गौतम बुद्ध की कहानियां Pdf | गौतम बुद्ध

 विचारो में उलझना बंद करो | गौतम बुद्ध की कहानियां Pdf | गौतम बुद्ध 



गौतम बुद्ध की कहानियां Pdf

 खुद से जीतने वालों को मेरा सलाम एक दिन जवान भिक्षु ने अपने मास्टर से पूछा मास्टर आप हमेशा खुश रहते हो चिंता मुक्त रहते हो। जब मैं आपसे इस आनंद और खुशी का कारण पूछता हूं तो आप कहते हो कि यह पूरा संसार अनंत आनंद में प्रकट हो रहा है।




 आनंद और प्रेम के अलावा कुछ नहीं है लेकिन मास्टर अगर यह बात सच है तो मेरा मन हमेशा खुश क्यों नहीं रहता और मुझे इस संसार में इतने सारे लोग परेशान क्यों दिखते हैं मास्टर ने कहा माया है।




 संसार का आकर्षण और अविद्या है खुद को ना जानना यह दोनों चीजें एक ही है जिस कारण मन दुखी रहता है। जवान भिक्षु ने कहा मास्टर माया मोह अज्ञान यह सब मेरे लिए किताबी कंसेप्ट है मैं इन्हें कभी प्रैक्टिकली नहीं समझ पाया।




 भोले भिक्षु की बात सुनकर मास्टर हंसने लगे उन्होंने कहा अभी रात हो गई है हम इस पर कल चर्चा करेंगे दो-तीन दिन निकल गए माया और मन पर मास्टर ने कोई चर्चा नहीं की फिर एक अजीब घटना हुई जिसने भिक्षु को माया के प्रत्यक्ष दर्शन करा दिए।




 हुआ यूं कि एक दिन दोनों मास्टर और शिष्य नदी पर सुबह स्नान करने को गए वापस लौटते समय उन्होंने पहाड़ों में एक दूसरा रास्ता लिया जो थोड़ा कठिन था। 




लेकिन छोटा भी था तभी नए रास्ते में उन्हें एक बड़ा सूखा बरगद जैसा विचित्र पेड़ दिखाई दिया जैसे ही मास्टर इस पेड़ के पास से निकले उन्हें ऐसा लगा कि यह पेड़ उन्हें अपनी तरफ खींच रहा है।




 मास्टर पेड़ की तरफ खींचते चले गए और पेड़ से चिपक गए ऐसा होने पर वे चिंतित स्वर में मदद के लिए पुकारने लगे अरे जल्दी करो मुझे इस पेड़ ने पकड़ लिया है।




 मैं इससे चिपक गया हूं मेरी मदद करो जवान भिक्षु आश्चर्य से चकित रह गया क्योंकि उसने अपने मास्टर को उस दिन से पहले कभी असहाय और व्याकुल नहीं देखा था भिक्षु को स्तब्ध खड़ा देख मास्टर और जोर से चल रहा है।




 क्या तुम मेरे शिष्य नहीं हो जो दूर खड़े हुए हो तुरंत मदद करो मेरे पैर खींचो यह पेड़ मेरी शक्तियां खींच रहा है मुझे अंदर से बेचैनी महसूस हो रही है मेरी जल्दी से मदद करो लेकिन भिक्षु के पैर आगे बढ़ नहीं रहे थे।




 वह सोचने लगा कि मैं पेड़ के पास जाऊंगा तो कहीं यह पेड़ मुझे भी ना खींच ले और अगर ऐसा हुआ तो हम दोनों की मदद कौन करेगा तभी उसने दूर से आवाज लगाकर कहा मास्टर आपने इतने सारे लोगों की मदद की है 'और आज आपको मेरी मदद चाहिए।




 मास्टर ने कहा तुम जल्दी से मेरे पैर को पकड़ो और मुझे इस पेड़ से अलग करो मास्टर के स्वर में गंभीरता थी भिक्षु जमीन पर रंगते हुए उस पेड़ के पास पहुंचा और उसने पूरी ताकत लगाकर मास्टर का पैर खींचा लेकिन वो उन्हें पेड़ से अलग नहीं कर सका।




