तुलसीदास की पत्नी ने दिया धोखा | रामचरित मानस
तुलसीदास की पत्नी ने दिया धोखा | रामचरित मानस
नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप लोग आशा करता हूं। आप लोग अच्छे से होंगे इस प्रस्तुति में गोस्वामी तुलसीदास जी की कहानी का दूसरा भाग प्रस्तुत करने जा रहा हूं, अगर आपने पहले भाग को नहीं देखा है 'तो पहले आप जाकर देख ले।
ज्यादा समय न लेते हुए चलिए शुरू करते हैं इससे पहले अगर आप हमारे चैनल पर नए हैं तो हमारा चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें भाग एक में आपने देखा था, तुलसीदास जी रत्नावली से मिलने के लिए उसके मायके निकल पड़ते हैं।
तुलसीदास जी की कहानी
रास्ते में तेज बारिश होने लगती है 'परंतु फिर भी तुलसी दास नहीं रुकते नदी किनारे पहुंचकर एक नाविक के पास पहुंचने हैं और नदी पार करने के लिए कहते हैं नाविक बोलता है नदी में बाढ आई हुई है 'इसलिए मैं नदी पार नहीं कर सकता।
हताश होकर तुलसीदास नदी के किनारे चलने लगते हैं तभी उनकी दृष्टि नदी पर तैरती हुई एक लाश पर पड़ती है तत्पश्चात तुलसी दास उस लाश पर बैठकर नदी पार कर जाते हैं "और रत्नावली के मायके पहुंचते है।
परंतु तब तक आधी रात हो जाती हैं इसलिए कोई भी घर का दरवाजा नहीं खोलता अंत में तुलसीदास घर के ऊपर चढ़कर जाने की कोशिश करते हैं "तभी उनको छत से एक रस्सी लटकते हुई दिखाई देती हैं।
तत्पश्चात तुलसीदास उसे रस्सी को पड़कर कमरे में पहुंच जाते हैं किंतु वह एक सांप को भ्रमवश रस्सी समझ बैठे थे रत्नावली जब तुलसीदास को देखती है तो उसे अपने आंखों पर विश्वास नहीं होता वह तुलसी दास से पूछती है।
आपने इतनी रात को नदी पार कैसे किया तुलसीदास बोलते हैं तुम्हारे लिए नदी तो क्या मैं समुद्र भी पार कर सकता हूं, रत्नावली बोलती है आपको जितना प्रेम मेरे इस सुन्दर शरीर से हैं उतना अगर श्री राम से होता तो आप संसार के बंधन से मुक्त हो गए होते।
पत्नी की यह बात सुनकर तुलसीदास का अंत मैन जाग उठाता है और वे तुरंत पत्नी के कक्ष से निकलकर श्री राम का प्रसार करने निकल पड़ते हैं तुलसीदास फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखते और संसार का मोह त्याग कर प्रयागराज पहुंचते हैं, तुलसी दास प्रण लेते हैं की वह अब बस श्री राम कथा का प्रचार और प्रसार करेंगे।
वहां से वह राजापुर चले जाते हैं और वहां की लोग भाषा हिंदी में रामायण का प्रचार प्रसार करने लगते हैं, उनके शब्द इतने निराले थे, की लोग दूर-दूर से उनकी बातों को सुनने के लिए आने लगते हैं 'वहां के कुछ ब्राह्मण इस बात पर खुश नहीं थे।
इसलिए वह लोग आवाज़ उठाते हैं की रामायण पवित्र ग्रंथ है 'इसलिए इसका पाठ केवल संस्कृत भाषा में होना चाहिए तुलसीदास कहते हैं अगर मैं उनकी अपनी भाषा में बात नहीं करूंगा तो साधारण जन श्री राम की महानता को कैसे समझेंगे।
