गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानियाँ | Hindi Motivational Kahani in Hindi
गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानियाँ | Hindi Motivational Kahani in Hindi .
दोस्तों कभी-कभी हम जो सुनते और समझते हैं वह पूरी तरह सत्य नहीं होता आज की कहानी है गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानियाँ , आपने कई महापुरुषों की बातें सुनीनी होंगी कई बुद्ध पुरुषों की बातें सुनी होंगी जब आप उनकी बातें सुनते हैं तो आपके मन में एक प्रश्न उठता है और वह प्रश्न यह है क्या हमारा सांसारिक जीवन जीना व्यर्थ है क्या हमें केवल आध्यात्मिक जीवन जीना चाहिए क्या हमें खुद की खोज करनी चाहिए क्या हमें संसार के भोग विलास का उपभोग नहीं करना चाहिए जो लोग इस सांसारिक जीवन में फंसे हुए हैं उनका जीवन पूरी तरह से व्यर्थ है किसी को अपने माता-पिता के लिए धन कमाना है तो कोई अपने परिवार को सुखी देखना चाहता है कोई अपने बच्चों की चिंता में पीडि़त है तो कोई अपने लिए कुछ करना चाहता है तो कोई नाम कमाना चाहता है दोस्तों इस कहानी को जरा ध्यान से सुनिए क्योंकि यह कहानी आपके जिंदगी भर काम आएगी।
गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानियाँ
एक समय महात्मा बुद्ध नगरवासियों को उपदेश दे रहे थे महात्मा बुद्ध कह रहे थे कि संसार के इस माया जाल में मत फंस संसार से ऊपर उठो संसार से ऊपर उठकर ही तुम संसार को जी सकते हो।
यहां कोई अपना नहीं होता संसार के मोह माया वह फंस गया जिसने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल नहीं किया वह व्यक्ति जो समय पर अच्छे कर्म नहीं करता और बुरे कामों में जुट जाता है वहां आने वाले समय में बड़े दुखों का सामना कर सकता है क्योंकि ?
उसके बुरे कर्म ही उसके दुखों का कारण बनेंगे इसलिए आप सभी इस संसार की मोह माया अर्थात इच्छा लालच क्रोध इत्यादि को ध्यानपूर्वक देखते हुए अपने कर्म करें इतना कहकर महात्मा बुद्ध ने अपना उपदेश समाप्त किया और वहां से चले गए महात्मा बुद्ध जब यह उपदेश दे रहे थे तो वहां पर उस नगर का सबसे धनी व्यक्ति वहीं पर मौजूद था।
और उस व्यक्ति पर महात्मा बुद्ध की बातों का बहुत गहरा असर पड़ा वह सोचने लगा कि अगर सब मोहमाया है तो फिर व्यर्थ की मेहनत करना बेकार है फिर फालतू में क्यों अपने समय को नष्ट किया जाए जब अंत में कुछ भी नहीं बचने वाला जब यहां पर कोई अपना नहीं होता तो फिर किसके लिए व्यर्थ की मेहनत की जाए।
