक्त नहीं है।
क्योंकि कोई भी जीव अपनी मृत्यु के बारे में जानकर दुखी होता है ? लेकिन तुम ज्ञानी व्यक्ति प्रतीत होते हो और अपने मित्र की मृत्यु को जितनी आसानी से सहन कर लिया है उसे देख कर लगता है तुम अपनी मृत्यु के बारे में जानकर भी दुखी नहीं होगे तो तुम्हारी मृत्यु आज से ठीक छह महीने बाद आज के ही दिन किसी दूसरे राज्य में फांसी लगने से होगी और सबसे आश्चर्य की बात यह होगी कि तुम सेम खुशी से फांसी को स्वीकार कर लोगे इतना कहकर महाकाल जाने लगा।
क्योंकि महाकाल के पास पंडित के साथ चलते रहने का अब कोई कारण नहीं था पंडित भी अपने मित्र की यथाशक्ति कर्मकांड करके अपने गांव चला गया। लेकिन कोई व्यक्ति कितना भी ज्ञानी क्यों ना हो अपनी मृत्यु की बात जानकर व्यक्ति तो होता ही है है और मृत्यु से बचने के लिए कुछ ना कुछ करता ही है तो पंडित ने भी किया क्योंकि पंडित विद्वान था।
इसलिए उसकी छाती उसके राज्य के राजा तक कि तो पंडित ने सोचा राजा के पास तो कई ज्ञानी मंत्री होते हैं तो मेरी मृत्यु से संबंधित समस्या का कोई न कोई हल निकाल ही लेंगे तो पंडित यह सोचते हुए राज दरबार में पहुंच जाता है और राजा को सारा वृत्तांत सुनाया राजा ने अपने मंत्रियों को बात बताई और उनसे सलाह मांगी अंत में सभी ने विचार-विमर्श करके कहा अगर पंडित की बात सही है तो उसकी मृत्यु भी है।
महीने के बाद ही होगी लेकिन मृत्यु तब होगी जब वह किसी दूसरे राज्य में जाएगा यदि वह दूसरे राज्यों में जाए ही ना तुम बात भी नहीं होगी मंत्रियों का फैसला है। राजा को भी उपयुक्त लगी तो पंडित के रहने की व्यवस्था खाओ महल में कर दी गई और राजा के आदेश के बिना पूछ पंडित से किसी को भी मिलने नहीं दिया जाता था।
लेकिन पंडित कहीं भी आ जा सकता था ताकि यह ना लगे कि वह राजा की कैद में है परंतु पंडित डर के मारे स्वामी कहीं आता-जाता नहीं था धीरे-धीरे पंडित की मृत्यु का समय नजदीक आने लगा और वह भी दिन आ गया तब पंडित की मृत्यु होनी थी तो जिस दिन पंडित की मृत्यु होने वाली थी तो पंडित डर के मारे उस दिन जल्दी ही सो गया ताकि जल्दी से वे रात बीत जाए और अगला दिन आ जाए तो मिट्ठू तल सके।
लेकिन पंडित को स्वयं नींद में चलने की बीमारी थी और इस बीमारी के बारे में वह संभोग नहीं जानता था अतः राजा या किसी व्यक्ति को इस बीमारी के बारे में बताने का तो प्रश्न ही नहीं उठता पंडित अपनी मृत्यु को लेकर बहुत चिंतित था और नींद में चलने की बीमारी तभी आती है कि जब नींद ठीक तरह से न हो पा रही हो तो उसी रात पंडित को नींद में चलने का दौरा पड़ा वह उठा और महल से निकलकर अस्तबल में गया पंडित राजा का खास मेहमान था।
इसलिए किसी पहरेदार ने भी नहीं रोका और ना ही किसी तरह की पूछताछ की इस्तेमाल में पहुंचकर वह सबसे तेज चलने वाले घोड़े की पीठ में सवार होकर नींद में ही राज्य की सीमा के बाहर किसी दूसरे राज्य में चला गया इतना ही नहीं वह दूसरे राज्य के राजा के महल में पहुंच गया और उस महल के पहरेदार ने भी उसे नहीं रोका और ना ही कोई पूछताछ की सभी लोग रात्रि की अंतिम प्रहर होने के कारण नींद में थे तो यह पंडित सीधे राजा के शयनकक्ष में पहुंच गया।
जहां राजा और रानी सो रहे थे वहीं पंडित भी जाकर लेट गया कल सुबह हुई तो राजा ने पंडित को रानी के बगल में सोया हुआ देखा जिससे राजा बहुत क्रोधित हुआ पंडित को गिरफ्तार कर लिया गया पंडित को तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर दूसरे राज्य में और राजा के शयनकक्ष में कैसे पहुंच गया।
लेकिन वहां यह सब सुनने वाला कौन था राजा ने पंडित को दरबार में हाजिर करने को हुक्म दिया उस समय बाद पंडित को दरबार में लाया गया कुछ समय बाद राजा का दरबार लगा जहां राजा ने पंडित को देखा और देखते ही इतना क्रोधित हुआ था कि पंडित को फांसी पर चढ़ा देने का आदेश सुना दिया फांसी की सजा सुनकर पंडित का आप दिया फिर भी कुछ मत कर राजा से कहा महाराज मैं नहीं जानता है।
