संभाजी महाराज इतिहास मृत्यु | छत्रपती संभाजी महाराज

संभाजी महाराज इतिहास मृत्यु | छत्रपती संभाजी महाराज

"Chhaava" The great Maratha warrior who defied the mighty Mughal Empire | Vicky Kaushal

छत्रपती संभाजी महाराज


 मौत डरी थी उसको देखकर यह खुद मौत का दावा था धरती को नाज था उस पर ऐसा शेर शिवाजी का छावा था छावा, छावा का मतलब समझते हैं "आप छावा का मतलब होता है शेर का बच्चा और शेर के रक्त में समझौता नहीं यही कहानी थी।

*  संभाजी महाराज हिस्ट्री

 छावा की संभाजी महाराज की वो संभाजी महाराज जो शेर लड़ने का दमखम रखते थे, वह संभाजी महाराज जो दहाड़ दे तो दुश्मन मैदान छोड़कर भाग जाया करता था वह छावा जिनकी तलवार की चमक दुश्मन को रण छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया करती थी।

 वो संभाजी महाराज जो औरंगजेब के कैद में धोखे से फंस तो गए लेकिन इसके बावजूद अपनी माटी से गद्दारी नहीं की हैरानी होगी आपको जानकर कि शंभाजी महाराज को तोड़ने के लिए उन्हें इस्लाम धर्म कबूल करवाने के लिए औरंगजेब ने यातनाओ पराकाष्ठा को पार कर दिया था।

 उनके नाखूनों को एक एक करके उखाड़ गया था उनकी उंगलियों को एक एक करके काट दिया गया था "उनके जिस्म के एक एक टुकड़े को काटा गया आंखों में गर्म लोहे की सरिया घुस दी गई कटे पर नमक उठाकर शरीर पर रगड़ दिया गया।

 उनको जलील करने के लिए पत्थर मरवाने के लिए नगर में घुमाया गया लेकिन छावा टूटे नहीं औरंगजेब ने छावा यानी संभाजी के शरीर को तो काट दिया था लेकिन उनकी हिम्मत उनके हौसले को तोड़ पाना तो बहुत दूर की बात थी।

 औरंगजेब उसे हिला तक नहीं पाया था औरंगजेब ने जब लौ लहान छावा से कहा कि इस्लाम कबूल कर लो जान बच जाएगी तो शेर का बच्चा छावा पलटक जवाब देता है कि औरंगजेब तुम मराठों में शामिल हो जाओ तुम्हें धर्म बदलने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी यह थे, छावा संभाजी महाराज और इसीलिए विकी  कौशल की फिल्म छावा सिर्फ एक फिल्म नहीं है बल्कि शौर्य बलिदान अजय पराक्रम की महागाथा है।


 एक ऐसी महागाथा जिससे देश का एक बड़ा हिस्सा अनजान है एक ऐसी महागाथा जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं ऐसी महा गाथा जो हमें बताती है कि हमारे देश में स्वराज पाने के लिए हमारे बहादुर वीरों ने कितनी कुर्बानियां दी हैं य आपको समझना पड़ेगा और इस समझने के लिए आपको अपने स्कूल के दिनों में वापस जाना पड़ेगा।

 एक जमाने में कक्षा पांच में एक किताब आती थी भारत की महान विभूतियां इस किताब में भारत के तमाम महावीर की कथाएं थी शिवाजी का भी चैप्टर था सिंगड़ किले को औरंगजेब से वापस लाने की लड़ाई का जिक्र था,  इस चैप्टर में मराठे  किला जीत जाते हैं शिवाजी महाराज अपनी मां जीजाबाई से पूछते हैं कि औरंगजेब की सेना से लड़कर किला जीतने वाले किलेदार का क्या हुआ तो जीजाबाई कहती हैं गढ़ आला पर सिंगला यानी गढ़ तो आ गया लेकिन शेर चला गया यह शेर कोई और नहीं बल्कि किल्लेदार तानाजी मालुसरे थे।

 हम में से बड़ी आबादी इनके बारे में तब जान पाई जब अजय देवगन ने फिल्म तानाजी बना अब आप सोचिए जरा कि एक ऐसा योद्धा जिसने औरंगजेब को कर दिया था सिंहगढ़ किले पर कब्जा किया था उसके बारे में भारत के लोगों को ही मालूम नहीं था और तानाजी अकेले नहीं है ऐसे बहुत सारे लोग पेशवा बाजीराव को ले लीजिए, पेशवा बाजीराव बल्ला के बारे में लोगों को मालूम नहीं था।