अब उसका मन अब संसारी जीवन में नहीं लगता था वह संसारी जीवन से हटने लगा अब उसे अपना सब कुछ किया हुआ व्यर्थ नजर आने लगा था देखते ही देखते कुछ ही सालों में उसका सारा व्यापार चौपट होने लगा था उस धनी व्यापारी के परिवार के सभी सदस्य उसे इस तरह से देखकर बहुत चिंतित रहने लगे थे और जब भी कोई उससे बात करने की कोशिश करता था तो वह धनी व्यापारी एक ही बात कहता यह धन दौलत तो सब बेकार की चीजें हैं।
यह सब तो मोह माया है सब बेकार है भला हम रिश्ते निभाकर क्या करेंगे यह सब तो मोह है जीवन तो केवल एक ही है और वह है मुक्ति अब तो केवल उसी की आस है उसी की प्यास है मैं इतना समझ चुका हूं कि अब से जो भी होगा वह सब अच्छा होगा अब से उसने व्यापार पर भी ध्यान देना बिल्कुल बंद कर दिया था और देखते ही देखते वह धनी व्यापारी उस नगर का सबसे गरीब व्यक्ति बन चुका था।
वह पूरी तरह से निधन हो चुका था उसका सब कुछ बर्बाद हो चुका था एक दिन जब उसके घर में खाने के लिए कुछ नहीं बचा तो उसने अपने आप से कहा यह मैंने क्या कर दिया सब कुछ तो बहुत अच्छा चल रहा था लेकिन मैंने अपने हाथों ही सब कुछ बर्बाद कर दिया आज मेरे परिवार का हर एक सदस्य भूखा है।
उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं और मैं उनके लिए कुछ नहीं कर पा रहा हूं वह यह सब सोच ही रहा था कि तभी उसे याद आया कि उसने महात्मा बुद्ध की बातों में आकर अपना जीवन बर्बाद कर लिया ना तो उसे मुक्ति मिली और ना ही सुकून अब तो भोजन के लिए भी आज मुझे रोज मरना पड़ता है हर रोज मुझे मेहनत करनी पड़ती है।
तब जाकर मेरे परिवार को दो वक्त की रोटी मिल पाती है अपने परिवार की इस तरह से बुरी हालत देखकर उससे रहा नहीं गया वह बहुत चिंतित रहने लगा था तब उसके मन में ख्याल आया कि वह अब किससे मदद मांगेगा आखिर अब उसका साथ कौन देगा तभी उसे याद आया कि उसे महात्मा बुद्ध के पास ही जाना चाहिए क्योंकि ?
बुद्ध के कारण आज उसकी यह हालत है उसके हालात के जिम्मेदार तो वही हैं मैं तो सीधा-सीधा अपने मार्ग पर जा रहा था लगातार अपने व्यापार में उन्नति कर रहा था लेकिन जब से मैंने उनकी बातें सुनी तब से मेरा मन विचलित हो गया उनकी फालतू बातों में आकर मैंने अपना सब कुछ बर्बाद कर दिया मेरे हालात के जिम्मेदार तो वही है।
इसलिए मुझे उनके पास ही जाना होगा अपने मन में क्रोध लिए दो दिनों की लंबी यात्रा करके वह महात्मा बुद्ध के पास पहुंचा और क्रोध में आकर महात्मा बुद्ध से कहता है हे बुद्ध आपको कोई ज्ञान नहीं आपने सत्य की प्राप्ति की है आप तो केवल भोले भाले लोगों को फंसाना जानते हैं अपनी चिकनी चपरी बातों में उन्हें बहलाना जानते हैं।
आप लोगों के सीधे पन का फायदा उठाकर अपनी प्रसिद्धि और अपनी प्रशंसा करवाते हैं आप हमें ऐसे सपने दिखाते हैं जो कभी पूरे नहीं होते मैं भी ऐसा ही एक सीधा-साधा व्यक्ति था और मैं उस नगर का सबसे बड़ा धनी व्यक्ति था आपसे मिलने से पहले सब कुछ ठीक चल रहा था मेरे पास धन की कोई कमी नहीं थी सारे ऐशो आराम थे।
