बोधिधर्म की कहानी | बोधिधर्म की सम्पूर्ण जीवन की परिचय | Hindi Buddhist Story

 बोधिधर्म की कहानी | बोधिधर्म की सम्पूर्ण जीवन की परिचय | Hindi Buddhist Story | Inspirational And Motivational कहानी हिन्दी में,

बोधिधर्म की कहानी

दोस्तों हमारा मन एक पल खुश रहता है तो दूसरे ही पल उदास हो जाता है कभी इधर भागता है तो कभी उधर भागता है इस अश्वर रूपी मन को कैसे अपने वश में किया जाता है हम इसे एक बुद्ध कहानी के माध्यम से जानेंगे।' तो कहानी को बिना स्किप किए अंत तक जरूर देखें बहुत ही प्रसिद्ध कहानी है।

बोधिधर्म की कहानी / बौद्ध धर्म का प्रचार की कहानी. 

 आज से लगभग 1500 साल पहले भारत में एक बौद्ध भिक्षु रहा करते थे उनका नाम था बौधि धर्मा पूरे बौद्ध धर्म के इतिहास में गौतम बुद्ध के बाद अगर कोई सबसे ज्यादा प्रभावशाली और प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षुक हुए हैं तो वह बौधि धर्मा ही थे गौतम बुद्ध के बाद बौधि धर्मा ने ही बौद्ध धर्म को सबसे ज्यादा फैलाया था वह बोधि धर्मा ही थे जो बौद्ध धर्म को भारत से चीन ले गए थे जो बाद में जिन बुद्धिज्म के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

 फिर यह चाइना से होता हुआ जापान कोरिया और दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों में फैल गया उस समय चीन में जो सम्राट था उसका नाम था बू सम्राट बू ने गौतम बुद्ध और उनके शांति के विचारों के बारे में बहुत सुन रखा था और वह उनसे बहुत प्रभावित भी था कहा जाता है कि सम्राट बूस सालों इंतजार करता रहा कि महान हिमालय की दुर्गम घाटियों को पार कर भारत की ओर से कोई बौद्ध भिक्षु चाइना में आ जाए और उसे बुद्ध जम वह उसके विचारों के बारे में बताए जब बोधि धर्मा चाइना पहुंचे तो बड़ा सम्राट बू उनसे मिलने आया उस समय सम्राट बू मानसिक अशांति की समस्या से गुजर रहा था उसने बोधि धर्मा से कहा मैंने बहुत कोशिश की हर तरह से प्रयास करके देख लिया लेकिन मेरे मन में शांति नहीं है।

 यह हर समय भटकता रहता है क्या आप मेरे मन को शांत कर सकते हैं बोधि धर्मा ने कहा कहां है तुम्हारा अशांत मन दो मुझे मैं उसे अभी शांत करके देता हूं सम्राट को कुछ समझ नहीं आया और वह चुपचाप खड़ा रहा बोधि धर्मा ने कहा ठीक ठीक है मैं तुम्हारा मन शांत कर दूंगा लेकिन इसके लिए तुम्हें कल सुबह 4:00 बजे अकेले मेरे पास आना होगा।

 और हां याद रहे अपना अशांत मन अपने साथ ही लेकर आना उसे भूलना मत सम्राट बू को यह जवाब कुछ अजीब सा लगा वो उस पूरी रात सो ना सका सोचता रहा कि कैसा पागल भिक्षु है कहता है मन साथ लेकर आना भला मन भी कोई भरी समान है जिसे मैं छोड़कर आ जाऊंगा उसने कई बार निश्चय किया कि जाने का कोई मतलब नहीं इंसान पागल मालूम पड़ता है।



 लेकिन उसके पास और कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था इसलिए उसने निश्चय किया कि वह एक बार उस भिक्षु के पास जरूर जाएगा अगली सुबह 4:00 बजे सम्राट बू बोधी धर्मा के पास पहुंच जाता है बोधी धर्मा आंखें बंद करके ध्यान में बैठे हुए थे सम्राट की आने की आहट पाकर बोधी धर्मा अपनी आंखें खोलते हैं और सम्राट बू से कहते हैं।

 तो तुम आ गए लाओ अब जल्दी से अपना अशांत मन मुझे दे दो मैं उसे शांत करके तुम्हें वापस देता हूं सम्राट बू ने कहा यह आप कैसी बातें कर रहे हैं क्या मन भी कोई वस्तु है जिसे मैं आपको दे दूं यह तो मेरे अंदर है मेरे सिर की हड्डियों के अंदर है बोधि धर्मा ने कहा तो इससे एक बात तो साफ है कि तुम्हारा मन तुम्हारे ही अंदर है सम्राट ने कहा हां मेरा मन मेरे ही अंदर है।