 क्या आप जानते हैं कि पेशवा बाजीराव बल्लाल एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपने 40 साल के जीवन में 42 युद्ध लड़े और उसमें से एक भी युद्ध नहीं हारे सोचिए जो बाजीराव अपराज योद्धा थे। ऐसे योद्धा जिन्होंने मुगलों की नींद उड़ा रखी थी कहा जाता है कि मुगलों को बाजीराव सपने में आते थे।

 सिर्फ 1920 साल की उम्र में बाजीराव ने मुगलों के शासन वाली दिल्ली को तीन दिनों तक बंधक बनाकर रखा था मुगल बादशाह की लाल किले से निकलने की हिम्मत तक नहीं हुई थी उस बाजीराव को भी इस देश में तब जाना गया जब रणवीर सिंह की फिल्म बाजीराव मस्तानी आई ऐसे बहुत सारे योद्धा हैं जिन इतिहास में या तो जगह नहीं दी गई या जगह मिली तो उनका प्रचार प्रसार नहीं हुआ पढ़ाया नहीं गया और इसीलिए हम सब उनकी वीरता से अनजान है।

छत्रपति शिवाजी महाराज 

 ऐसे ही एक मर्द मराठा संभाजी राज शिवाजी राज भोस जी हां संभाजी छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र थे स्वराज का जो सपना छत्रपति शिवाजी महाराज ने देखा था उसे पूरा करने का जिम्मा छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद संभाजी ने उठाया शेर के बच्चे को छावा कहा जाता है।

 क्योंकि छत्रपति शिवाजी को शेर कहा जाता था इसीलिए संभाजी छावा थे और इसी छावा पर एक किताब आई और उसके बाद फिल्म बनी जिसका नाम है छावा छावा के जरिए लोगों को बताने की कोशिश की गई कि शिवाजी राजे के पुत्र संभाजी राजे कितने महान योद्धा थे इतिहासकारों का यह मानना है कि बीते कई दशकों में छत्रपति संभाजी महाराज को बड़ी ही योजनाबद्ध तरीके से किनारे कर दिया गया जबकि छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद धर्म संस्कृति और राष्ट्र की रक्षा के लिए प्राणों का बलिदान देने वाले वह वीर योद्धा थे।

 एक ऐसा योद्धा जिसकी वीरता का लोहा खुद औरंगजेब ने माना था हालांकि संभाजी महाराज का उल्लेख मुगल इतिहास में जरूर मिलता है लेकिन यह दुर्भाग्य है हमारे पाठ्य पुस्तकों से संभाजी गायब रहे इसीलिए जब यह फिल्म आई तो लोगों के मन में सवाल आया कि जिस व्यक्ति ने इतनी यातनाएं सही जिस व्यक्ति ने शेर के जबड़े को चीर दिया था।

 जिस व्यक्ति ने दुखों की पराकाष्ठा को सह लिया था देश से गद्दारी नहीं की थी उसके बारे में स्कूल में पढ़ाया क्यों नहीं गया और अब तमाम लोग हैं जो इतिहास पर सवाल उठा रहे हैं, हालांकि ये विषय समय-समय पर उठता रहा है यह आरोप लगता रहा है कि कुछ लोगों ने भारत के इतिहास को अपने हिसाब से गड़ा और राष्ट्रवादी नायकों को जानबूझकर भुला दिया गया।

 औरंगजेब की क्रूरता को छिपा दिया गया संभाजी महाराज जैसे योद्धाओं को लिखा ही नहीं गया जबकि कईयों को महान तो वही महाराणा प्रताप जैसे महान योद्धाओं के संघर्ष को उतना महत्व नहीं दिया गया अकबर महान हुए टीपू सुल्तान को वीर योद्धा कहा गया लेकिन गुरु गोविंद सिंह जी बाजीराव पेशवा जैसे योद्धाओं को छावा जैसे लोगों को इतिहास में कम या फिर ना के बराबर जख मिली पिक्चर के जरिए ही सही मगर मराठा शौर्य और वीरता की गूंज एक बार फिर सुनाई पड़ रही है।