सारी सुख सुविधाएं थी लेकिन जब से मैंने आपका उपदेश सुना मैं आपसे इतना प्रभावित हो गया कि मैंने आपकी बातों को ही मानना शुरू कर दिया और वह सारी चीजें छोड़ दी जो मुझे संसारी जीवन से जोती थी अर्थात संसार की सारी मोह माया मैंने त्याग दी और आज देखिए आपकी वजह से मेरा पूरा परिवार भिखारी बन चुका है वह छोटी सी कुटिया में रहता है।
यहां तक कि रोज के खाने के लिए भी नहीं है आपकी वजह से मैं पूरी तरह से बर्बाद हो चुका हूं उस व्यक्ति के इतना कहने के बाद महात्मा बुद्ध शांति से मुस्कुराते हुए उस व्यक्ति से कहते हैं आखिर तुम्हारे साथ क्या हुआ है और तुमने मेरी बातों का क्या मतलब निकाला इस पर वह व्यक्ति महात्मा बुद्ध को सारी बातें बता देता है।
आप कहते हैं कि धन दौलत की इच्छा करना यह काम सब मोह माया से भरा है आप सांसारिक जीवन को बुरा कहते हैं और खुद इस संसार में आकर भिक्षा मांगते हैं आप आध्यात्मिक जीव को अच्छा बताते हैं किंतु मेरा एक प्रश्न है इस आध्यात्मिक जीवन से हमें क्या मिलता है इससे हमें क्या लाभ आपने कहा था कि हमें आध्यात्मिक जीवन से सुख प्राप्त होता है।
लेकिन मैंने तो जब से आध्यात्मिक जीवन अपनाया है तब से मुझे केवल दुख ही दुख मिला है यहां तक कि मेरे पास जो कुछ भी था वह भी सब में खो बैठा हूं आप लोगों को झूठा सुख दिखाकर उन्हें अंधकार में ढकेल देते हैं क्या यह वास्तविकता नहीं इस पर महात्मा बुद्ध मुस्कुराते हुए उस व्यक्ति से कहते हैं।
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| गौतम बुद्ध की प्रेरणादायक कहानियाँ |
बेटा तुम बहुत दूर से आए हो अभी तुम विश्राम करो रात को आकर मैं तुम्हें तुम्हारे सभी प्रश्नों का जवाब दे दूंगा पहले तो उस व्यक्ति ने इंकार किया लेकिन महात्मा बुद्ध के आग्रह पर वह व्यक्ति महात्मा बुद्ध की बात मान गया और आश्रम में जाकर विश्राम करने लगा।
रात्रि के बाद महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति के पास आए और कहा बेटा मैंने एक व्यक्ति की बात सुनी और वह कह रहा था कि एक हाथी हवा में उड़ रहा था उसने तो यह भी देखा कि एक बड़ी मछली अपने पैरों से जमीन पर चल रही थी और एक कुत्ता समुद्र की गहराइयों में सांस ले रहा था।
वह व्यक्ति महात्मा बुद्ध की सारी बातें सुनकर महात्मा बुद्ध से कहता है फिर तथागत उसके आगे क्या हुआ आखिर आप चुप क्यों हो गए तभी महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति को समझाते हुए कहते हैं बेटा क्या तुम्हें लगता है कि ऐसा वास्तव में हो सकता है इस पर व्यक्ति जवाब देते हुए कहता है बुद्ध अगर आप कह रहे हैं तो यह अवश्य ही सच होगा क्योंकि ?