 मास्टर ने फिर कहा मेरा शरीर इस पेड़ के तने में धस रहा है मेरी मांसपेशियों में ताकत नहीं बची मैं बहुत बेचैन हो रहा हूं मेरी मदद करो यह सुनकर भिक्षु अचानक रुक गया उसने गहरी सांस ली और सोचकर कर बोला मास्टर यह कैसे संभव है।




 पेड़ के तने में वो ताकत नहीं जो यह आपको पकड़ सके आपने ही तो अपने हाथों से पेड़ को जकड़ रखा है फिर आप मुझसे क्यों मदद मांग रहे हो जवान भिक्षु की बात सुनकर मास्टर हंसने लगे और उन्होंने तत्काल पेड़ छोड़ दिया और भिक्षु से बोले यही माया है।




 हम मन को कभी छोड़ते ही नहीं फिर कहते हैं कि मन हमें परेशान करता है गलत बात पर विश्वास करना ही माया है भिक्षु ने पूछा मास्टर जब हम जानते हैं कि मन हमें परेशान करता है तो फिर हम मन को क्यों नहीं छोड़ पाते मास्टर ने कहा क्योंकि हम बाहरी सुखों के द्वारा खुद को संतुष्ट रखना चाहते हैं ?




 इसलिए कई इच्छाओं को पकड़े रहते हैं इच्छाओं को पकड़ना ही मन को पकड़ना है और मन को पकड़ना ही माया है इसी माया के कारण हमें लगता है कि हम कमजोर हैं।




 फंसे हुए हैं बल्कि ऐसा है नहीं हम हमेशा मन से ताकतवर हैं मन के स्वामी हैं क्योंकि हम जब चाहे तब मन से ध्यान हटाकर मन को शांत कर सकते हैं इससे हमें यह भी पता चलता है कि मन हमसे है हम मन से नहीं पर इच्छाओं के पीछे भागते भागते हम यह बात भूल जाते हैं और कमजोर महसूस करते हैं।




 यही माया है भिक्षु ने पूछा हम भूलना बंद कैसे करेंगे मन से दूरी कैसे बनाएंगे मास्टर ने कहा जैसे स्थिर चट्टान को बड़ी लहरें डिगा नहीं पाती उसी प्रकार तुम्हें विचारों के वेग से ज्यादा स्थिर ज्यादा शक्तिशाली बनना है।




 यह शक्ति कैसे जागृत होगी पहला लेसन मास्टर ने कहा जो मान लोगे वह सत्य है अभी तक तुम झूठी बातों पर विश्वास करते आ रहे हो कि मन है और मुझे परेशान करता है।




 इसलिए मन के सामने कमजोर भी महसूस करते हो अब से हर दिन हर पल बार-बार स्वयं को याद दिलाओ बार-बार महसूस करो कि जहां मैं ध्यान देता हूं वहीं मन जाता है।




 मैं सांस पर ध्यान देता हूं तो मन शा हो जाता है यानी मैं मन का स्वामी हूं और मन मेरा सेवक है मन से ताकतवर बनने के लिए हमेशा प्रसन्न रहने के लिए दूसरा लेसन शिकायतों से दूर रहो मास्टर ने कहा यह संसार केवल तुम्हारे मन का प्रोजेक्शन है और यह मन की आदत है कि वह खुद की कमियों को खुद की चिंताओं को संसार में देखता है ?




 तुम चिंता और परेशानी पर ध्यान लगाओगे तो उतना ही वे तुम पर हावी होती जाएंगी तुम्हें हर जगह और लोगों में भी दिखेंगी इसलिए बड़े से बड़े आध्यात्मिक व्यक्ति भी संसार की परेशानियां देखकर कंफ्यूज रहते हैं।




 वो यह कभी स्वीकार नहीं पाते कि वेह अपने मन की कमियां बाहर देख रहे हैं और इसी कारण वह अपने ध्यान में कभी तरक्की नहीं कर पाते इसलिए जब शिकायत हो तो उसे धन्यवाद करो और खुद को याद दिलाओ कि यह मन है जो शिकायत करता है यह मन है जो दुखी रहता है और मैं केवल मन को देखता हूं।