इस तरह संध्याकालीन प्रवचनों में दर्शकों की संख्या बढ़ती गई प्रवचन सुनने वाले श्रोताओं में एक ऐसा बुढ़ा आदमी था 'जो सबसे पहले आता था परंतु सबसे अंत में जाता था, एक दिन जब सभी लोग जा चुके थे तब तुलसी दास उसे बूढ़े आदमी से कहते हैं।
प्रभु मैं आपको पहचान गया आप कोई और नहीं राम भक्त हनुमान हैं आप तो प्रभु के प्रिया पात्र हैं मुझे भी प्रभु श्री राम के दर्शन कराए तब हनुमान जी अपने असली रूप में आकर तुलसीदास से कहते तुम चित्रकूट चले जाओ तुम्हारी मनोकामना वहीं पूर्ण होगी।
तत्पश्चात तुलसीदास चित्रकूट चले जाते हैं और श्री राम की प्रतीक्षा करने लगते हैं 'परंतु तुलसी दास पहचान नहीं पाते तभी हनुमान जी प्रकट होकर बताते हैं की वह दो राजकुमार प्रभु श्री राम और लक्ष्मण ही थे तुलसीदास हाथ जोड़कर हनुमान जी से विनती करते हैं।
कृपा करके मुझे दोबारा उनके दर्शन कर दीजिए तब हनुमानजी उन्हें मंदाकिनी नदी के तट पर बुलाते हैं 'अगले दिन तुलसी दास मंदाकिनी नदी के तट पर पहुंचने हैं, उसी समय दो राजकुमार तुलसी दास से चंदन लगवाने पहुंचने हैं।
परंतु इस बार भी वह नहीं पहचान पाते तुलसी दास उन दोनों राजकुमारों से जय श्री राम बोलने के लिए कहते हैं परंतु एक राजकुमार जय श्री राम बोलता है तो दूसरा नहीं तब तुलसी दास उससे कहते हैं प्रभु श्री राम परमात्मा की अवतार थे तुम उनका नाम लेने से झिझक क्यों रहे हो।
तभी वह दोनों जय श्री राम बोलकर ओझल हो जाते हैं तुलसीदास दूसरे भक्तों के माथे पर चंदन का टीका लगाने में व्यस्त हो जाते हैं 'तभी वहां बैठा तोता बोलता है चित्रकूट के घाट पर भाई संतान की भीड़ तुलसी दास चंदन घिस ही तिलक करें रघुवीर तुलसी दास तोते की बात सुनकर समझ जाते हैं की वह दो राजकुमार और कोई नहीं प्रभु श्री राम और लक्ष्मण ही थे।
इस घटना के बाद तुलसीदास बिल्कुल बदल जाते हैं क्योंकि भगवान श्री राम के स्पर्श ने उनको रूपांतरण ही कर दिया था तत्पश्चात तुलसीदास हर जगह जाकर प्रवचन सुनाने लगते हैं, जिससे संध्या के प्रवचनों में भक्तों की संख्या दिन-रात बढ़ने लगती हैं।
एक दिन रत्नावली के मायके से अनंत आता है और बताता है की रत्नावली और उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है तुलसी दास कहते थे मैं अपनी पत्नी की प्रेरणा से ही श्री राम की भक्ति प्राप्त कर सका हूं। अनंत तुलसी दास से तीर्थ यात्रा पर जाने की इच्छा प्रकट करता है।
तत्पश्चात अनंत और तुलसी दास तीर्थ यात्रा पर निकल पड़ते हैं वह दोनों सबसे पहले उत्तर दिशा में वृंदावन जाते हैं और भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति देख रुक जाते हैं। वहां के लोग सोचते हैं तुलसी दास तो श्री राम के भक्त हैं।
क्या वह श्रीकृष्ण के सामने सर झुकाएंगे तभी वो लोग देखते हैं की श्रीकृष्ण की मूर्ति में श्री राम के स्वरूप दर्शन हो रहे हैं बाद में प्रवचन सुनते हुए तुलसी दास कहते हैं 'की श्री राम और श्रीकृष्ण एक ही हैं।