आप इतने बड़े ज्ञानी हैं आपने सत्य की प्राप्ति की है तो आपके मुख से निकला हुआ हर एक शब्द तो सत्य ही होगा तभी महात्मा बुद्ध मुस्कुराते हुए उस व्यक्ति से कहते हैं बेटा क्या तुमने कभी पहले ऐसा कभी होते हुए देखा है क्या तुमने कभी किसी हाथी को देखा है जो पर के साथ हवा में तेजी से उठता जा रहा हो।
इसके जवाब में वह व्यक्ति कहता है तथागत मैंने तो कभी नहीं देखा तभी महात्मा बुद्ध कहते हैं तुमने मुझसे प्रश्न क्यों नहीं किया कि आखिर वह हाथ ही आकाश में कैसे उड़ सकता है इसके जवाब में व्यक्ति कहता है हे तथागत आपके मुंह से सुनकर मुझे ऐसा लगा कि मानो बात सत्य हो और आप कह रहे हैं तो यह सत्य ही होगा।
इसलिए मैंने आपसे एक भी बार प्रश्न नहीं किया तभी महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति को समझाते हुए कहते हैं कभी किसी की बातों पर मत जाना बल्कि खुद विचार करो संयम से सोचो कि उस बात में कितनी सच्चाई है जो व्यक्ति कह रहा है क्या वह सच है आखिर वह कहना क्या चाहता है।
हो सकता है कि वह कुछ और कहना चाहता हो और तुम उसका अर्थ कुछ और ही निकाल रहे हैं कम से कम तुम्हें एक बार प्रश्न करके यह समझना तो चाहिए कि आखिर वह कहना क्या चाहता है अगर तुम मुझसे पूछते कि आखिर वह हाथी हवा में कैसे उड़ सकता है तो इसका जवाब मैं तुम्हें अवश्य देता मैं तुम्हें ऐसा बताता कि एक छोटा सा बच्चा अपने खिलौनों के साथ खेल रहा है।
वह हाथी को हवा में उड़ा रहा है और कुत्ते को पानी में डूबा रहा है और रही बात मछली की तो वह उसे जमीन पर चला रहा है क्या ऐसा संभव नहीं हो सकता इसके जवाब में व्यक्ति कहता है हां बिल्कुल ऐसा हो सकता है महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति को कहते हैं इसी प्रकार मैं कभी किसी को निर्धन या गरीब होने के लिए नहीं कहता।
निर्धनता या गरीबी तुम्हारे विकास में बाधक बन जाती है जिससे तुम और कुछ नहीं सोच पाते और ना ही कुछ समझ पाते हो इन भिक्षुओं को देखो जब इन्हें भोजन की आवश्यकता होती है तो यह भिक्षा मांगने के लिए निकल पड़ते हैं लेकिन यह भिक्षा कहां से आती है।
इसके जवाब में व्यक्ति कहता है हे तथागत हर कोई रोज मेहनत करता है ताकि उसके परिवार का पालन पोषण हो सके और जो वह मेहनत करता है उसके बदले में उसे कुछ पैसे मिलते हैं उन पैसों से भोजन खरीदता है और वही भोजन वह आपको भी सौंप है और वहीं से भिक्षा आती है तभी महात्मा बुद्ध उस वक्त से एक और प्रश्न करते हैं बेटा यह बात तो सत्य है लेकिन तुम क्या मुझे यह बता सकते हो कि आखिर यह धन कहां से आता है।
इसका जवाब देते हुए व्यक्ति कहता है तथागत धन तो सभी लोग अर्जित करते हैं सभी कमाते हैं तभी महात्मा बुद्ध इस व्यक्ति को समझाते हुए कहते हैं ठीक इसी प्रकार दुनिया में यदि हर कोई भिक्षा मांगने लग जाए तो आखिर भोजन कहां से आएगा अनाज कौन उगाए व्यापार कौन करेगा और लोगों की रक्षा के लिए धन कहां से इकट्ठा होगा।
लोगों की जरूरतें कैसे पूरी होंगी यह सुनकर व्यक्ति थोड़ा अचरज में पड़ गया और महात्मा बुद्ध से कहता है किंतु हे तथागत आप ही तो कहते हैं कि मनुष्य की इच्छा कामना और वासना लालच और क्रोध यह सभी मनुष्य के विकार है और हमें इनसे दूर रहना चाहिए।
