तुलसीदास की जीवनी | रामचरित मानस
तुलसीदास की जीवनी | रामचरित मानस
तुलसीदास की कहानियां
नमस्कार दोस्तों आज मैं आपको इस प्रस्तुति में गोस्वामी तुलसीदास के जीवन की कहानी सुनाने जा रहा हूं, गोस्वामी तुलसीदास जिनको लोग बचपन में कुलक्षण मानते और उन्हें देखकर अपने घरों का दरवाजा बंद कर लेते थे।
इस कहानी में आप देखेंगे कैसे तुलसीदास हिंदी साहित्य के महान संत कवि बने और रामचरित्र मानस जैसे ग्रंथ की रचना की इससे पहले अगर आप हमारे चैनल पर नए हैं तो हमारा चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें।
यह कहानी शुरू होती है गंगा नदी के किनारे एक छोटे से गांव अपने मित्र के साथ घर के बाहर चिंता में बैठे हुए थे, उनके मित्र उन्हें हल्की फुल्की बातों से उनका ध्यान भड़काने की कोशिश कर रहे थे, क्योंकि उनकी पत्नी किसी भी क्षण मां बनने वाली थी।
उसी क्षण दाई चुनिया आती है और पंडित जी को बताती हैं की उनको लड़का हुआ है 'परंतु उनकी पत्नी बेहोश हैं तत्पश्चात पंडित जी भगवान से अपनी पत्नी के लिए प्रार्थना करने लगते हैं, परंतु उनकी पत्नी का देहांत हो जाता है।
पंडित जी ज्योतिषी को बुलवाकर बच्चे का ग्रह नक्षत्र जांच करवाते हैं 'ज्योतिषी बोलता है इस बच्चे का ग्रह नक्षत्र ठीक नहीं है यह पूरे परिवार के नाश का कारण बनेगा, जाऊं इसे कहीं छोड़कर आओ पंडित जी बोलते हैं क्या मैं अपने बच्चे का त्याग कर दू।
ज्योतिषी बोलता है ऐसा बेटा ही क्या जो जन्म लेते ही अपने मां को खा जाए वह तुम्हें भी बर्बाद कर देगा इसके बाद पंडित जी बच्चे को त्याग कर देते हैं, परंतु दाई चुनिया को बच्चे पर तरस आ जाता है "इसलिए उसे अपने साथ ले जाती हैं। यद्यपि सारा गांव ज्योतिषी की भविष्यवाणी के बारे में जानता था।
फिर भी चुनिया उसे बच्चे को अपने घर ले आती हैं तुम्हें इस बच्चे को घर नहीं लाना चाहिए था, यह बच्चा हमारा भी सत्यानाश कर देगा दुनिया बोलती है इसके पिता ने इसे त्याग कर दिया है बेचारा अनाथ है भगवान के लिए मुझे इसकी देखरेख करने दीजिए।
चुनिया के पति को भी यह बात अच्छी नहीं लगती वह चुनिया से बोलता है मूर्ख स्त्री तुम इस बच्चे को यहां क्यों उठा लाई हो चुनिया बोलती है 'यह बच्चा बेचारा अनाथ है हम दोनों इसको अपने पुत्र की तरह पालेंगे।
10 दिनों बाद चुनिया का पति बोलता है पंडित आत्माराम चल बसे सचमुच यह बच्चा बड़ा ही अमंगलकारी हैं चुनिया बोलती है इसमें बेचारे निर्दोष बच्चे का क्या अपराध है लेकिन दुर्भाग्यवश भी उसे बच्चे के पालन पोषण के लिए बहुत दिनों तक जीवित नहीं रहती।
जब उसे बच्चे की उम्र 10 वर्ष होती हैं 'तब चुनिया को एक सांप डस लेता है तत्पश्चात चुनिया का पति उस बच्चे को घर से निकल देता है वह बालक रोता हुआ घर से निकल जाता है और रात्रि में वह किसी पेड़ के नीचे सोता है।
अगले दिन जब उसे भूख लगती है तो किसी के घर पर जाकर दरवाजा खटखटाता है जब घर में से एक स्त्री बाहर आती है तब वह बालक उससे बोलता है की मुझे बहुत भूख लगी है स्त्री उसके लिए घर में दूध लेने जाती है "परंतु एक बुधिया स्त्री बताती हैं की वह बच्चा बहुत अभागा है।
"जो भी इसे खिलाता है वह मर जाता है तत्पश्चात वह बालक प्रण लेता है की अब कभी भी भीख नहीं मांगेगा लेकिन संध्या के समय पेट की आग उसे दूसरा दरवाजा खटखटाने पर विवश कर देती हैं परंतु वह जहां भी जाता था लोग उसे आत्माराम का बेटा समझकर खाना नहीं देते थे।
और दरवाजा बंद कर लेते थे बेचारा वह बच्चा अपमानित होकर गांव की एक मंदिर में जाता है 'उसी दिन मंदिर में बाबा नारीदास आते हैं और उस बच्चे के बारे में पूछते हैं मंदिर का पुजारी बताता है की यह बच्चा आत्माराम दुबे का अभागा पुत्र है।
तथा अशुभ नक्षत्र का मारा है जो कोई इसकी सहायता करता है वह सिर्फ दुख ही पता है बाबा नरहरि दास को उस बच्चे पर दया आ जाती हैं 'उस बच्चे से बोलते हैं सुन बालक प्रभु श्री राम सबका रखवाला है तुम उनकी शरण में क्यों नहीं जाता बालक बोलता है श्री राम के पास कहां से पहुंच सकता हूं।
बाबा नरहरि दास उसे अपनी कुटिया में ले जाते हैं और कहते हैं मैं जो कुछ बोलूं उसे दोहराते चले जाना बाबा नरहरि दास उसे श्री राम जय राम जय जय राम बोलना सीखाते हैं वह बालक बाबा की बात मानकर उनकी बातों को सही - सही दोहराता है बाबा नरहरि दास उस बच्चे को अपना शिष्य बना लेते हैं।