 बोधि धर्मा ने कहा तब फिर तुम अपनी आंखें बंद करके बैठ जाओ और अपने उस अशांत मन को अपने भीतर खोजो जैसे ही तुम्हारा अशांत मन तुम्हें मिल जाए मुझे बताना मैं उसे शांत कर दूंगा बोधि धर्मा का यह जवाब भी सम्राट बू को अजीब लगा लेकिन वह कर भी क्या सकता था उसने अपनी आंखें बंद की और अपने मन में उठने वाले विचारों को देखने लगा वह अपने अशांत मन को खोजने का प्रयास करता रहा।

 वह जितना अपने अंदर गया वह उतना ही अपने मन को खोजने में असफल रहा कुछ घंटे गुजर गए सूरज निकल आया था सम्राट बू ने अपनी आंखें खोली बोधि धर्मा ने पूछा मिला तुम्हारा अशा मन सम्राट बू ने ना में सिर हिला दिया बोधी धर्मा ने कहा ठीक है कल सुबह फिर आना और दोबारा अपने मन को ढूंढने का प्रयास करना सम्राट बू वहां से चला जाता है अगली सुबह 4:00 बजे फिर सम्राट बू बोधी धर्मा के पास आता है बोधी शर्मा दोबारा सम्राट को आंखें बंद करके बैठ जाने को कहते हैं।

 सम्राट बू दोबारा अपनी आंखें बंद करके अपने अंदर दोबारा अशांत मन को खोजने का प्रयास करता है वह जितना अपने अंदर डूबता चला जाता है वह उतना ही अपने मन और विचारों से दूर होता चला जाता है आज सम्राट बू को बैठे-बैठे दोपहर हो गई अब उसने अपनी आंखें खोली बोधि धर्मा ने पूछा मिला तुम्हारा अशांत मन सम्राट ने फिर सेने में सिर हिला दिया अगले दिन फिर सम्राट सुबह 4:00 बजे बोधी धर्मा के पास आता है और बैठकर अपने अशांत मन को खोजने का प्रयास करता है।

 आज सम्राट को बैठे-बैठे शाम हो जाती है जाते वक्त बोधी धर्मा ने फिर पूछा मिला तुम्हारा अशांत मन सम्राट बू ने फिर सेना में सिर हिला दिया बोधि धर्मा ने कहा ठीक है कल सुबह फिर आना आज सम्राट बू सुबह 3:00 बजे ही आ जाता है और बैठकर अशांत मन को अपने भीतर खोजने लगता है पूरा दिन गुजर जाता है पूरी रात गुजार जाती है लेकिन सम्राट बू अपनी आंखें बंद किए अपने अशांत मन को खोजता रहता है।

 बोधि धर्मा भी सम्राट के पास बैठ जाते हैं वह जितना अपने अंदर उतरता गया वह उतना ही अपने मन को खोजने में असफल रहा वह समझ चुका था के अंदर मन जैसा कुछ नहीं है यह केवल विचारों का एक समूह है जिसे हम मन कहते हैं अगर विचार हैं तो मन है अगर विचार नहीं तो मन भी नहीं जब अंदर मन जैसा कुछ है ही नहीं तो इसके साथ कुछ किया भी नहीं जा सकता।

 जिसे हम मन कहते हैं यह तो सिर्फ वह विचार है जो हमारी अचेतन अवस्था में हमारे भीतर उठते रहते हैं अगर हम हमारी चेतना में आ जाए और जागरूक होकर जीने लगे तो यहां विचार जैसा कुछ नहीं रह जाता और जब विचार नहीं तो मन भी नहीं अब वह समझ चुका था कि बौधि धर्मा उससे बार-बार यह क्यों कह रहे थे कि अपना मन मुझे दो क्योंकि ?