 इस सच को महसूस करो इस सच को महसूस करने से मन और तुम्हारे बीच में दूरी प्रकट होगी और तुम्हें शांति महसूस होगी तीसरा लेसन है ज्ञान और अज्ञान मास्टर ने कहा तुम जानते हो कि जब मन शांत होता है तो सब कुछ अच्छा लगता है।




 अंदर से आनंद और खुशी महसूस होती है ज्ञान का मतलब यह जानना है कि पूरे ब्रह्मांड में आनंद का केवल एक ही सोर्स है और वह तुम खुद हो भरी चीजों में कोई रस नहीं तुम्हारा ही नंद है जो बाहर रिफ्लेक्ट होता है।




 जिस पल तुम्हें यह स्वयं के अनुभव से साक्षात्कार होगा उस पल मन भटकना छोड़ देगा और तुम्हें अपने आप ही वैराग्य प्राप्त होगा इसके बाद तुम केवल बाहर ड्यूटी करोगे लेकिन अंदर हमेशा शांत अवस्था में रहोगे मास्टर ने कहा इस शांति को पाने के लिए मन से नॉन अटैचमेंट का अभ्यास करो।




 हमेशा याद रखो कि मेरा असली स्वरूप आनंद और शांति है मन मुझे नहीं बल्कि मुझ में प्रकट हो रहा है मैं सब कुछ शांति में देख रहा हूं मैं कभी रिएक्ट नहीं करता यानी जो मन से परेशान होता है।




 मन की शिकायत करता है वह भी मन ही है मैं हमेशा शांत हूं केवल सब कुछ देख रहा हूं इस तरह इस बात को याद करके हमेशा प्रेजेंट मूमेंट में बने रहो यह प्रेजेंट मूमेंट असीम अनंत शांति है यहां पर कोई रिएक्शन नहीं केवल एक्शन होता है।


विचारो में उलझना बंद करो | गौतम बुद्ध की कहानियां Pdf | गौतम बुद्ध 


गौतम बुद्ध के उपदेश 


 इस तरह तुम मन में कभी उलझ नहीं पाओगे और सीधे लक्ष्य की तरफ बढ़ते जाओगे समरी में सबसे पहले जो मान लोगे वही सत्य है गलत आइडियाज जो हम पकड़े रहते हैं वही माया है हम झूठी बातों पर विश्वास करते हैं कि मन मुझे परेशान करता है इसलिए हम मन के सामने कमजोर पड़ जाते हैं।




 इसलिए खुद को बार-बार याद दिलाओ कि मैं जहां ध्यान देता हूं वहीं मन जाता है मैं मन का स्वामी हूं और मन मेरा सेवक है तो दूसरी बात शिकायतों से दूर रहो संसार हमारे मन का प्रोजेक्शन है यह मन की आदत है कि वह अपनी कमियों और कंफ्यूजन को संसार में देखता है।






 तीसरी बात मन के प्रति नॉन अटैचमेंट खुद को यह बार-बार याद दिलाओ और अपने अनुभव से महसूस करो कि मेरा असली स्वरूप आनंद और शांति है मन मुझे नहीं मुझ में प्रकट हो रहा है मैं सब कुछ शांति में देख रहा हूं मैं कभी रिएक्ट नहीं करता यानी जो मन से परेशान होता है मन की शिकायत करता है वह भी मन ही है मैं हमेशा शांत हूं।




 सब कुछ देख रहा हूं इस प्रकार मन के प्रति नॉन अटैचमेंट या वैराग्य विकसित होता है और हमको वह शांति महसूस होती है जहां पर एक्शन है रिएक्शन नहीं दोस्तों हम लोग एक बार में फोकस गहरा करने की उम्मीद करते हैं इसलिए परेशान होते हैं।






 अगर हमें सच में ध्यान या फोकस गहरा करना है तो हमें समता मेडिटेशन की नौ स्टेजेस को समझना होगा जिससे हम यह समझ पाएंगे कि जब मन फोकस करना शुरू करता है तो हर स्टेज में क्या दिक्कतें आती हैं और आप इन्हें अभ्यास से कैसे पार करते हो।




 फोकस की नौ स्टेजेस पर अभी कहानी देखिए या बात के लिए सेव कर लीजिए क्योंकि आपके समय से कोई वीडियो कोई ऐप कोई न्यूज कीमती नहीं है।