छत्रपती संभाजी महाराज movie

 छावा सिर्फ एक फिल्म नहीं है बल्कि इतिहास की ज्वाला है वो ज्वाला जो हर राष्ट्र प्रेमी के भीतर वीरता की आग को भर देती है फिल्म के एक दृश्य में विकी कौशल कहते हैं कि मराठे अपनी रक्षा के बारे में कब से सोचने लगे मराठों ने जब भी अपनी जान दी है तो वह जान स्वराज की रक्षा के लिए दी है शिवाजी महाराज के लिए दी है 'जो मस्तक सिर्फ और सिर्फ अपनी मातृभूमि के लिए झुकता है।

 वो शत्रु के सामने कब से झुकने लगा जिन महावीर का खून हमारी नसों में बह रहा है उसे बहाने की ताकत औरंग में है ही नहीं व वो है जो तख्त के लिए अपने भाई अपने बाप की जान ले ले क्या हमारा ईमान खरीदेगा हम मराठा है मराठा स्वराज का यह सिंहासन हजारों मराठों के त्याग और बलिदान से बना है।

 स्वराज सिर्फ एक इंसान की इच्छा नहीं बल्कि अनेक इंसान को को सुरक्षित रखने के लिए ईश्वर की इच्छा है संभाजी महाराज स्वराज के लिए सब कुछ कुर्बान कर देने वाले योद्धा थे मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति राजा और छत्रपति शिवाजी महाराष्ट्र के उत्तराधिकारी थे संभाजी अपने वीरता विद्यु होता के लिए प्रसिद्ध थे आप यकीन नहीं करेंगे कि महज 13 साल की उम्र में संभाजी को 13 भाषाएं आती थी संभाजी ने अपने कम समय के शासन में एक 120 युद्ध की खास बात यह है कि 120 युद्ध में शंभाजी ने एक भी युद्ध नहीं हारा जबकि मुगलों की सेना के सामने मराठों की सेना मुट्ठी भर थी।

 मगर कुशल नेतृत्व और गोरिल्ला युद्ध में निपुणता ने मराठों का भगवा हमेशा लहराया इतिहास कहता है कि संभाजी के पराक्रम से औरंगजेब इतना परेशान हो गया था कि उसने कसम खाई थी कि जब तक संभाजी राजे पकड़े नहीं जाते तब तक वह अपने सिर पर मुकुट नहीं पहने यह बात शिवाजी सावंत की किताब और विकी कौशल की फिल्म में भी दिखाई गई है।

 संभाजी वीर तो थे ही लेकिन विद्वान भी बहुत थे आपको यकीन नहीं होगा लेकिन 14 साल की उम्र में संभाजी ने वद भूषण नशिक नायका भेद और सात शासक नाम के ग्रंथ लिख दिए थे यह ग्रंथ संस्कृत में लिखे थे जिस तरह से कलम पर उनकी पकड़ थी वैसे ही पकड़ तलवार पर थी उनकी तलवार अगर उठ जाए तो दुश्मनों की सेना का विध्वंस होना निश्चित था।

 महज 16 साल की उम्र में संभाजी ने रामनगर में अपना पहला युद्ध लड़ा था और जीत भी लिया था साल 1675 से लेकर 76 के दौरान उन्होंने गोवा और कर्नाटक में तमाम सफल युद्ध लड़े जीते संभाजी महाराष्ट्र के इतिहास में बुरहानपुर का आक्रमण सबसे ज्यादा चर्चित रहा ।

क्योंकि छत्रपति बनने के बाद संभाजी का यह पहला युद्ध था संभाजी के साथ मुट्ठी भर मराठा थे सामने औरंगजेब की 200 हज की सेना थी लेकिन मराठा सेना मुगलों की सेना पर भारी पड़ती है मराठों ने खानदेश में औरंगजेब की राजधानी को लूट लिया था खानदेश और बुरहानपुर में मुगलों को हराने के बाद संभाजी महाराज ने मैसूर पर आक्रमण किया संभाजी महाराज ने 1681 में बडियार राजवंश के दक्षिणी मैसूर पर आक्रमण किया उस वक्त बडियार वंश के राजा थे।

 बडियार चिक्का देव राय संभाजी उन्हें भी हरा देते हैं संभाजी की कूटनीति जबरदस्त थी दरअसल उस वक्त पुर्तगाली मुगलों को व्यापार करने मदद किया करते थे इसलिए पुर्तगाली मुगलों को अपने क्षेत्रों से गुजरने दिया करते थे संभाजी महाराट्र का यह मानना था कि अगर मुगलों को कमजोर करना है तो पुर्तगालियों के साथ उनके गजोड़ को खत्म करना पड़ेगा और इसीलिए पुर्तगालियों पर हमला किया।


