Power Of Silence | Gautam Buddha Ki Kahani | गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानी

 Power Of Silence | Gautam Buddha Ki Kahani | गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानी

दोस्तो आज की कहानी है गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानी , सारा खेल विचारों का है अगर मनुष्य अपने विचारों पर नियंत्रण करना सीख ले तो वह जो चाहे वह बन सकता है। जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं उन सब ने अपने अंदर सकारात्मक विचार भरे हैं 'और वह अच्छाई के मार्ग पर चलकर ही सफल बन पाए हैं। एसी सिख गौतम बुद्ध ने कई सालों पहले उस वक्त की पीढ़ी को क्यों दी थी इसके पीछे का रहस्य क्या है "आज इसी रहस्य के बारे में हम गौतम बुद्ध की कहानियों के माध्यम से जानेंगे तो बिना देर किए चलिए उन कहानियों की शुरुआत करते हैं। पहली कहानी विचारों पर एक बुद्ध कहानी।


Gautam Buddha Ki Kahani | गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानी .

आश्रम के सभी बच्चे जब दूसरे कामों में लगे होते थे तो एक बच्चा एक कोने में बैठा चुपचाप अपने आप में खोया रहता था।

 वह अक्सर किसी से ज्यादा बातें नहीं किया करता था आश्रम की सभी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद जहां सभी बच्चे पूरे दिन की घटनाओं की चर्चा करने लगते।


 वहीं पर वह शांत रहने वाला बच्चा एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगता सभी बच्चों को आश्चर्य होता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था वह अक्सर आश्रम में अकेला ही घूमता रहता था, यह देखकर उसके गुरु को बड़ी प्रसन्नता होती थी।


 उन्हें लगता था कि कोई तो है आश्रम में जो मौन यानी कि चुप रहने की ताकत को समझता है 'उसके महत्व को समझता है आश्रम के बारे में जब भी कोई जरूरी निर्णय लेना होता उसकी राय जरूर लिया करते थे लेकिन यही बात गुरु जी के एक शिष्य को बड़ी खटकती थी।


 क्योंकि वह गुरु जी का प्रिय शिष्य बनना चाहता था इसलिए वह गुरु जी के सामने दूसरे बच्च के कामों में कुछ ना कुछ कमियां निकालता रहता था जिससे गुरुजी उसे महान समझने लग जाए।

 अक्सर वह अपनी जिम्मेदारियां पूरी तरीके से निभाने का दिखावा भी करता चाहे उससे कोई भी सलाह ना मांगे लेकिन फिर भी वह उन्हें अपनी सलाह देता रहता था।


 वह बहुत ही बातूनी शिष्य था और आश्रम के दूसरे सभी बच्चों में बहुत प्रसिद्ध भी था क्योंकि वह सबसे हंसी मजाक करता रहता था उनसे दिन भर बातें करता रहता था।

 इसलिए उसके सबसे दोस्ती हो गई थी लेकिन जब आश्रम के गुरु उसकी राय ना लेकर दूसरे बच्चे की राय लेते थे 'तो यह बात उसे बड़ी खटकती थी उसे यह लगता था कि वह उस दूसरे बच्चे से ज्यादा बुद्धिमान है।


 लेकिन गुरुजी फिर भी उसकी तरफदारी करते हैं ऐसा नहीं था कि गुरुजी को बातूनी शिष्य के स्वभाव के बारे में पता नहीं था लेकिन गुरुजी उसे अपने तरीके से सीख देना चाहते थे।

 ताकि उसकी ज्यादा बोलने की आदत दिखावा करने की आदत दूसरे में कमियां निकालने की आदत हमेशा के लिए खत्म हो जाए और वह मौन रहकर ध्यान की गहराइयों को छू पाए असल में हर सच्चे गुरु की यह इच्छा होती है ।


वह किसी तरीके से उस बातूनी शिष्य को एहसास कराना चाहते थे कि चुप रहने सेही उसे असीम सत्य को जाना जा सकता है 'उस विराट का एहसास चुप होकर ही किया जा सकता है एक दिन गुरु जी को एक तरीका सूझा उन्होंने।


