मनुष्य के बर्बाद होने के तीन कारन | स्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानियां | स्वामी विवेकानंद स्टोरी इन हिन्दी

 मनुष्य के बर्बाद होने के तीन कारन | स्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानियां | स्वामी विवेकानंद स्टोरी इन हिन्दी 


स्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानियां =  नमस्कार दोस्तों आप सभी का Best Life Hindi चैनल पर स्वागत है।  दोस्तों आज की कहानी  के माध्यम से स्वामी विवेकानंद के विचारों के साथ मनुष्य के बर्बादी के तीन कारणों के बारे में जानेंगे तो कहानी के अंत तक जरूर बने रहे। स्वामी विवेकानंद कहते हैं 'काम क्रोध और लोभ ' यही वह तीन द्वार हैं जिनमें आज इंसान उलझा हुआ है जिसके कारण उसे शांति नहीं मिल पाती।


स्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानियां | स्वामी विवेकानंद स्टोरी इन हिन्दी 

 प्राचीन काल के एक राज घराने में में एक लड़के का जन्म हुआ उस लड़के को बहुत ही कम उम्र में राजशाही सुख सुविधाओं से दूर शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरुकुल भेज दिया गया जिस गुरुकुल में वह बालक शिक्षा ग्रहण कर रहा था।


 वहां का वह सबसे होनहार विद्यार्थी था गुरुकुल में उस बालक ने सारे वेद पुराण और शास्त्रों का अध्ययन किया परंतु दुर्भाग्य से उस बालक की अभी गुरुकुल की शिक्षा समाप्त भी नहीं हुई थी कि उसके माता-पिता एवं भाई बहन एक प्राकृतिक आपदा में मारे गए।


 माता-पिता व अपने भाई बहन को खोने के कारण वह बालक सांसारिक मोहमाया से विरक्त हो गया और गुरुकुल से शिक्षा पूर्ण करने के बाद उसने प्रण लिया कि वह अपना संपूर्ण जीवन लोगों की भलाई में व्यतीत करेगा।


 उसके बाद वह बालक सन्यासी बन गया और वह सांसारिक वस्तुओं से दूर हिमालय के जंगलों में चला गया फिर उसने वहां लंबे समय तक तपस्या की और तपस्या पूर्ण होने के बाद उस सन्यासी ने लोगों को शिक्षा देना आरंभ कर दिया समय के साथ-साथ उस सन्यासी की चर्चा चारों ओर होने लगी और दूर दूर से लोग उनके पास शिक्षा प्राप्त करने और अपनी समस्या का समाधान खोजने आने लगे।


 सन्यासी सभी लोगों की समस्या बड़े ही आसानी से सुलझा देता जिस वजह से वह कुछ ही समय में पूरे राज्य में मशहूर हो गया दुर्भाग्य से उस समय उस राज्य का राजा बहुत ही क्रूर व्यक्ति था उसे जब उस सन्यासी के बारे में पता चला तो उसने सन्यासी से मिलने का निश्चय किया और अगली सुबह वह उस सन्यासी के कुटिया जा पहुंचा।


 वहां पहुंचकर उसने उस सन्यासी से भेंट की जिसके बाद वह राजा पहली ही मुलाकात में सन्यासी के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसी समय से अच्छाई की राह पर चलने की ठान ली और मन ही मन सोचने लगा कि इतनी छोटी सी मुलाकात में वह सन्यासी मुझे इतना बदल सकता है तो यह अगर हमेशा मेरे साथ रहने लगे तो मेरी तो जिंदगी ही बदल जाएगी।


 इसके बाद राजा सन्यासी से अपने साथ राजमहल चलने के लिए आग्रह करने लगा राजा के आग्रह को सन्यासी ठुकरा ना सके और वह राजमहल चलने को तैयार हो गए राजा सन्यासी को साथ लेकर राजमहल की ओर चल दिए राजमहल पहुंचने पर सन्यासी का खूब आदर सत्कार किया गया उसके बाद राजा ने सन्यासी को भोजन करवाया भोजन के पश्चात सन्यासी ने राजा को धन्यवाद दिया और राजा से जाने की आज्ञा मांगी।


 जिस पर राजा ने सन्यासी से कहा कि आप हमारे बगीचे में जब तक चाहे रह सकते हैं आपको यहां किसी भी प्रकार की कोई असुविधा नहीं होगी यह सुनकर सन्यासी ने राजा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया उसके बाद राजा ने अपने सेवकों से कहा कि बगीचे में सन्यासी को रहने खाने का प्रबंध किया जाए राजा की आज्ञा के अनुसार सेवकों ने बगीचे में एक सुंदर सी कुटिया का निर्माण कर दिया।