 मैं काम के किस्से लाता रहूंगा हम जीतेंगे h खुद से जीतने वालों को मेरा सलाम एक दिन जवान भिक्षु ने अपने मास्टर से पूछा मास्टर आप हमेशा खुश रहते हो चिंता मुक्त रहते हो जब मैं आपसे इस आनंद और खुशी का कारण पूछता हूं तो आप कहते हो कि यह पूरा संसार अनंत आनंद में प्रकट हो रहा है।




 आनंद और प्रेम के अलावा कुछ नहीं है लेकिन मास्टर अगर यह बात सच है तो मेरा मन हमेशा खुश क्यों नहीं रहता और मुझे इस संसार में इतने सारे लोग परेशान क्यों दिखते हैं।




 मास्टर ने कहा माया है संसार का आकर्षण और अविद्या है खुद को ना जानना यह दोनों चीजें एक ही है जिस कारण मन दुखी रहता है जवान भिक्षु ने कहा मास्टर माया मोह अज्ञान यह सब मेरे लिए किताबी कंसेप्ट है।




 मैं इन्हें कभी प्रैक्टिकली नहीं समझ पाया भोले भिक्षु की बात सुनकर मास्टर हंसने लगे उन्होंने कहा अभी रात हो गई है हम इस पर कल चर्चा करेंगे दो-तीन दिन निकल गए माया और मन पर मास्टर ने कोई चर्चा नहीं की फिर एक अजीब घटना हुई जिसने भिक्षु को माया के प्रत्यक्ष दर्शन करा दिए।




 हुआ यूं कि एक दिन दोनों मास्टर और शिष्य नदी पर सुबह स्नान करने को गए वापस लौटते समय उन्होंने पहाड़ों में एक दूसरा रास्ता लिया जो थोड़ा कठिन था।




 लेकिन छोटा भी था तभी नए रास्ते में उन्हें एक बड़ा सूखा बरगद जैसा विचित्र पेड़ दिखाई दिया जैसे ही मास्टर इस पेड़ के पास से निकले उन्हें ऐसा लगा कि यह पेड़ उन्हें अपनी तरफ खींच रहा है मास्टर पेड़ की तरफ खींचते चले गए और पेड़ से चिपक गए ऐसा होने पर वे चिंतित स्वर में मदद के लिए पुकारने लगे अरे जल्दी करो मुझे इस पेड़ ने पकड़ लिया है।




 मैं इससे चिपक गया हूं मेरी मदद करो जवान भिक्षु आश्चर्य से चकित रह गया क्योंकि उसने अपने मास्टर को उस दिन से पहले कभी असहाय और व्याकुल नहीं देखा था भिक्षु को स्तब्ध खड़ा देख मास्टर और जोर से चल रहा है।




 क्या तुम मेरे शिष्य नहीं हो जो दूर खड़े हुए हो तुरंत मदद करो मेरे पैर खींचो यह पेड़ मेरी शक्तियां खींच रहा है मुझे अंदर से बेचैनी महसूस हो रही है मेरी जल्दी से मदद करो लेकिन भिक्षु के पैर आगे बढ़ नहीं रहे थे।




 वह सोचने लगा कि मैं पेड़ के पास जाऊंगा तो कहीं यह पेड़ मुझे भी ना खींच ले और अगर ऐसा हुआ तो हम दोनों की मदद कौन करेगा तभी उसने दूर से आवाज लगाकर कहा मास्टर आपने इतने सारे लोगों की मदद की है और आज आपको मेरी मदद चाहिए।




 मास्टर ने कहा तुम जल्दी से मेरे पैर को पकड़ो और मुझे इस पेड़ से अलग करो मास्टर के स्वर में गंभीरता थी भिक्षु जमीन पर रंगते हुए उस पेड़ के पास पहुंचा और उसने पूरी ताकत लगाकर मास्टर का पैर खींचा लेकिन वो उन्हें पेड़ से अलग नहीं कर सका मास्टर ने फिर कहा मेरा शरीर इस पेड़ के तने में धस रहा है।