 आश्रम के सभी बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा मैं तुम सभी को दोदो हिस्सों में बांटकर अलग-अलग गांवों में भिक्षा मांगने के लिए भेज रहा हूं "और जो भी दो बच्चे सबसे ज्यादा भिक्षा मांग कर लाएंगे उन दोनों को आश्रम की सभी जिम्मेदारियां निभाने का मौका दिया जाएगा ।


अपनी बात जारी रखते हुए गुरु जी ने कहा भिक्षा मांगने से हमारा अहंकार खत्म होता है इसलिए हर शिष्य पूरे मन से भिक्षा मांगे कोई भी इस काम को औपचारिकता में ना ले वरना वह हमारे जीवन का बहुत बड़ा ज्ञान खो देंगे।


 आश्रम के गुरुजी ने जानबूझकर बातूनी शिष्य और चुप रहने वाले शिष्य की जोड़ी बना दी बातूनी शिष्य के मन में सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि इस बार उसे मौका मिला है और इस बार वह गुरुजी को दिखा देगा कि वह चुप रहने वाले शिष्य से कितना ज्यादा प्रतिभावान है।


 दोनों शिष्यों ने आपस में सहमति से निर्णय लिया कि गांव की अलग-अलग जगह से भिक्षा मांगना शुरू करेंगे ताकि भिक्षा मांगने का काम जल्दी खत्म किया जा सके चुप रहने वाला शिष्य हर द्वार पर जाकर अपने हाथ जोड़कर अपना भिक्षा का पात्र उनके सामने कर देता उसके चेहरे पर एक सादगी और उसकी आंखों में एक एकांत होता था जिससे भिक्षा देने वाले उसे भिक्षा देकर अपने आप को अनुग्रहित समझते थे।


 वहीं पर दूसरा बातूनी शिष्य हर द्वार पर जाकर उनको कुछ ना कुछ ज्ञान देने लगता था जिससे ज्यादातर लोग उसे भिक्षा दिए बिना ही लौटा देते थे पूरे गांव में भिक्षा मांगकर जब दोनों गांव के बीच में मिले तो बातूनी शिष्य ने देखा कि चुप रहने वाले शिष्य के पास उससे दुगनी भिक्षा थी यह देखकर उसे मन ही मन बहुत ठेस पहुंचा।


 लेकिन जब व दोनों भिक्षा का सामान लेकर आश्रम की तरफ जा रहे थे तब बातूनी शिष्य को एक चालाकी सूझी उसने चुप रहने वाले शिष्य से कहा हमें अपनी भिक्षा एक ही थैले में डाल लेनी चाहिए।

 गुरु जी ने हम दोनों को एक साथ भिक्षा लाने के लिए कहा था चुप रहने वाले शिष्य ने बिना कुछ बोले अपनी सारी भिक्षा उसके थैले में डाल दी।


 बातूनी शिष्य मन ही मन बहुत खुश हो रहा था कि अब गुरु जी को यह पता नहीं चलेगा कि ज्यादा भिक्षा हम में से किसने मांगी उसे लग रहा था कि गुरु जी मुझे इससे कम प्रतिभावान समझेंगे इसलिए उसने यह तरकीब लगाई 'सभी शिष्यों के आने के बाद संध्या के समय जब सभी की भिक्षा ली गई तो इन दोनों शिष्यों की भिक्षा सबसे ज्यादा निकली।


 गुरुजी ने इन दोनों बच्चों का अभिवादन करते हुए आश्रम के सभी बच्चों के सामने उनकी पीठ थपथपाते हुए मुबारकबाद दी और कहा मैं आश्रम का कार्यभार तुम दोनों को नहीं सौंप सकता इससे आपसी मतभेद होने का खतरा रहता है इसलिए तुम दोनों में से जो ज्यादा भिक्षा लेकर आया है।