तभी वह आत्मज्ञानी कहलाता है तभी महात्मा बुद्ध कहते हैं बेटा मैं तो अभी भी यही कह रहा हूं कि मन को इन सब चीजों से दूर रहना चाहिए इस पर व्यक्ति महात्मा बुद्ध की बात काटते हुए कहता है पर दुनिया तो इसी पर चल रही है इसके बिना भला या संसार कैसे चल सकता है हर किसी को पैसों की जरूरत है बिना पैसों के बाहर अपने परिवार को नहीं चला सकता।
वह अपने परिवार का पालन पोषण नहीं कर सकता वह अपने परिवार के लिए भोजन नहीं ला सकता और यदि वह पैसे नहीं कमाए तो वह भूखा मर जाएगा तभी महात्मा बुद्ध कहते हैं बेटा यह संसार इन चीजों से नहीं चल रहा है इन चीजों से बिगड़ रहा है इस पर व्यक्ति कहता है है तथागत आखिर आप क्या कहना चाहते हैं मैं आपकी बात समझ नहीं पा रहा।
संसार में इच्छा कामना वासना और क्रोध ही तो है और जब हम इनका त्याग कर देते हैं तब हम अध्यात्म के मार्ग की ओर आगे बढ़ते हैं अर्थात मुक्ति के मार्ग पर यानी कि हम सन्यासी के मार्ग पर चलते हैं इस पर महात्मा बुद्ध जवाब देते हुए कहते हैं बेटा तुमने जो कुछ कहा वह भी एक बहुत बड़ा सत्य है इच्छा कामना वासना और क्रोध ऐसे ही बुरी भावनाओं को छोड़ देने से हम संसार छोड़कर सन्यासी हो जाते हैं ।
और इन्हीं सभी चीजों को छोड़कर भी हम संसार में जी सकते हैं धन कमा सकते हैं मान पद प्रतिष्ठा और सम्मान कमा सकते हैं क्योंकि हम सब अपना कर्म ही तो कर रहे एक किसान खेती करता है पर वह अपनी खेती बिना बुरी भावनाओं के भी कर सकता है एक व्यापारी व्यापार करता है।
और इस व्यापार में चीजों को यहां से वहां पहुंचना होता है और वह व्यापारी इन चीजों को बिना बुरी भावना के कर सकता है ठीक उसी प्रकार एक राजा भी अपनी प्रजा की रक्षा करता है और वह भी अपने कर्म बिना किसी बुरी भावना के कर सकता है और एक भिक्षु इन सभी लोगों को सही प्रकार और सही कार्य करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं।
जो उस भिक्षु का कर्म है जो उसका कार्य है और जो व्यक्ति जागृत होकर अपने कर्मों का सही पालन करता है वास्तविकता में वही सन्यासी हैं वही भिक्षु है क्योंकि हम जो भी कर्म कर रहे हैं वह हमारा इस संसार में रहने के लिए जीवित होने के लिए जीवन जीने के लिए केवल एक माध्यम मात्र ही है।
उसे छोड़कर हम कुछ भी नहीं पा सकते और हमारे सभी कर्म करते हुए हमारा मुख्य उद्देश्य जागृत होना है खुद को पहचानना है एक बार यदि हमारे भीतर ज्ञान का उदय हो गया तब हम चाहे जो भी करें वह फिर संसारी हो या सन्यासी सब एक ही होते हैं इस पर व्यक्ति महात्मा बुद्ध से कहता है हे बुद्ध किंतु मैंने तो देखा है कि आप अपने संघ में उन लोगों को भी शामिल करते हैं।
जो लोग अपने परिवार को छोड़कर आए अपने माता-पिता को अपने बीवी बच्चों को छोड़कर आए क्या आप उनसे कभी यह कहते हैं कि जाकर अपनी जिम्मेदारियां पूरी करो और धन कमाओ और वहीं पर रहकर तुम आत्मज्ञान प्राप्त करो उस व्यक्ति के प्रश्न का जवाब देते हुए महात्मा बुद्ध कहते हैं क्या ?