किसी भी रूप में उनकी भक्ति करो तुम्हें शांति ही मिलेगी एक बार तुलसी दास अनंत के साथ राजस्थान के किसी मंदिर में रह रहे थे एक समय जब तुलसीदास ध्यान में लीन थे तभी उन्हें बाहर बहुत शोर सुनाई देता है।
जब तुलसीदास अनंत से पूछते हैं पता लगाओ यह शोर कैसा है तब अनंत बताता है की नीचे जाती के कुछ लोग आपका दर्शन चाहते हैं 'लेकिन पुजारी उन्हें आने से रोक रहे हैं, तब तुलसी दास कहते हैं अनंत भक्तों की कोई जाती नहीं होती जो कोई भी प्रभु श्री राम का भक्त है।
वह मेरा सौंदर है तुलसीदास तुरंत बाहर आते हैं और भीलों से बड़े प्रेम से गले मिलकर कहते हैं मैं जानता हूं मेरे प्रभु श्री राम ने वनवास के कुछ दिन तुम ही लोगों के बीच बिताए थे उसी दिन शाम को तुलसी दास से मिलने मेवाड़ के राणा प्रताप आते हैं।
राणा तुलसी दास से कहते हैं, मेरे मेवाड़ पर मुगलों ने अधिकार कर रखा है प्रजामित्र ही त्राहि मची हुई है, तब तुलसी दास बोलते श्री राम की कृपा से सब कुछ ठीक हो जाएगा। राणा प्रताप बोलते हैं लेकिन बिना धन और साधन के मेवाड़ को स्वतंत्र कैसे किया जा सकता है।
उसी समय अनंत आकर कहता है की भामाशाह आपसे दर्शन करना चाहते हैं, तत्पश्चात मेवाड़ की दुर्दशा सुनकर भामाशाह रो पड़ते हैं और कहते हैं मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए मेरा सर्वस्व आपको समर्पित है।
राणा प्रताप बोलते हैं मैं एक योद्धा होकर डैन कैसे स्वीकार कर सकता हूं। भामाशाह तुलसी दास से कहते कृपा करके आप ही मेरी भेंट स्वीकार करें और राणा को सौंप दें राणा प्रताप तुलसीदास को यह भी बताते हैं की राजा मानसिंह हमारे ही बंधु हैं।
लेकिन वह मुगलों की तरफ से लड़ रहे हैं तुलसीदास उन्हें आश्वासन देते हैं की वह शीघ्र ही सही रास्ते पर आ जाएगा तत्पश्चात एक दिन मुगल के सेनापति मानसिक तुलसी दास से मिलने पहुंचता है।
मानसिक तुलसी दास की बातों से इतना प्रभावित होता है की उसका हृदय परावर्तित हो जाता है कुछ दिनों बाद मुगल बादशाह अकबर को सूचना प्राप्त होती है की राजा मान सिंह ने अपनी सेना पीछे हटा ली है।
बादशाह अकबर पता करवाते हैं की उसने ऐसा क्यों किया तो उन्हें यह बात पता चलती हैं की तुलसीदास ने मानसिंह का हृदय परिवर्तित किया अकबर तुलसी दास को दरबार में बुलाने के लिए अब्दुल रहीम खान को भेजते हैं।
अब्दुल रहीम खान तुलसी दास से जाकर मिलता है और बादशाह की इच्छा प्रकट करता है तुलसीदास कहते हैं मैं तो अपने श्री राम की महिमा का गुणगान करता हूं। राजा महाराजा के दरबार में भला मेरा क्या कम अब्दुल रहीम खान उनसे कहता है।
आप इस्लाम धर्म के विरुद्ध घृणा का प्रचार कर रहे हैं तब तुलसीदास कहते हैं, यह सरासर झूठ है हा यह अवश्य है की मैं अपने मुक्तिदाता श्री राम का गुणगान करता हूं। कुछ दिनों बाद तुलसी दास अनंत के साथ रामेश्वर मंदिर में पहुंचे मंदिर के पुजारी उन्हें रोक देते हैं।