 आश्रम की जिम्मेदारियां उसे ही सौंपी जाएंगी जब उन्होंने पूछा कि तुम में से ज्यादा भिक्षा कौन मांग कर लाया है तो बातूनी शिष्य ने कहा गुरु जी मैं इससे दो गुने भिक्षा मांग कर लाया था लेकिन मुझसे गलती हो गई कि मैंने वह दोनों भिक्षा एक ही थैले में डाल दी मुझे नहीं पता था कि आप ऐसा निर्णय लेने वाले हैं ।


वरना मैं अपनी भिक्षा का थैला अलग ही रखता इस पर गुरु जी ने चुप रहने वाले शिष्य से पूछा क्या तुम इसकी बात से सहमत हो क्या तुम इससे कम भिक्षा लेकर आए थे।


 यह सुनकर चुप रहने वाले शिष्य ने कहा गुरु जी मेरे पास ऐसा कोई साधन नहीं है जिससे मैं यह साबित कर पाऊं कि मैं इससे ज्यादा भिक्षा लेकर आया था असल में यह उल्टा बोल रहा है दुगनी भिक्षा मैं लेकर आया था।


गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानी |  Motivational Story In Hindi 


 यह मुझसे आधी भिक्षा लेकर आया था इसने ही मुझे भिक्षा एक थैले में डालने की बात कही थी आश्रम से कुछ दूरी पर एक पहाड़ी थी जिसके पीछे सूरज अभी-अभी संध्या के समय ढल रहा था।


 गुरुजी को पता था कि सच कौन बोल रहा है लेकिन बाकी बच्चों के सामने सच साबित करने के लिए उन्होंने उन दोनों को एक एक सवाल पूछा पीछे पहाड़ी पर तुम्हें क्या दिख रहा है।


 यह सुनकर वाचाल शिष्य झट से बोल पड़ा गुरुजी पहाड़ी के पीछे सूरज अपना रंग बिखेर रहा है आसमान में लाली मां छाई हुई है यह बहुत ही सुंदर दृश्य है वो तो और भी बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन गुरु जी ने उसे चुप करते हुए दूसरे शिष्य से जवाब जानने के लिए जब उसकी तरफ देखा तो उसकी आंखों में आंसू भर गए थे।


 श्रद्धा भक्ति और प्रेम से उसकी आंखें भर आई थी गुरु जी को उससे पूछने की जरूरत नहीं पड़ी गुरु जी ने सभी बच्चों को संबोधित करते हुए कहा मैंने सवाल किया था 'कि पहाड़ी के पीछे तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है ज्यादातर लोगों को यह दिखाई देगा कि यह बहुत सुंदर दृश्य है ।


लेकिन मजे की बात यह है कि सुंदरता बोलक नहीं बताई जा सकती उसे महसूस किया जा सकता है और सामने वाला उस सुंदरता को आपकी आंखों में देख पाता है


 चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए गुरु जी ने कहा असल में सुंदरता इस बच्चे ने देखी है दूसरे बच्चे ने सिर्फ सुंदरता की व्याख्या की है लेकिन इसने वास्तविकता में उस सुंदरता को महसूस किया है।



 अपने ऊंचा दिखाने की सभी कोशिशें नाकाम होती वाचाल शिष्य वहीं पर फूट फूट कर रोने लगा उसको चुप कराते हुए गुरु जी ने कहा बेटा मुझे पहले यह पता था 'कि तुम झूठ बोल रहे हो लेकिन मैं तुम्हें उस झूठ का एहसास कराना चाहता था।

 सभी बच्चों को संबोधित करते हुए गुरु जी ने बताया शब्द एक जाल की तरह होते हैं हमारे ज्यादा बोलने की वजह से बहुत सारी समस्या पैदा होती है।


 जब कोई एक आदमी बात को बढ़ा चढ़ा कर बोल देता है तो उसे सिद्ध करने के लिए वह दो शब्द के जाल में फसता जाता है इसी वजह से अंतर्मुखी होने की बजाय वह बहिर्मुखी होता चला जाता है, वहीं पर जिस व्यक्ति को अपनी अंतर यात्रा करनी होती है उसे सबसे पहले चुप रहना सीखना होता है।


 जरूरत से ज्यादा बोलना या फिर हर वक्त बोलते ही रहना यह सब हमारी अंतर यात्रा में बाधा बन जाता है जब आप चुप रहने का अभ्यास करते हैं 'तो आप अपने साथ वक्त बिताने लगते हैं।


