अनाथ बालक और नरभक्षी राक्षस विश्वासघात भयऔर मुक्ति कीकहानी
The Orphan Boy and the Flesh-Eating Demon|अनाथ बालक और नरभक्षी राक्षस विश्वासघात भयऔर मुक्ति कीकहानी
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Motivational Kahani in Hindi.
अनाथ बालक और नरभक्षी राक्षस प्रस्तावना बहुत समय पहले की बात है एक छोटे से गांव में एक अनाथ बालक रहता था जन्म से ही माता-पिता को खो देने के कारण उसकी देखभाल कोई नहीं करता था शुरुआती दिनों में गांव वाले उसे भोजन दे दिया करते और वह किसी भी घर में सो जाता लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ ग्रामीणों ने उसे अपने घर में शरण देने से इंकार कर दिया ना कोई ठिकाना था ना कोई सहारा अंततः उसने गांव के बाहर एक झोपड़ी बनाई और वहीं अकेले रहने लगा वह खेतों में मेहनत करता दिन भर काम करके जो भी कमाता उससे खाना खरीदता और अपनी झोपड़ी में सो जाता राक्षस का आगमन गांव में कुछ समय से एक अजीब घटना हो रही थी।
रात होते ही एक नरभक्षी राक्षस गांव में आता और मवेशियों को मारकर खा जाता गांव वालों ने बहुत कोशिश की पर राक्षस का कोई पता नहीं चल पा रहा था एक दिन एक ग्रामीण ने उसे जंगल में देख लिया डर के मारे वह दौड़कर गांव आया और सबको बताया उस रात गांव वाले पूरी तैयारी के साथ छिपकर राक्षस का इंतजार करने लगे जैसे ही रात हुई राक्षस फिर से आया उसने जैसे ही एक गाय को मारना चाहा सभी गांव वाले बाहर निकल आए और उस पर लाठियों और तलवारों से हमला कर दिया।
अचानक इस हमले से घबराकर राक्षस भागने लगा गांव वाले उसका पीछा करने लगे डर के मारे राक्षस भागता हुआ गांव के बाहर बालक की झोपड़ी में आ पहुंचा बालक और राक्षस का समझौता राक्षस जैसे ही झोपड़ी में घुसा बालक चौक गया उसने लाठी उठाई ही थी कि राक्षस गिड़गिड़ा लगा मुझे बचा लो नहीं तो गांव वाले मुझे मार डालेंगे राक्षस की दयनीय हालत देखकर बालक को उस पर दया आ गई लेकिन अगले ही पल उसके मन में एक विचार आया।
गांव वालों ने उसके साथ कितना अन्याय किया था उन्होंने उसे अकेला छोड़ दिया अब वह इस राक्षस के जरिए से बदला ले सकता था बालक ने झट से हामी भर दी लेकिन झोपड़ी सुरक्षित नहीं थी गांव वाले कभी भी आ सकते थे यह सोचकर राक्षस ने अपने शरीर को मक्खी में बदल लिया और बालक के मुंह में घुस गया थोड़ी ही देर में गांव वाले झोपड़ी तक पहुंच गए उन्होंने बालक से पूछा क्या तुमने राक्षस को कहीं जाते देखा है।
बालक ने झूठ बोलते हुए कहा नहीं मैंने कोई राक्षस नहीं देखा गांव वाले निराश होकर लौट गए बालक ने राहत की सांस ली और धीरे से राक्षस से कहा अब तुम बाहर आ सकते हो राक्षस हंसते हुए बोला नहीं अब मैं बाहर नहीं आऊंगा यह शरीर मेरे लिए बहुत आरामदायक है अब मैं यही रहूंगा यह सुनते ही बालक के होश उड़ गए तांत्रिक की सहायता बालक ने सारी रात बेचैनी में बिताई सुबह होते ही वह गांव के तांत्रिक के पास पहुंचा और अपनी समस्या बताई।
तांत्रिक ने गंभीर होकर कहा यह राक्षस बहुत धूर्त है अगर इसे शरीर से निकालना है तो तुम्हें गांव वालों से माफी मांगनी होगी और उनकी मदद लेनी होगी बालक को यह कठिन लगा लेकिन उसके पास कोई और उपाय नहीं था उसने तुरंत गांव वालों से अपने किए की माफी मांगी गांव वालों को जब पूरी सच्चाई पता चली तो वे उसके प्रति सहानुभूति दिखाने लगे।
तांत्रिक ने एक विशेष औषधि बनाई और बालक को दी जैसे ही बालक ने औषधि ग्रहण की उसके शरीर में तीव्र जलन होने लगी वह जमीन पर गिर पड़ा और उल्टी करने लगा तभी एक घिनौना मृत शरीर उसके मुंह से बाहर आ गिरा राक्षस मर चुका था समाप्ति और नया आरंभ गांव वालों ने उस राक्षस के मृत शरीर को मिट्टी में दफना दिया और बालक को पुनः गांव में स्वीकार कर लिया।
इस घटना के बाद उन्होंने उसे कभी अकेला नहीं छोड़ा बालक ने महसूस किया कि नफरत और बदले की भावना कभी भी अच्छे परिणाम नहीं देती वह फिर से गांव वालों के साथ रहने लगा और अब एक परिवार की तरह सभी उसकी देखभाल करने लगे इस प्रकार एक अनाथ बालक जिसने राक्षस से दोस्ती करने की भूल की थी अंततः अपनी सच्चाई स्वीकार कर गांव वालों का विश्वास पुनः जीत सका।
मैंने आपकी कहानी तैयार कर दी है जिसमें एक अनाथ बालक और नरभक्षी राक्षस की रोमांचक और भावनात्मक यात्रा दर्शाई गई है यदि आप कोई बदलाव या सुधार चाहते हैं तो मुझे बताएं ।

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