रामचरित मानस को हिन्दी में कैसे लिखा गया | धार्मिक कहानियां
मंदिर के पुजारी तुलसी दास से कहते हैं यह भगवान शिव का मंदिर है, क्योंकि तुम वैष्णव हो इसलिए मंदिर में नहीं जा सकते तत्पश्चात तुलसीदास मंदिर के बाहर बैठ जाते हैं "और भगवान शिव की स्तुति करने लगते शीघ्र ही भगवान शिव दर्शन देकर कहते हैं।
तुलसीदास मैं तुम पर प्रसन्न हूं तुम वाराणसी लौट जाओ और अपने जीवन की कामना पुरी करो तुलसीदास वाराणसी लौट आते हैं, और एएसआई घाट के निकट अपनी कुटिया बनाकर रहने लगते हैं कुछ समय बाद तुलसी दास हिंदी में,
रामचरितमानस लिखना शुरू करते हैं "जब वाराणसी के पंडितो को इस बात का पता चलता है तो वो आग बबूला हो उठता हैं सभी पंडित एकत्रित होकर सलाह करते हैं, की तुलसीदास जो कुछ कर रहा है वह धर्म विरोधी कार्य है।
श्री राम की कथा सिवाय संस्कृत के किसी और भाषा में नहीं लिखी जानी चाहिए "उसी रात दो पंडित तुलसी दास की कुटिया में घुसने की कोशिश करते हैं परंतु वहां किसी दो राजकुमार को पहरा करते हुए देखते हैं पंडित समझ जाते हैं यह भगवान श्री राम और लक्ष्मण ही पहरा दे रहे हैं।
तत्पश्चात वो लोग वहां से भाग जाते हैं अगले दिन सभी पंडित एक सभा बुलाते हैं और तुलसी दास के पास एक प्रतिनिधिमंडल भेजते हैं वो लोग तुलसी दास से कहते हैं तुलसीदास हमारे विचार से तुम्हारा हिंदी में रामायण लिखना अनुचित है।
हम लोग चाहते हैं की तुम अपनी रचना गंगा नदी में डुबो दो तुलसी दास कहते हैं मित्रों मैं चाहता हूं की भगवान श्री राम की पावन कथा देश के हर घर में गूंज उठे तभी एक पंडित जी बोलते हैं ठीक है।
अन्य धार्मिक ग्रंथ के साथ हम तुम्हारा ग्रंथ भी शिवलिंग के समीप रखेंगे वही अपना निर्णय करेंगे तुलसी दास इस बात से सहमत हो जाते हैं तत्पश्चात सभी पंडित अन्य धर्म ग्रंथ के साथ रामचरितमानस को भी शिवलिंग के सम्मुख रखते हैं।
अगली सुबह जब सभी मंदिर का द्वार खोलते हैं तो देखते हैं की रामचरितमानस सबसे ऊपर रखा है इस तरह तुलसीदास की जीत होती है, तत्पश्चात सभी पंडित तुलसीदास से माफी मांगते हैं तुलसी दास बहुत दिनों तक जीवित रहे और उनका यश दिन प्रतिदिन फैलता गया।
उनका रामचरितमानस आज भी देश के लिए अमूल्य तमन निधि है तुलसीदास ने अपने अंतिम समय में गंगा नदी के किनारे अस्सी घाट पर राम नाम का स्मरण किया था। मित्रों उनकी मृत्यु कैसे हुई थी इस बात को लेकर अनेकों मतभेद है।
ऐसा कहा जाता है तुलसी दास काफी सालों तक बीमार थे इसलिए उनकी मृत्यु हुई थी वहीं ऐसा भी कहा जाता है की तुलसीदास ने मृत्यु से पहले अपनी आखिरी कृति विनय पत्रिका लिखी थी, जिस पर खुद प्रभु राम ने हस्ताक्षर किए थे दोस्तों उम्मीद है आपको यह कहानी अच्छी लगी हो आपको यह कैसी लगी कमेंट्स में जरूर बताइएगा।
धन्यवाद .....
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