 इससे आप अपने एकांत को जान पाते हैं और एक बार अगर मन एकांत में स्थापित हो जाता है तो आपकी आंखों में आपके चेहरे में वह सादगी व एकांत वह स्पष्टता झलक लगती है।


 सब कुछ स्पष्ट नजर आने लगता है कुछ साबित करने को नहीं रह जाता कुछ बताने को नहीं रह जाता सब कुछ आंखों में देखा जा सकता है।


 चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए गुरु जी ने कहा अभी जो दृश्य इस बच्चे ने देखा वह ज्यादा बोलने वाला आदमी कभी नहीं देख पाएगा वह अपनी बुद्धि से तर्क वितर्क करता रहेगा कि उसे क्या-क्या दिखाई दे रहा है।


 लेकिन उन दृश्यों को वह कभी महसूस नहीं कर पाएगा अगर चुप रहने की कला सीखनी है तो तुम्हें सबसे पहले एक बात का ध्यान रखना होगा कि तुम्हें किसी को भी प्रभावित करने की कोशिश नहीं करनी है।


 ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं कि वह दूसरों को प्रभावित करना चाहते हैं अपने आप को साबित करना चाहते और उस साबित करने के चक्कर में वह शब्दों के जाल में फंसते चले जाते हैं।


 धीरे-धीरे वही उनकी आदत बन जाती है अगर कोई व्यक्ति दूसरों को प्रभावित करना चाहता है तो वह कितने लोगों को प्रभावित कर पाएगा उसकी यह भूख बढ़ती जाएगी।


 वही संसार में सभी को कभी भी प्रभावित नहीं कर पाएगा इसलिए यह समझने की बात है कि बहिर्मुखी होने की बजाय हम अंतर्मुखी होकर अपने आप को समझ सकते हैं।


 अपने बातों को खत्म करते हुए गुरुजी ने अपना आखिरी संदेश दिया उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति ज्यादा समय तक चुप नहीं रह सकता तो उसे थोड़े समय से अभ्यास करना चाहिए।


 एक दिन में कुछ घंटे चुप रहने का अभ्यास करो धीरे-धीरे यह आदत खुद बखुदा पनपने लगती है क्योंकि एक बार जब हम चुप रहने लगते हैं तो हमें चुप रहने का आनंद पता चल जाता है।


 उसके बाद हमें प्रयास नहीं करना पड़ता बल्कि हमारा मन आनंद की तरफ अपने आप बढ़ता चला जाता है।


 चुप रहने की कला सीखने के बाद आपकी बुद्धिमानी और आपकी स्पष्टता दोनों में बहुत ज्यादा फायदा होगा वास्तविकता में जिसे दर्शन कहते हैं वह मौन रहकर ही किया जा सकता है।


 इसके बाद सभी बच्चों से कुछ समय चुप रहने का संकल्प लेकर गुरुजी ने अपनी बात खत्म कर दी और सभी बच्चे रात्रि का भोजन करने के लिए एक साथ भोजन कक्ष में पहुंच गए इसलिए कहा जाता है।


 दोस्तों ज्यादा बोलोगे तो फसो ग इसलिए कम बोलना सीखो क्योंकि कम बोलकर ही आप अपने भीतर के मन को जान सकते हो आप क्या हो यह पहचान सकते हो ।


दोस्तों यह कहानी आपको कैसी लगी कमेंट सेक्शन में जरूर बताइएगा तो मिलते हैं किसी अगली कहानी में तब तक के लिए अपना ख्याल रखिए और खुश रहिए धन्यवाद .



बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी | Gautam Buddha Inspirational Story in hindi .