तुम हाथी को हवा उड़ा सकते हो इसके जवाब में वह व्यक्ति कहता है नहीं मैं नहीं उड़ा सकता तभी महात्मा बुद्ध कहते हैं केवल एक बच्चा ही हाथी को हवा में उड़ा सकता है ठीक उसी प्रकार जिस व्यक्ति को जो बनना है वह तो वह बनकर ही रहेगा जैसे किसी व्यक्ति को व्यापारी बनना है तो वह व्यापारी बनेगा ठीक इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति को आत्मज्ञान की प्राप्ति करनी है तो उसे सब कुछ तो त्यागना ही होगा।
आगे महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति से कहते हैं बेटा क्या तुम सब कुछ छोड़कर आत्मज्ञान के मार्ग पर आगे बढ़ते या फिर तुम यह सोच रहे थे कि इस रास्ते पर चलकर जीवन आसान हो जाएगा जो होगा सब अच्छा होगा सब कुछ अपने आप ही मिलने लगेगा मुझे तो कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी सारे दुख दर्द सब कुछ समाप्त हो जाएगा और जीवन में चमत्कार होने लगेगा और अंत में मुक्ति भी मिल जाएगी।
महात्मा बुद्ध की यह बात सुनकर उस व्यक्ति को अपनी गलती का एहसास हो गया वह महात्मा बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और कहने लगा हे तथागत आप सत्य कहते हैं मैंने तो कुछ ऐसा ही सोचा था क्योंकि मेरा व्यापार सही नहीं चल रहा था तो मुझे लगा कि सब कुछ छोड़कर सब मिल जाएगा मुझे कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी और मेरे सारे दुख दर्द हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे।
और मैं आत्मज्ञान भी प्राप्त कर पाऊंगा तभी महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति से कहते हैं बेटा भिक्षु हो जाना कोई आसान बात नहीं है इसके लिए सब कुछ त्यागना पड़ता है एक-एक चीज जिसे तुम बहुत प्रेम करते हो वह सारी चीजें तुमसे एक-एक करके दूर हो जाती हैं तो क्या तुम भिक्षु बनने के लिए तैयार हो क्या तुम सब कुछ छोड़कर अध्यात्म के मार्ग में आगे बढ़ना चाहते हो इसके जवाब में व्यक्ति कहता है।
हे तथागत मुझे मेरी गलती का एहसास हो चुका है मुझे भिक्षु नहीं बनना मैं तो व्यापारी ही ठीक हूं मैं तो अपने संसारी जीवन में ही खुश था परंतु अब भी मेरे मन में एक प्रश्न शेष बचा है अगर आपकी आज्ञा हो तो वह प्रश्न भी मैं आपसे पूछना चाहूंगा तभी महात्मा बुद्ध उसे आज्ञा देते हैं ।
इस पर व्यक्ति कहता है तथागत आप ही तो कहते हैं कि धन नहीं कमाना चाहिए पद प्रतिष्ठा अहंकार हमें दुख की ओर ले जाते हैं और संसार में यही तो है और क्या है यदि हमें संसारी जीवन जीना है तो हमें यह सब तो करना ही पड़ेगा तभी महात्मा बुद्ध मुस्कुराते हुए उस व्यक्ति से कहते हैं क्या ?
तुम्हें भूख लगी है इस पर व्यक्ति कहता है हां तथागत मुझे बहुत भूख लगी है तभी महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति को भोजन करवाते हैं और उसे भर पेट भोजन खिलाने के बाद महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति से कहते हैं लो और खाओ यह सब तुम्हारे लिए ही है इसके जवाब में वह व्यक्ति कहता है तथागत मैं पहले ही बहुत ज्यादा खा चुका हूं अब मुझसे और नहीं खाया जाएगा।