 उनके किले को ध्वस्त किया पुर्तगाली खजाने हथियारों पर कब्जा किया जो मराठों की सेनाएं काम आए अब सवाल यह उठता है कि जब संभाजी इतने वीर बहादुर और विद्वान थे तो फिर औरंगजेब के हाथों मारे कैसे गए कैसे वीरगति को प्राप्त हुई इसकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है 'दरअसल संभाजी ने मुगलों को भारत से पूरी तरह उखाड़ फेंकने के लिए एक योजना बनाई थी और इसके लिए संगमेश्वर में गुप्त बैठक की थी।

 इस बैठक में संभाजी के बहनोई गनोजी जी शिरके भी शामिल थे दरअसल गनोजी शिरके को संभाजी महाराज ने वतनदार और जहांगीरी देने से साफ इंकार कर दिया था इसलिए वह संभाजी से बैर रखते थे मगर साथ होने का दिखावा करते थे गणोजी ने संभाजी महाराज के साथ विश्वासघात किया और मुगल सरदार मुकर्रम खान को सूचित कर दिया कि संभाजी संगमेश्वर में है संभाजी राजे ने अपनी बैठक में जिन गुप्त रास्तों के बारे में बताया वो केवल मराठों को मालूम थे।

संभाजी महाराज की मृत्यु कैसे हुई

 गणोजी ने मुकर्रर खान को गुप्त रास्तों के बारे में सब कुछ बता दिया संभाजी को मालूम नहीं था कि उनकी योजना का पता मुगलों को लग गया है इसलिए अपनी आधी से ज्यादा सेना को रायगढ़ भेज दिया और खुद संगमेश्वर से निकलने की तैयारी कर रहे थे जब वह संगमेश्वर से निकल रहे थे तब तकरीबन 10000 मुगलों के सैनिकों ने उन्हें घेर लिया।

 धोखे से बंधी बनाया इसके बाद औरंगजेब ने संभाजी को अपने बंदी ग्रह में हर तरह की यात्राएं दी उनके नाखून को खाड़ा उंगलियों काटा आंख में लोहे की सरिया डाली शरीर पर नमक रबड़ दिया इस्लाम कबूल कर करने के लिए उन्हें प्रताड़ित किया लेकिन उसके बावजूद बिना गद्दारी किए इस जिंदगी को छोड़ने का फैसला छावा ने किया वि कौशल की फिल्म में जब यह संवाद आता है जब छावा औरंगजेब से कहता है कि मराठा में तुम शामिल हो जाओ तुम्हारी जान भी बच जाएगी और धर्म भी नहीं बदलना पड़ेगा।

 तोव बताता है कि छावा की कहानी किसी एक धर्म के गुणगान की कहानी नहीं यह कहानी स्वराज की कहानी है व स्वराज जिसका सपना भारत देश के हर एक धर्म के हर एक व्यक्ति ने देखा लेकिन बड़ी हैरानी होती है और यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण लगता है कि ऐसे योद्धाओं के बारे में हमें तब क्यों पता चलता है जब कोई फिल्म आती है या विवाद होता है क्यों हमारी पीढ़ी को ऐसे महान हस्तियों के बारे में पढ़ाया नहीं गया बड़ी हैरानी है।

 हमारी जनरेशन को इस बात की जानकारी क्यों नहीं कि स्वराज के लिए लड़ने वाले योद्धाओं में संभाजी महाराज जैसे योद्धा थे जिन्होंने स्वराज खातिर अपने प्राणों का बलिदान किया था वह भी पूरी वीरता के साथ अंतिम समय में भी जिनकी आंखों में डर नहीं था ऐसे ही योद्धा तो भारत को भारत बनाते हैं और बताते हैं कि शास्त्रों की इस भूमि में ऐसे ऐसे योद्धा हुए हैं।

 जिनके शस्त्र उठाते ही दुश्मनों की चाल बदल जाया करती थी छावा सिर्फ एक कहानी नहीं है छावा एक प्रेरणा है छावा की कहानी अगर आपने नहीं जानी कोई बात नहीं उस दुर्भाग्यपूर्ण दौर में हम भी आप बड़े हुए जब इतिहास में नहीं पढ़ाया गया लेकिन अब जब यह कहानी आई तो हमारी आपकी भी जिम्मेदारी है।

 इस कहानी को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने की हमने अपना काम किया अब आगे आपकी जिम्मेदारी है छत्रपति शिवाजी महाराज की जय भारत माता की जय जय हिंद जय भारत ?

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