Namaste dosto aaj ki kahani hai बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी ये कहानी आपको आपके लक्ष्य तक पहुँचने में सहायता करेगी। 



बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी


एक बार गौतम बुद्ध के पास एक व्यक्ति आता है और कहता है तथागत अगर मैं दो दिन की लंबी यात्रा करके अपने पुत्र को आपसे मिलवाने लाया हूं यह मेरा इकलौता पुत्र है 'और यह हर समय थका थका रहता है, ऐसा लगता है जैसे इसके अंदर कोई जान ही नहीं है कोई प्राण ही नहीं है। 


 इसका स्वभाव भी काफी छिड़ छिड़ा हो गया है अगर हम इससे कुछ भी कहते हैं 'तो यह हमारी छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जाता है।


 इसके देखने की क्षमता भी उम्र से पहले ही कमजोर हो गई है और इसके बाल भी सफेद पड़ने लगे हैं इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी उम्र का लगना मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा मैं अपने पुत्र के स्वास्थ्य को लेकर बहुत चिंतित हूं।


 जब मैं अपने पुत्र को बैद जी के पास लेकर गया तो उन्होंने कुछ औषधि दी और कहा अपने पुत्र को तनाव कम लेने के लिए कहो वह अपने दिमाग में बहुत अधिक तनाव लेता है इसलिए उसकी ऐसी हालत हो गई है।


 लेकिन मुझे उनके बहुत समझाने के बाद भी तनाव का मतलब समझ नहीं आया मुझे नहीं पता कि तनाव होता क्या है यह किन कारणों से आता है और उसे कैसे अपने पुत्र के दिमाग से निकालूं लेकिन मुझे सबसे पहले तो यह समझना है कि तनाव होता क्या है।


 इसीलिए तथागत मैं आपके पास आया हूं कृपया आप मेरी समस्या का समाधान कीजिए यह सुन बुद्ध उसके पुत्र को बड़े ध्यान से देखते हैं उसके चेहरे को देखते हैं "उसकी आंखों को देखते हैं और फिर उसके हाथों की नब्स को भी देखते हैं यह सारी विधि करने के पश्चात बुद्ध उस व्यक्ति से कहते हैं ।


तनाव लेना तो कोई नहीं चाहता लेकिन फिर भी यह तनाव लोगों के दिमाग को दीमक की तरह पकड़ लेता है और व्यक्ति जान भी नहीं पाता कि वह तनाव में जी रहा है।


 लेकिन अगर व्यक्ति तनाव के कारणों को अच्छे से समझ लेता है और तनाव के बारे में कोई ऐसा पैमाना बना लेता है जिससे वह जान सके कि वह कितने तनाव में है 'तो वह इस समस्या का समाधान भी खोज सकता है, सबसे पहले तो तुम यह समझो कि तनाव होता क्या है जब भी कोई व्यक्ति कोई काम कर रहा होता है।



 लेकिन उसका मन कहीं दूर भटक रहा होता है कल्पनाओं में होता है तो उसके शरीर और मन के बीच एक दूरी पैदा हो जाती है यह दूरी जितनी अधिक होगी व्यक्ति उतनी ही ज्यादा बेहोशी की अवस्था में होता है 'और शरीर मन के बीच की इसी दूरी इसी खिंचाव को तनाव कहा जाता है आखिर कोई सीदा खेल खेलने के बाद व्यक्ति चुस्ती और प्रसन्नता से क्यों भर जाता है।



 जबकि उसने तो अपने शरीर को थका है लेकिन समझने वाली बात यह है कि खेलते समय मन और शरीर एक साथ पूरी तरह से उस खेल में केंद्रित होते हैं।


 जिससे शरीर और मन के बीच दूरी पैदा नहीं होती और कोई तनाव पैदा नहीं होता और अगर दिमाग में कोई तनाव था भी तो वह भी दूर हो जाता है 'लेकिन इसके विपरीत जब हम कोई ऐसा काम करते हैं "जो हमें पसंद नहीं तो हमारा शरीर तो उस काम को कर रहा होता है लेकिन हमारा मन कहीं दूर कल्पनाओं में भटक रहा होता है।


 जिससे शरीर और मन के बीच एक दूरी पैदा हो गई और तनाव ने जन्म ले लिया इसीलिए व्यक्ति को एक समय पर सिर्फ एक ही काम करना चाहिए और अपने तन और मन की सारी शक्ति उसी एक काम पर लगा देनी चाहिए।