तब वह बालक अपने गुरु की चरणों में पढ़कर प्रणाम करता है तत्पश्चात बाबा नरहरि दास उसे बालक का नाम राम बोला रखते हैं, वह बालक बाबा नरहरि दास से भगवान राम की कथा सुनने के लिए कहता है।
तब बाबा उसे भगवान राम की कथा सुनने लगते हैं बालक रामबोला भगवान राम की कथा सुनकर बहुत प्रसन्न होता हैं और वह कथा खुद से पढ़ने का प्रयत्न करता है 'परंतु उसे भगवान श्री राम की कथा बहुत कठिन लगता है तब बाबा नरहरि दास उसे वाराणसी के आचार्य शेष सनातन के पास ले जाते हैं।
वाराणसी पहुंचकर बाबा नरहरि दास आचार्य से उसे बालक को अपना शिष्य बनाने के लिए विनती करते हैं आचार्य शेष सनातन बालक रामबोला को अपना शिष्य बना लेते हैं 'और शिक्षा देने लगते हैं इस तरह बालक रामबोला 10 वर्ष की समय अवधि में समस्त वेद पुराने और धार्मिक ग्रंथ की शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं।
एक दिन आचार्य शेष सनातन बालक रामबोला से कहते हैं वत्स अब तुम्हारी शिक्षा पूर्ण हुई रामबोला कहते हैं आपकी कृपा से मैं मनुष्य की तरह जीने का गौरव पा सका हूं, मुझे आज्ञा दीजिए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं।
आचार्य शेष सनातन कहते हैं जाओ वत्स और संसार में श्री राम की महिमा का प्रसार करो राम कहते हैं गुरुदेव यह तो मेरा परम कर्तव्य है इसे पूरा करना ही मेरे जीवन का एकमात्र लक्ष्य होगा, आचार्य बोलते हैं वत्स रामबोला में चाहता हूं की तुम गृहस्थ भी बानो भगवान श्री राम भी गृहस्ती।
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रामबोला गुरु से आज्ञा लेकर अपनी जन्म भूमि लौट जाते हैं और अत्यंत भक्ति भाव से भगवान राम की पवन कथा सुनने लगते हैं तत्पश्चात लोग उन्हें तुलसी दास के नाम से पुकारने लगते हैं और उनकी ख्याति चारों तरफ फैलने लगती हैं,
पास के एक बद्री नामक गांव में दीनबंधु नाम के पाठक रहते थे एक दिन उनके घर एक व्यक्ति आता है और बताता है की उसकी बेटी रत्नावली के लिए तुलसीदास से बढ़कर योगेश्वर कहीं नहीं मिलेगा पाठक दीनबंधु बोलते हैं।
सुना है तुलसीदास बहुत गरीब है वह व्यक्ति बोलता है ब्राह्मण का सबसे बड़ा धन ज्ञान है और तुलसीदास ज्ञान के भंडार हैं तुम्हारी पुत्री के लिए उससे बढ़िया वर कहीं नहीं मिलेगा तुलसीदास अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करते थे।
इसलिए रत्नावली की सहेलियां उसे चिढ़ाया करती थी एक दिन जब रत्नावली घर पहुंची तो वह बहुत गुस्से में रहती है तुुुलसीदास पूछेते हैं आज तुमने लौटने में इतना देर क्यों लगा दी रत्नावली कहती है मेरी सहेलियां मुझे ताने मार रही थी की मैंने आप पर जादू कर दिया है।
कालिदास बोलते हैं हा यह बात तो सच है रत्नावली बोलती है क्या आप अपने गुरु को दिया हुआ वचन भूल गए जो भगवान श्री राम की महिमा का प्रसार करने के लिए कहा था तुलसीदास अपनी पत्नी की बात सुनकर गंभीर हो जाते हैं।
कुछ दिनों के बाद रत्नावली के मायके से एक नाई उनके घर पहुंचता है वह नई रत्नावली से कहता है बेटी तुम्हारे बापू ने तुम्हें मायके ले जाने के लिए भेजा है, रत्नावली कहती है मैं कैसे चल सकती हूं मेरे पति बाहर गए हैं।
एक-दो दिन बाद लौटेंगे नाई बोलता है कल भाई दूज है घर में तुम्हारी कमी सबको बहुत खेलेगी रत्नावली अपने मायके जाने के लिए तैयार हो जाती है 'लेकिन जाने से पहले तुलसीदास के लिए खत लिखकर छोड़ देती है दो दिन बाद जब तुलसी दास घर वापस लौटते हैं तो रत्नावली को ना देख कर परेशान हो जाते हैं।
तभी तुलसीदास को रत्नावली का खत मिलता है जिसे पढ़कर तुलसी दास सोचने लगते हैं उसने लिखा है की वह शीघ्र लौटेगी लेकिन तब तक उसकी प्रतीक्षा कैसे करूं तुलसी दास तुरंत अपनी पत्नी से मिलने के लिए रत्नावली के मायके निकल पड़ते हैं।
दोस्तों मैं इस कहानी को यही समाप्त करता हूं कहानी के अगले भाग में आप देखेंगे कैसे तुलसीदास अपनी पत्नी से मिलने के लिए सारी हदें पार कर जाते हैं 'और इसके पक्ष तुलसीदास महान संत कवि कैसे बनते हैं दोस्तों यह प्रस्तुति आपको कैसी लगी कमेंट्स में जरूर बताइएगा।
धन्यवाद ....
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