 वह सन्यासी कई सालों तक उस कुटिया में रहे और इस दौरान राजा ने भी उनकी खूब सेवा की परंतु कई सालों बाद एक दिन अचानक राजा और रानी को आवश्यक कार्य से दूसरे राज्य जाना पड़ा और उन्होंने एक सेवादार को उस सन्यासी की सेवा के लिए नियुक्त कर दिया परंतु वह सेवादार राजा के जाने के बाद बीमार पड़ गया और अपने घर चला गया और वह लौटकर नहीं आया ऐसे में सन्यासी को कोई भोजन देने वाला भी नहीं था।


 कुछ दिनों बाद जब राजा अपने पड़ोस के राज्य से वापस आए तो सन्यासी ने क्रोध में आकर उस राजा को खूब डांटा और राजा से कहा हे राजन जो जिम्मेदारी तुम पूरी नहीं कर सकते हो वह उठाते ही क्यों हो तब राजा ने सन्यासी से क्षमा मांगते हुए कहा हे भगवन यदि कोई मुझसे भूल हो गई हो तो मैं उसके लिए क्षमा मांगता हूं मुझे क्षमा कर दीजिए।


 कुछ देर बाद मामला शांत हो गया रानी भी यह सब चुपके से देखती पर शांत रही उसके बाद राजा ने उस सन्यासी को कोई भी शिकायत का मौका नहीं दिया और उनकी खूब सेवा की परंतु कुछ दिनों बाद एक बार फिर राजा को एक आवश्यक कार्य से राज्य के बाहर जाना पड़ा मगर इस बार राजा ने राज्य के बाहर जाने से पहले रानी को निर्देश दिया कि जब तक मैं नहीं आता आप स्वयं सन्यासी की सारी जरूरतों का पूरा ध्यान रखेंगी।


 राजा के जाने के बाद रानी हर रोज भोजन पकवा कर सन्यासी को भेज देती लेकिन एक दिन रानी नहाने के लिए चली गई और सन्यासी को भोजन देना भूल गई सन्यासी ने काफी देर तक भोजन आने का इंतजार किया पर जब भोजन नहीं आया तो सन्यासी सोच में पड़ गया उसके बाद सन्यासी ने सोचा कि वह खुद महल में जाकर देखे और वह महल पहुंच गया।


 वहां जाकर उसकी नजर रानी पर पड़ी और वह रानी के रूप को देखकर चकित रह गया रानी की सुंदरता सन्यासी के मन में घर कर गई सन्यासी रानी के रूप की सुंदरता को भुला ना सका और वह खाना पिना छोड़कर अपनी कुटिया में पड़ा रहा उसने कई दिनों तक कुछ भी नहीं खाया।


 जिस वजह से वह बहुत ही कमजोर हो गया कुछ समय बाद राजा वापस लौट आया और उसे सन्यासी के हाल का पता लगा तो वह सीधे सन्यासी के पास पहुंच गया और सन्यासी से कहा आप बहुत कमजोर हो गए हैं। आप किस गहरी सोच में डूबे हुए हैं क्या मुझसे कोई भूल हो गई है।


 तब सन्यासी ने राजा को बताया कि हे राजन मैं आपकी रानी की अद्भुत सुंदरता के फेर में पड़ गया हूं और रानी के बिना जिंदा नहीं रह सकता यह सुनकर राजा ने सन्यासी से कहा कि आप मेरे साथ महल चलिए मैं आपको रानी दे दूंगा फिर राजा सन्यासी को लेकर महल चले गए।


 भाग्य से उस दिन रानी ने अपने सुंदर गहने व वस्त्र पहने हुए थे। राजा रानी के पास पहुंचे और कहा आपको सन्यासी की मदद करनी चाहिए वह बहुत कमजोर पड़ गए हैं और मैं नहीं चाहता कि किसी ज्ञानी पुरुष की हत्या का कलंक मेरे सिर लगे तब रानी ने राजा से पूछा कि सन्यासी के दुख का कारण क्या है।


 राजा ने कहा सन्यासी आपकी सुंदरता के दीवाने हो गए हैं यह सुनकर रानी ने कहा कि हे राजन आप चिंता ना करें मुझे पता है कि मुझे क्या करना है जिससे ही आपके माथे पर एक सन्यासी की हत्या का पाप लगेगा और ना ही मेरी पतिव्रता धर्म नाश होगी और फिर राजा ने रानी को सन्यासी को सौंप दिया।