 जिससे व्यक्ति के अंदर तनाव पैदा ही ना हो इसके बाद बुद्ध ने कहा तनाव पैदा होने के मुख्य आठ कारण होते हैं और जिसने इन कारणों को समझ लिया वह जीवन भर तनाव मुक्त रह सकता है मुख्य कारणों में सबसे पहला कारण है अति महत्वाकांक्षी होना महत्वाकांक्षी होना अच्छी बात है।


 लेकिन क्या कभी आपने इस बात पर ध्यान दिया है कि इंसान के लक्ष्य कभी पूरी ही नहीं होते उसका एक लक्ष्य पूरा हुआ नहीं कि वह दूसरे की तरफ भागने लगता है, दूसरा पूरा हुआ तो तीसरे की तरफ और इस तरीके से वह अपने लक्ष्यों को पाने के लिए जिंदगी भर गोल गोल घूमता रहता है ।


इसी लिए जो व्यक्ति अति महत्वाकांक्षी होता है जिसने बड़े-बड़े लक्ष्य बनाए होते हैं वह वर्तमान में कभी रह ही नहीं पाता उसका मन सदैव भविष्य की योजनाएं बनाने में ही व्यस्त रहता है उसका शरीर तो वर्तमान में रहता है।


 लेकिन भविष्य में ही रहता है जिससे मन और शरीर के बीच दूरी पैदा हो जाती है और वह तनाव भरी जिंदगी जीने लगता है बुद्ध के मुंह से यह बात सुन उस लड़के ने कहा बुद्ध तो फिर इसका मतलब है कि हमें लक्ष्य नहीं बनानी चाहिए क्योंकि ?


 लक्ष्य बनाना भी तो महत्वाकांक्षा ही है इस पर बुद्ध ने कहा जीवन में लक्ष्य बनाना कोई गलत बात नहीं है लेकिन समस्या तब उत्पन्न होती है।


 जब वह अपना पूरा ध्यान उस लक्ष्य से मिलने वाले परिणाम पर ही लगा देते हैं और उसके परिणाम की चिंता करते रहते हैं व्यक्ति को वर्तमान में जीना आना चाहिए।


 आप लक्ष्य बनाइए और उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कड़ी मेहनत करिए लेकिन साथ ही साथ आपको इस बात का भी ज्ञान होना चाहिए कि आप अभी वर्तमान में जी रहे हैं "और वर्तमान ही सत्य है बुद्ध ने आगे कहा तनाव का दूसरा सबसे बड़ा कारण है ईर्ष्या जब व्यक्ति ईर्ष्या और जलन से भर जाता है 'तो उसका मन अंदर से सड़ने लगता है ईर्ष्या एक आंतरिक घाव है, आंतरिक घाव यानी मन का घाव व्यक्ति के शरीर का घाव तो भर सकता है।


 लेकिन मन का घाव कभी नहीं भर सकता इसीलिए व्यक्ति को दूसरे की खुशी और तरक्की से कभी ई नहीं करनी चाहिए क्योंकि तनाव का कारण है।


 इसके बाद बुद्ध ने तनाव का अगला कारण बताते हुए कहा कि आरुषि पूर्ण काम करने से भी मन में तनाव पैदा होता है जो काम करना हमें पसंद ही नहीं है जिस काम में हमारी रुचि ही नहीं है, उस काम में हमारा मन लग ही नहीं पाएगा हमारा शरीर तो वही बैठा रहेगा लेकिन हमारा मन कल्पनाओं की उड़ान भरेगा।


 जिससे शरीर और मन के बीच दूरी पैदा हो जाती है और व्यक्ति तना ग्रस्त हो जाता है इसीलिए इंसान को हमेशा अपनी रुचि के अनुसार ही कार्य करनी चाहिए।


 अगर व्यक्ति ने यह पता कर लिया कि उसे कौन सा काम करना पसंद है और वह उसी काम को अपने जीवन का लक्ष्य बना लेता है तो फिर वह काम उसके लिए काम नहीं बल्कि खेल बन जाता है।