कि राजमार्ग में कैसे पहुंचा मैं यह भी नहीं जानता हूं कि आपके शयनकक्ष में कैसे आया और आपके राज्य की किसी पहरेदार ने रोका क्यों नहीं लेकिन मैं इतना जानता हूं कि आज मेरी मृत्यु होनी थी और होने भी जा रही है राजा को यह बात थोड़ी अटपटी लगी उसने पूछा तुम्हें कैसे पता कि आप तुम्हारी मृत्यु होनी हैं कहना क्या चाहते हो राजा के इस सवाल के जवाब में पंडित ने पिछले छह महीने की कहानी बता दी।
और कहा महाराज मेरा क्या किसी भी सामान्य व्यक्ति में इतना साहस नहीं कि वह राजा के शयनकक्ष में राजा की उपस्थिति में रानी के पास हो जाए राजा को पंडित की बात में थोड़ा सत्यता दिखाई दिया परंतु उसने सोचा यह मृत्यु से बचने के लिए महाकाल और अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी का बहाना बना रहा है।
इसलिए राजा ने पंडित से कहा यह तुम्हारी बात सत्य है और आज तुम्हारी मृत्यु का दिन है जैसा कि महाकाल मैं तुमसे कहा था तो तुम्हारी मृत्यु का कारण मैं नहीं बनूंगा। लेकिन अगर बात झूठी निकली तो निश्चित ही आज तुम्हारी मृत्यु का दिन होगा क्योंकि पड़ोसी राज्य का राजा उसका मित्र था। उसने तुरंत सिपाहियों के हाथ दूसरे राज्य के राजा को पत्र भेजा और पंडित की बात के सत्यता का प्रमाण मांगा शाम तक भेजे गए।
सैनिक लौटे और उन्होंने बताया कि महाराज पंडित जो कह रहा है वह पूर्णतया सत्य है दूसरे राज्य के राजा ने पंडित को रहने के लिए अपने ही महल में संपूर्ण व्यवस्था कर रखी थी और पिछले छह महीने से पंडित राजा का मेहमान था। कल राजा अंतिम बार इसके शयनकक्ष में मिले थे और इसके बाद यह इस राज्य में कैसे पहुंच गया इसकी जानकारी किसी को भी नहीं है।
इसलिए उस राज्य के राजा के अनुसार पंडित को फांसी की सजा देना उचित नहीं है लेकिन राजा के लिए एक नई समस्या आ है क्योंकि उसने बिना कुछ जाने ही पंडित को फांसी की सजा सुना दी थी इसलिए अगर पंडित को फांसी न दी जाए तो राजा के कथन का अपमान हो जाए और अगर राजा के द्वारा दी गई सजा का मान रखा जाए तो पंडित कि बिना वजह ही मृत्यु हो जाए राजा ने अपने सभी मंत्रियों से इस बात की चर्चा की सभी मंत्रियों ने सुझाव दिया कि महाराज पंडित को एक कथित रूप से फांसी लगवा दे।
इससे आपके कथन का अभिमान रह जाएगा और कच्चे सूत के धागे से पंडित को भी फांसी नहीं लगेगी और उसके प्राण बच जाएंगे। राजा को यह सुझाव अच्छा लगा उसने ऐसा ही आदेश सुना दिया पंडित के लिए कच्चे धागे के शोध का फांसी का फंदा बनाया गया और नियम के अनुसार पंडित को फांसी पर चढ़ाए जाने लगा सभी लोग खुश थे कि न तो पंडित मरेगा और न ही राजा का वचन झूठा पड़ेगा।
पंडित को भी विश्वास था कि है कि सूत के धागे से खेतों की मृत्यु हो ही नहीं सकती इसलिए वह खुशी-खुशी फांसी पर चढ़ने को तैयार था जैसा कि महाकाल ने उससे कहा था लेकिन जैसे ही पंडित को फांसी दी गई सूत का धागा तो टूट गया लेकिन टूटने से पहले उसने अपना काम कर दिया था।
पंडित के गले की नस सूत के धागे से कट चुकी थी और पंडित जमीन पर पड़ा तड़प रहा था हर धड़कन के साथ उसके गले से खून की फुहार निकल रही थी और देखते ही देखते पंडित का शरीर पूरी तरह से शांत होंगे सभी लोग आश्चर्यचकित थे पंडित को मरते देख रहे थे किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इस कमजोर से धागे से किसी की मृत्यु हो सकती है है लेकिन घटना घट चुकी थी।
नियति ने अपना काम कर दिया था जो होना होता है कि वह कर ही रहता है हम चाहे जितनी भी सावधानियां बरतें जितना भी उपाय कर लें लेकिन हर घटना और घटना का पूरा प्रणाली पहले से ही तय होता है जिसे हम थोड़ा सा भी इधर-उधर नहीं कर सकते इसलिए ईश्वर ने हमें भविष्य जानने की क्षमता नहीं दी है।
ताकि हम अपने जीवन को ज्यादा बेहतर तरीके से जी सके और यही बात उस पंडित पर भी लागू होती है यदि पंडित ने महाकाल से अपनी मृत्यु के बारे में ना पूछा होता तो 6 महीने राजा की कैद में रहकर डर डर कर जीने की वजह ज्यादा बेहतर जिंदगी जीता दोस्तों अगर कहानी अच्छी लगी हो तो चैनल को जरूर सब्सक्राइब करें कहानी को लाइक करें शेयर करें एवं कमेंट करें जय श्री कृष्णा राधे राधे।

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