 उसके बाद सन्यासी रानी को लेकर कुटिया पर पहुंचा तो रानी ने सन्यासी से कहा कि हमें रहने के लिए घर चाहिए। यह सुन सन्यासी तुरंत राजा के पास गया और कहा हे राजन हमें रहने के लिए घर चाहिए राजा ने उनके लिए घर का प्रबंध किया सन्यासी रानी को लेकर जब उस घर में पहुंचा तब रानी ने कहा घर तो बहुत गंदा है।


 और इसकी हालत तो बहुत खराब है सन्यासी फिर राजा के पास पहुंचा और कहा आपने जो घर मुझे दिया है उस घर की हालत तो बहुत खराब है। तब राजा ने उस घर की हालत ठीक करवा दी फिर रानी ने नहा धोकर बिस्तर पर आ गई और सन्यासी भी बिस्तर पर आ गया रानी ने सन्यासी से कहा क्या आपको पता है कि आप कौन थे और आप क्या बन गए।


 आप एक महान सन्यासी थे जिसके लिए राजा भी स्वयं सारी जरूरत की वस्तुओं को उपलब्ध कराते थे और आज आप वासना के कारण मेरे गुलाम हो गए हैं। यह सुनकर सन्यासी को महसूस हुआ कि वह तो एक सन्यासी हैं जो अपनी सारी सुख सुविधाओं को छोड़कर शांति की तलाश में जंगलों में चले गए।


 सन्यासी जोर-जोर से चिल्लाने लगा और रानी से कहा क्षमा कीजिए मैं अभी आपको राजा को सौंप देता हूं। तब रानी ने प्रश्न किया महाराज जब उस दिन आपको भोजन नहीं मिला तो आप बहुत क्रोधित हो गए थे।

मनुष्य के बर्बाद होने के तीन कारन | स्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानियां | स्वामी विवेकानंद स्टोरी इन हिन्दी 

स्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानियां 


 मैंने आपका यह रूप पहली बार देखा था तभी से मैंने आपके व्यवहार में परिवर्तन महसूस किया तब सन्यासी ने रानी को समझाया कि जब मैं जंगल में था तो मुझे समय पर भोजन भी नहीं मिला करता था पर महल में आने के बाद मुझे सुविधाएं मिली और मैं उसके मोह में फंस गया मुझे इसके प्रति लगाव उत्पन्न हो गया और फिर इनको पाने का लालच हो गया और जब मुझे नहीं मिला तो क्रोध उत्पन्न हुआ।


 सन्यासी ने कहा सच तो यह है कि अगर इच्छा पूरी ना हो तो क्रोध उत्पन्न होता है और अगर पूरी हो जाए तो लालच बढ़ जाता है। सन्यासी ने कहा कि आज मैं आपको तीन ऐसे कारणों के बारे में बताऊंगा जिन पर यदि व्यक्ति नियंत्रण पा लेता है तो वह दुख और परेशानियों से बचा रहता है वहीं जो व्यक्ति इन दोषों पर नियंत्रण नहीं कर पाता है।


 वह बर्बाद होने के कगार पर पहुंच जाता है पहला इच्छा दुनिया के हर एक व्यक्ति के अंदर का सबसे पहला अवगुण होता है उसकी इच्छाएं जो व्यक्ति अपनी इच्छाओं को नियंत्रण में नहीं रख पाता है वह जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं होता है क्योंकि जैसे ही उसकी एक इच्छा पूरी होती है वह दूसरी की ओर आगे बढ़ने लगता है और दूसरी पूरी होने के बाद तीसरी इच्छा मन में जागृत हो जाती है।


 ऐसे में इच्छाओं पर नियंत्रण ना होने के कारण व्यक्ति जीवन पर्यंत इसी जाल में उलझा रहता है और दुखी रहता है। दूसरा क्रोध कई बार अत्यधिक क्रोध आने के कारण लोग गलत निर्णय ले लेते हैं जो उसकी बर्बादी का कारण बन जाते हैं इस तरह व्यक्ति के अंदर का दूसरा अवगुण होता है।


 क्रोध तीसरा लालच तीसरा अवगुण जो व्यक्ति के अंदर होता है वह है लालच जैसे ही व्यक्ति की एक इच्छा पूरी होती है उसका लालच बढ़ता जाता है और उसके मन में और कई आकांक्षाएं जन्म लेने लगती हैं जो उसकी बर्बादी का कारण बन जाती है।


 इतना कहने के बाद सन्यासी पुन जंगलों की तरफ लौट गया दोस्तों मुझे आशा है कि आपको यह कहानी पसंद आई होगी यदि आपको यह कहानी पसंद आई है तो कमेंट करके जरूर बताएं हम मिलेंगे आपको अपने अगले कहानी में तब तक के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद .

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