 फिर बुद्ध ने कहा तनाव का चौथा कारण होता है किसी दूसरे से अच्छा रखना बुद्ध ने उस व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए कहा एक पिता होने के नाते तुम्हारी अपने पुत्र से बहुत सी अपेक्षाएं होंगी 'कि तुम्हारा पुत्र एक बहुत ही कामयाब इंसान बने तुम्हारा नाम रोशन करें जैसा तुम चाहते हो उस तरह का जीवन जिए तुम्हारी हर बात मानी लेकिन क्या आज तक कभी किसी की सारी अपेक्षाएं पूरी हुई हैं ।


जब भी कोई व्यक्ति किसी दूसरे से कोई अपेक्षा रखने लगता है तो वह अनजाने में अपने लिए तनाव पैदा करने लगता है जरा सोचो कि अगर तुम्हारा बेटा तुम्हारे अनुसार काम नहीं कर रहा और वह नहीं बन पा रहा जो तुम उसे बनाना चाहते हो तो निश्चित रूप से तुम्हारे दिमाग को तनाव पकड़ लेगा तुम तनाव से भरा जीवन जीना शुरू कर दोगे और इस तनाव के बस में आकर तुम ऐसा व्यवहार करोगे।



बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी | Inspirational And Motivational stories In Hindi 


 ऐसी बातें करोगे कि तुम्हारा अपने पुत्र के साथ संबंध और भी खराब होता चला जाएगा इसीलिए व्यक्ति को जितना हो सके उतनी कम अपेक्षाएं दूसरों से रखनी चाहिए 'और अगर पूरी तरह से तनाव मुक्त रहना है तो दूसरों से अपेक्षा रखना ही बंद कर दो इसके बाद बूथ ने कहा कि शारीरिक कष्ट भी इंसान के तनाव का एक कारण होता है।


 जब व्यक्ति किसी शारीरिक पीड़ा से गुजर रहा होता है तो उसका पूरा ध्यान बस अपने उस शारीरिक दर्द पर होता है और वह पूरे दिन बस उसी के बारे में सोचता रहता है।


 जिससे उसका मन दुख के विचारों से भर जाता है और ऐसी स्थिति में व्यक्ति तनावग्रस्त रहने लगता है यह सुन उस व्यक्ति ने कहा कि हे बुद्ध शारीरिक दुख तो किसी भी व्यक्ति को हो सकता है।


 तो फिर क्या हुआ व्यक्ति जीवन भर तनाव में ही जिएगा इसका जवाब देते हुए बुद्ध ने कहा कि इंसान को यह बात समझनी चाहिए कि हमारा जीवन दुखों का आधार है।


 जैसे-जैसे हमारा जीवन आगे बढ़ता है इसमें दुख आते हैं बीमारियां आती हैं और फिर अंत में मृत्यु भी आती है तो बीमारियां इंसान के जीवन का अभिन्न अंग है।


 कोई इनसे बच नहीं सकता बस किसी किसी के जीवन में यह समय से पहले आ जाती है 'तो किसी के बाद में पढ़ाती सबको है जब इंसान का मन इस बात को अच्छे से समझ लेगा तो फिर वह अपनी बीमारी के बारे में सोच सोच कर ज्यादा तनाव नहीं लेगा क्योंकि यह हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है और इसके लिए व्यक्ति को शारीरिक रूप से भी अभ्यास करते रहना चाहिए।


 अपने जीवन में व्यायाम और स्वस्थ जीवन शैली को भी जगह देनी चाहिए ताकि उसका शरीर लंबे समय तक निरोगी रहकर सही से काम कर सके तनाव का अगला कारण होता है।


 अपनी योजनाओं को समझने के लिए समय ना देना कुछ लोगों के दिमाग में कोई विचार आया नहीं है कि वह बिना सोचे समझे उस पर काम करना शुरू कर देते हैं।


 और जब उस काम में उन्हें असफलता मिलती है तो वह तनाव से भर जाते हैं क्योंकि उन्होंने उस काम को शुरू करने से पहले उसके बारे में पूरी जानकारी इकट्ठा नहीं की थी।