 मेरी मांसपेशियों में ताकत नहीं बची मैं बहुत बेचैन हो रहा हूं मेरी मदद करो यह सुनकर भिक्षु अचानक रुक गया उसने गहरी सांस ली और सोचकर कर बोला मास्टर यह कैसे संभव है।




 पेड़ के तने में वो ताकत नहीं जो यह आपको पकड़ सके आपने ही तो अपने हाथों से पेड़ को जकड़ रखा है फिर आप मुझसे क्यों मदद मांग रहे हो जवान भिक्षु की बात सुनकर मास्टर हंसने लगे और उन्होंने तत्काल पेड़ छोड़ दिया और भिक्षु से बोले यही माया है।




 हम मन को कभी छोड़ते ही नहीं फिर कहते हैं कि मन हमें परेशान करता है गलत बात पर विश्वास करना ही माया है भिक्षु ने पूछा मास्टर जब हम जानते हैं कि मन हमें परेशान करता है तो फिर हम मन को क्यों नहीं छोड़ पाते मास्टर ने कहा क्योंकि हम बाहरी सुखों के द्वारा खुद को संतुष्ट रखना चाहते हैं ?




 इसलिए कई इच्छाओं को पकड़े रहते हैं इच्छाओं को पकड़ना ही मन को पकड़ना है और मन को पकड़ना ही माया है इसी माया के कारण हमें लगता है कि हम कमजोर हैं फंसे हुए हैं।




 बल्कि ऐसा है नहीं हम हमेशा मन से ताकतवर हैं मन के स्वामी हैं क्योंकि हम जब चाहे तब मन से ध्यान हटाकर मन को शांत कर सकते हैं इससे हमें यह भी पता चलता है कि मन हमसे है हम मन से नहीं पर इच्छाओं के पीछे भागते भागते हम यह बात भूल जाते हैं और कमजोर महसूस करते हैं यही माया है।




 भिक्षु ने पूछा हम भूलना बंद कैसे करेंगे मन से दूरी कैसे बनाएंगे मास्टर ने कहा जैसे स्थिर चट्टान को बड़ी लहरें डिगा नहीं पाती उसी प्रकार तुम्हें विचारों के वेग से ज्यादा स्थिर ज्यादा शक्तिशाली बनना है यह शक्ति कैसे जागृत होगी पहला लेसन मास्टर ने कहा जो मान लोगे वह सत्य है।




 अभी तक तुम झूठी बातों पर विश्वास करते आ रहे हो कि मन है और मुझे परेशान करता है इसलिए मन के सामने कमजोर भी महसूस करते हो अब से हर दिन हर पल बार-बार स्वयं को याद दिलाओ बार-बार महसूस करो कि जहां मैं ध्यान देता हूं वहीं मन जाता है।




 मैं सांस पर ध्यान देता हूं तो मन शा हो जाता है यानी मैं मन का स्वामी हूं और मन मेरा सेवक है मन से ताकतवर बनने के लिए हमेशा प्रसन्न रहने के लिए दूसरा लेसन शिकायतों से दूर रहो मास्टर ने कहा यह संसार केवल तुम्हारे मन का प्रोजेक्शन है और यह मन की आदत है कि वह खुद की कमियों को खुद की चिंताओं को संसार में देखता है।




 तुम चिंता और परेशानी पर ध्यान लगाओगे तो उतना ही वे तुम पर हावी होती जाएंगी तुम्हें हर जगह और लोगों में भी दिखेंगी इसलिए बड़े से बड़े आध्यात्मिक व्यक्ति भी संसार की परेशानियां देखकर कंफ्यूज रहते हैं वो यह कभी स्वीकार नहीं पाते कि वेह अपने मन की कमियां बाहर देख रहे हैं और इसी कारण वह अपने ध्यान में कभी तरक्की नहीं कर पाते।




 इसलिए जब शिकायत हो तो उसे धन्यवाद करो और खुद को याद दिलाओ कि यह मन है जो शिकायत करता है यह मन है जो दुखी रहता है और मैं केवल मन को देखता हूं इस सच को महसूस करो इस सच को महसूस करने से मन और तुम्हारे बीच में दूरी प्रकट होगी और तुम्हें शांति महसूस होगी।