मेरे पेट में अब जरा भी जगह नहीं रह गई है यदि मैंने और अधिक खाया तो मेरा पेट दर्द करने लग जाएगा और फिर मुझे तरह-तरह की परेशानियां होने लगेंगी मैं परेशान हो जाऊंगा तभी महात्मा बुद्ध मुस्कुराते हुए उस व्यक्ति से कहते हैं बेटा मैं भी तो तुम्हें यही समझाने का प्रयास कर रहा हूं कि जितनी जरूरत है उतना ही खाओ क्योंकि हर चीज जब हद से ज्यादा हो जाती है।
तो वह नुकसान जरूर पहुंचाती है फिर वह चाहे धन हो चाहे इच्छा चाहे लालच या फिर कामना या वासना सब कुछ हद से ज्यादा आपको नुकसान ही पहुंचाएगा और यह सब ब आपको केवल दुख ही देंगे इसीलिए इन्हें नियंत्रण में रखना चाहिए जितने की हमें आवश्यकता है उतना ही हमें चाहिए और जब आप इसे नियंत्रण में रखते हैं तो यह कभी आपको दुख नहीं दे पाएगा।
आप हमेशा सुखी रहो आगे महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति से कहते हैं सुनो धन कमाना आवश्यक है क्योंकि धन की कमी नहीं होनी चाहिए भोजन की कमी नहीं होनी चाहिए किसी भी कार्य को करने के लिए मन में इच्छा की कमी नहीं होनी चाहिए लेकिन उसी के साथ में यह भी ध्यान रखना है कि इच्छा अत्यधिक भी नहीं होनी चाहिए।
और मैं तुम्हें यही समझाने का प्रयास कर रहा हूं इसीलिए जाओ और धन कमाओ व्यापार से अपने कर्म से ना केवल अपना बल्कि दूसरों का भला भी करो जब तुम अपने किए कार्यों की सांसारिक कार्यों से लोगों का भला करते हो तब तुम में और किसी सन्यासी अर्थात किसी भिक्षु में कोई अंतर नहीं रह जाता बस सभी के मार्ग अलग हो गए हैं।
लेकिन मंजिल एक होती है और तुम कभी मार्ग से भटकना नहीं तुम लोगों की संगत में रहना जो तुम्हें अपने आत्मज्ञान के सीधे मार्ग पर ले चले जो सांसारिक जीवन से हटकर नए जीवन में प्रवेश करवाए क्योंकि वे लोग बुराइयों से लड़ने में तुम्हारी मदद करेंगे तुम्हें ताकत मिलेगी और तुम लगातार बिना विचलित हुए अध्यात्म के मार्ग पर लगातार आगे बढ़ाते चले जाओगे।
इतना कहकर महात्मा बुद्ध शांत हो गए वह व्यक्ति महात्मा बुद्ध को प्रणाम कहता है हैं तथागत आपकी शिक्षा यह तो बिल्कुल अलग है आप जो कहते हैं उसके पीछे का अर्थ कुछ अलग ही होता है बहुत सीधा और सरल लेकिन हम उसे समझ नहीं पाते आपके पास चमत्कार का आश्वासन नहीं है।
पर आपके पास वह मार्ग है जिसमें मार्ग पर चलकर मैं अवश्य ही अध्यात्म को प्राप्त कर सकता हूं जिससे मेरा और लोगों का सभी का भला होगा हे तथागत यह मेरी ही गलती थी कि मैंने आपकी बातों का गलत मतलब निकाला और एक व्यापारी होकर भी मैंने अपने कर्म को छोड़ दिया।
और यह सोचने लगा कि अब अपने आप सब कुछ अच्छा ही होगा लेकिन यह सत्य है कि अपने आप कुछ नहीं होता जब हम हाथ पैर चलाएंगे काम करेंगे कर्म करेंगे तभी हमें फल मिलेगा जब हम हाथ पैर मारना छोड़ते हैं तो नदी का बहाव हमें अपने साथ बहा कर ले चला जाता है और तब हमारे हाथों में कुछ नहीं रह जाता और यही मेरे साथ भी हुआ है।
तथागत आज से मैं आपको वचन देता हूं कि मैं अपना कर्म पूरी मादारी के साथ करूंगा आपके दिए हुए मार्ग पर मैं पूरी ईमानदारी से चलूंगा मैं आपको वचन देता हूं कि मैं एक अच्छा व्यापारी और एक अच्छा इंसान बनकर रहूंगा मैं आत्मज्ञान के मार्ग पर अपने कर्म करते हुए आगे बढ़ता रहूंगा।
इतना कहकर वह व्यक्ति महात्मा बुद्ध को प्रणाम करके वहां से लौट गया ।
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धन्यवाद ...

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