 इंसान को कोई भी काम शुरू करने से पहले उसके अच्छे और बुरे परिणामों के बारे में ठीक से सोच विचार कर लेना चाहिए ।


इंसान को इस बारे में भी सोच लेना चाहिए कि अगर यह योजना सफल नहीं हुई तो फिर इसके बाद मैं क्या करूंगा इसलिए व्यक्ति को अपनी योजनाओं को ठीक से समझने के लिए पूरा समय देना चाहिए।


 ताकि बाद में उस योजना की वजह से तनाव पैदा ना हो तनाव का सातवां सबसे बड़ा कारण होता है टाल मटोल करना आज के काम को कल पर टालना आप लोगों ने यह कहावत तो सुनी होगी कि आलसी इंसान के शरीर का सबसे बड़ा शत्रु है।


 इंसान आलस्य की वजह से आज के काम को कल के लिए टाल देता है और फिर काम को टालना उसकी आदत बन जाती है काम को कल्प पर टालने वाले व्यक्ति का काम कभी भी समय पर पूरा नहीं हो पाता और अगर किसी तरह से पूरा हो भी जाता है 'तो वह उतना अच्छा नहीं हो पाता जितना अच्छा उसे किया जा सकता था और फिर यह बात व्यक्ति के अंदर तनाव पैदा करती है।


 लेकिन काम को टालना या काम को एकदम अंत समय पर करना एक आदत है, इसीलिए व्यक्ति ना चाहते हुए भी बार-बार अपनी इस आदत का शिकार बन जाता है 'और काम को लता रहता है और फिर जब काम की समय सीमा पास आ जाती है 'तो वह तनाव से भरकर काम को पूरा करने का प्रयास करता है।


 इसीलिए तनाव मुक्त रहने के लिए व्यक्ति को काम को टालने की आदत छोड़नी पड़ेगी और यह तभी संभव है जब व्यक्ति काम को समय से पहले खत्म करने का निश्चय करें।


 सबसे आखिरी और सबसे प्रमुख कारण जो तनाव का होता है वह है ज्यादा सोचना लगातार सोचते रहना भी एक बीमारी है और यह उस व्यक्ति में सबसे ज्यादा पाई जाती है।


 जो कपोल कल्पनाएं करता है जो अतीत की घटनाओं और भविष्य की बातों के बारे में सोचता रहता है जो बेवजह के अनुमान लगाता रहता है "इसीलिए व्यक्ति को ज्यादा सोचने की आदत पर लगाम लगाना चाहिए इसके लिए जितना हो सके खुद को काम में व्यस्त रखना चाहिए और हर दिन ध्यान का अभ्यास करने को अपने जीवन का हिस्सा बना लेना चाहिए।


 बुद्ध के मुंह से यह सारी बातें सुनकर उस व्यक्ति ने हाथ जोड़कर कहा बुद्ध मेरा पुत्र तो अभी मात्र 20 वर्ष का ही है और इसमें अभी इनी समझ भी नहीं है कि यह आपकी बताई सारी बातों का एक साथ पालन कर सके आप कृपया करके तनाव मुक्त रहने का कोई आसान सा तरीका बता दें।



 जिससे मेरा बेटा उसका अनुसरण भी कर सके और तनाव मुक्त भी रह सके उस व्यक्ति की यह प्रार्थना सुन बुद्धि ने कुछ सोचते हुए जवाब दिया अगर तुम इतनी सारी बातों का पालन नहीं कर सकते तो इसके लिए एक बहुत ही आसान विधि है।


 तुम एक बार में एक काम को करने पर ध्यान लगाओ भी काम कर रहे हो उस पर सिर्फ उसी काम को करो सिर्फ उस पर ही अपना पूरा ध्यान लगाओ और अगर तुम्हारा मन इधर-उधर भटक जाता है तो जैसे ही तुम्हें याद आए उसे वापस फिर उसी काम में लगा दो यह सबसे आसान और अच्छा तरीका है ।


तनाव मुक्त रहने का पूरा कहानी देखने के लिए धन्यवाद ऐसे ही कहानी के लिए हमें सब्सक्राइब कर लीजिएगा मिलते हैं अगले कहीनी में .

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