 तीसरा लेसन है ज्ञान और अज्ञान मास्टर ने कहा तुम जानते हो कि जब मन शांत होता है तो सब कुछ अच्छा लगता है अंदर से आनंद और खुशी महसूस होती है ज्ञान का मतलब यह जानना है कि पूरे ब्रह्मांड में आनंद का केवल एक ही सोर्स है और वह तुम खुद हो भरी चीजों में कोई रस नहीं तुम्हारा ही नंद है जो बाहर रिफ्लेक्ट होता है।




 जिस पल तुम्हें यह स्वयं के अनुभव से साक्षात्कार होगा उस पल मन भटकना छोड़ देगा और तुम्हें अपने आप ही वैराग्य प्राप्त होगा इसके बाद तुम केवल बाहर ड्यूटी करोगे लेकिन अंदर हमेशा शांत अवस्था में रहोगे मास्टर ने कहा इस शांति को पाने के लिए मन से नॉन अटैचमेंट का अभ्यास करो हमेशा याद रखो कि मेरा असली स्वरूप आनंद और शांति है।




 मन मुझे नहीं बल्कि मुझ में प्रकट हो रहा है मैं सब कुछ शांति में देख रहा हूं मैं कभी रिएक्ट नहीं करता यानी जो मन से परेशान होता है मन की शिकायत करता है।




 वह भी मन ही है मैं हमेशा शांत हूं केवल सब कुछ देख रहा हूं इस तरह इस बात को याद करके हमेशा प्रेजेंट मूमेंट में बने रहो यह प्रेजेंट मूमेंट असीम अनंत शांति है यहां पर कोई रिएक्शन नहीं केवल एक्शन होता है।




 इस तरह तुम मन में कभी उलझ नहीं पाओगे और सीधे लक्ष्य की तरफ बढ़ते जाओगे समरी में सबसे पहले जो मान लोगे वही सत्य है गलत आइडियाज जो हम पकड़े रहते हैं वही माया है हम झूठी बातों पर विश्वास करते हैं कि मन मुझे परेशान करता है इसलिए हम मन के सामने कमजोर पड़ जाते हैं।




 इसलिए खुद को बार-बार याद दिलाओ कि मैं जहां ध्यान देता हूं वहीं मन जाता है मैं मन का स्वामी हूं और मन मेरा सेवक है तो दूसरी बात शिकायतों से दूर रहो संसार हमारे मन का प्रोजेक्शन है यह मन की आदत है कि वह अपनी कमियों और कंफ्यूजन को संसार में देखता है।




 तीसरी बात मन के प्रति नॉन अटैचमेंट खुद को यह बार-बार याद दिलाओ और अपने अनुभव से महसूस करो कि मेरा असली स्वरूप आनंद और शांति है मन मुझे नहीं मुझ में प्रकट हो रहा है मैं सब कुछ शांति में देख रहा हूं मैं कभी रिएक्ट नहीं करता यानी जो मन से परेशान होता है।




 मन की शिकायत करता है वह भी मन ही है मैं हमेशा शांत हूं सब कुछ देख रहा हूं इस प्रकार मन के प्रति नॉन अटैचमेंट या वैराग्य विकसित होता है और हमको वह शांति महसूस होती है जहां पर एक्शन है।




 रिएक्शन नहीं दोस्तों हम लोग एक बार में फोकस गहरा करने की उम्मीद करते हैं इसलिए परेशान होते हैं अगर हमें सच में ध्यान या फोकस गहरा करना है तो हमें समता मेडिटेशन की नौ स्टेजेस को समझना होगा जिससे हम यह समझ पाएंगे कि जब मन फोकस करना शुरू करता है तो हर स्टेज में क्या दिक्कतें आती हैं और आप इन्हें अभ्यास से कैसे पार करते हो।




 फोकस की नौ स्टेजेस पर अभी कहानी देखिए या बात के लिए सेव कर लीजिए क्योंकि आपके समय से कीमत कहानी कोई ऐप कोई न्यूज कीमती नहीं है। मैं काम के किस्से लाता रहूंगा हम जीतेंगे।


Motivational Kahani in Hindi | Inspirational And Motivational Story In Hindi 

कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.