 वे जानते थे कि मन जैसा कुछ नहीं होता सम्राट बू ने अपनी आंखें खोली बोधि धर्मा ने पूछा मिला तुम्हारा अशांत मन सम्राट ने कहा अशांत मन तो नहीं मिला लेकिन वह शांति जरूर मिल गई जिसकी मुझे तलाश थी मैंने जब तक मन की तलाश नहीं की थी तब तक मैं बहुत परेशान रहता था।

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 लेकिन जब मैंने तलाश की तब पाया कि मन जैसा कुछ नहीं होता बोधि धर्मा ने कहा जब भी तुम्हें अशांति महसूस हो तब आंखें बंद करके बैठ जाओ और अपने अंदर देखो कि यह अशांति कहां है और तुम्हें तुम्हारे अंदर कोई अशांति नहीं मिलेगी लेकिन हां जब तुम खोजो तो तुम्हें तुम्हारे भीतर एक ऐसा इंसान जरूर मिलेगा जो बहुत ही शांत चित् और स्थिर है।

 जैसे कि सम्राट बू ने महसूस कर लिया था कि मन कुछ और नहीं बल्कि हमारे विचार ही मन है हम अपने विचारों पर नियंत्रण करके अपने मन को नियंत्रित रख सकते हैं अगर हम अपने जीवन में देखें तो हमारे चारों तरफ ऐसे लाखों लोग हैं जो मानसिक अशांति से परेशान हैं वह सभी इस मानसिक बीमारी से बाहर आना चाहते हैं लेकिन उन्हें पता नहीं कि इससे बाहर कैसे आया जाए।

 और अगर कुछ लोग इससे बाहर आने का प्रयास भी करते हैं तो कुछ शुरुआती असफलताओं के बाद वह हर मन जाते हैं और फिर यह मानसिक अशांति मरते दम तक उनके साथ रहती है कई बार कुछ मानसिक विचार शारीरिक दर्द से भी ज्यादा दर्द नाक होती है और यह इंसान का जीवन बहुत मुश्किल बना देती है लोग इस मानसिक अशांति से गुजरते हैं क्योंकि वह कभी भी अपने अशांत मन को खोजने का प्रयास नहीं करते वह कभी भी अपने भीतर झांक कर यह देखने का प्रयास नहीं करते कि असल में इस मानसिक अशांति का कारण क्या है।

 जैसे कि हमने इस कहने में देखा कि मन जैसी कोई चीज हमारे अंदर नहीं होती असल में मन हमारे अंदर उठ रहे विचारों का समूह है क्योंकि हम अचेतन तरीके से बस कुछ भी सोचे का रहे हैं कभी बीते हुए कल के बारे में सो सोचते हैं तो कभी आने वाले कल के बारे में इन विचारों की भागा दौड़ी में हम यह भूल ही चुके हैं कि जवान ना तो भूत कल में है और ना ही भविष्य में जीवन तो आज में है इसी पल में है।

 जिसे हमने जीना ही छोड़ दिया है अगर हम अपनी चेतन अवस्था में रहना सीख जाए जागरूक होकर अपने अंदर चलने वाले विचारों को देखना शुरू कर दें तो धीरे-धीरे हमारे अंदर उठने वाले विचार कम होना शुरू हो जाएंगे क्योंकि तब विचारों को उत्पन्न होने का समय नहीं मिल पाता क्योंकि हमारा मन ज्यादा तभी सोचता है जब यह अचेतन अवस्था में होता है इसलिए जैसे-जैसे हमारी जागरूकता बढ़ती जाती है।

 हमारे विचारों की उठने की तीव्रता काम होती चली जाती है और जब हम विचार शून्य हो जाते हैं तो हमारा मन गायब हो जाता है और यह हमारे लिए मुसीबत नहीं बल्कि खुशी और शांति का स्रोत बन जाता है इसीलिए अब से जब भी आप अपने लाइफ में अशांति या किसी प्रकार का दुख महसूस करें तो चुपचाप आंखें बंद करके बैठ जाए और अपने अंदर उठने वाले विचारों को देखना शुरू कर दें इन उठते हुए विचारों को रोकने की कोशिश ना करें बस इन्हें आने और जाने दें और ना ही इन विचारों में उलझे।

 आप इन्हें बस ऐसे देखें जैसे कि आप किसी रोड के किनारे खड़े हैं और आती जाती गाड़ियों को देख रहे हैं गाड़ियां आती है और जाती है ऐसे ही विचार आएंगे और जाएंगे आपको बस उन्हें देखते रहना है समय के साथ धीरे धीरे यह विचार आने बंद हो जाएंगे और अंत में आप खुद को एक ऐसे इंसान के रूप में पाओगे जो अंदर से एकदम स्थिर और शांत है दोस्तों ऐसे ही जीवन को बदल देने वाली कहानी  के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें कहानी को अंत तक देखने के लिए आपका धन्यवाद.

1 बोधि धर्मा का इतिहास। 
2 बोधी धर्मा को चाइना में भगवान .
बोधिधर्म की मृत्यु कैसे हुई।
4बोधिधर्मन कौन थे।

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