वट सावित्री व्रत कथा 2025 - vat savitri vart katha2025 - वट सावित्री व्रत की कहानी- Somvati Amavasya
वट सावित्री व्रत कथा 2025 - vat savitri vart katha2025 - वट सावित्री व्रत की कहानी- Somvati Amavasya.
नमस्कार दोस्तों आज के हमारे इस वीडियो
में हम आपके लिए वट सावित्री व्रत की
पौराणिक कहानी लेकर आए हैं एक समय की बात
है अश्वपति नाम के एक राजा थे जिनके कोई
संतान नहीं थी राजा ने संतान प्राप्ति के
लिए अनेकों यज्ञ किए जिसके फल स्वरूप
उन्हें एक तेजस्वी कन्या की प्राप्ति हुई
जिसका नाम सावित्री रखा गया समय बीता और
सावित्री विवाह योग्य हो गई एक दिन राजा
ने सावित्री से कहा सावित्री अब तुम विवाह
योग्य हो गई हो इसलिए स्वयं अपने लिए
योग्य वर की खोज करो पिता की बात मानकर
सावित्री मंत्रियों के साथ यात्रा पर निकल
गई अनेकों ऋषियों के आश्रमों तीर्थों और
जंगलों में घूमने के बाद वह राजमहल लौट आई
संयोगवश उस समय उनके पिता के साथ देवर्षि
नारद भी मौजूद थे सावित्री ने उन्हें
प्रणाम किया तो राजा अश्वपति ने सावित्री
से उसकी यात्रा का समाचार पूछा सावित्री
बोली पिताजी तपोवन में अपने माता-पिता के
साथ निवास कर रहे सत्यवान मेरे लिए योग्य
हैं मैंने मन से उन्हें पति चुना है
सावित्री की बात सुनते ही देवर्षि नारद
चौंक उठे और बोले राजन सावित्री ने तो
बहुत बड़ी भूल कर दी है यह सुनते ही
अश्वपति चिंतित हो गए और बोले हे नारद
मुनि सत्यवान में ऐसा कौन सा अवगुण है जिस
पर नारद मुनि ने कहा राजन सत्यवान के पिता
शत्रुओं के द्वारा राज्य से वंचित कर दिए
गए हैं वह वन में एक तपस्वी जीवन बिता रहे
हैं और उनकी दृष्टि भी जा चुकी है और उसके
ऊपर सबसे बड़ी कमी यह है कि सत्यवान अल्प
आयु है 12 वर्षों की आयु में से अब उसके
पास केवल एक वर्ष की आयु शेष रह गई है
नारद मुनि की बात सुनकर राजा अश्वपति ने
सावित्री को समझाया कि वह किसी दूसरे
उत्तम गुणों वाले पुरुष को अपने पति के
रूप में चुन ले सावित्री बोली पिताजी नारी
अपने जीवन में केवल एक ही पति का वरण करती
है अब चाहे जो भी हो मैं किसी और को अपने
पति के रूप में स्वीकार नहीं कर सकती
पुत्री की हट के आगे पिता विवश हो गए और
सावित्री का सत्यवान के साथ पूरे विधि
विधान से विवाह कर दिया गया विवाह के
पश्चात सावित्री अपने पति और सासससुर के
साथ वन में रहने लगी समय के साथ सावित्री
के मन का भय बढ़ता जा रहा था नारद मुनि के
कहे अनुसार अब उसके पति की आयु के मात्र 4
दिन बाकी थे सावित्री ने तीन दिन पहले से
व्रत रखना प्रारंभ कर दिया अंततः सत्यवान
की मृत्यु का निश्चित चौथा दिन भी आ गया
सत्यवान लकड़ियां लेने वन को जाने लगा तो
सावित्री बोली मैं भी आपके साथ वन में
चलूंगी सत्यवान के मना करने पर भी वह
साससुर की आज्ञा लेकर उसके साथ चली गई वन
में सत्यवान जैसे ही लकड़ियां काटने के
लिए पेड़ पर चढ़ा तो उसके सर में पीड़ा
शुरू हो गई वह पेड़ से उतर गया सावित्री
समझ गई उसके पति का अंतिम समय निकट है
उसने अपने पति का सर अपनी गोद में रख लिया
लेटते ही सत्यवान अचेत हो गया सावित्री
चुपचाप आंसू बहाती ईश्वर से प्रार्थना
करने लगी तभी उसे लाल वस्त्र पहने एक
पुरुष आता दिखाई दिया वह साक्षात यमराज थे
सावित्री बोली महाराज आप कौन हैं यमराज ने
उत्तर दिया सावित्री मैं यम हूं और
तुम्हारे पति के प्राण हरने आया हूं
सावित्री आगे बोली प्रभु सांसारिक
प्राणियों को लेने तो आपके दूत आते हैं
फिर आज आप स्वयं क्यों आए यमराज बोले
सत्यवान एक धर्मात्मा तथा गुणों का सागर
है मेरे दूत इन्हें ले जाने के लिए योग्य
नहीं है इसलिए मुझे स्वयं यहां आना पड़ा
ऐसा कहकर यमराज ने सत्यवान के शरीर से
प्राणों को निकाला और उन्हें लेकर दक्षिण
दिशा की ओर चलने लगे सावित्री भी उनके
पीछेछे चल दी सावित्री को अपने पीछे आता
देख यमराज बोले तुम मेरे पीछे कहां आ रही
हो सावित्री बोली मेरे पति जहां जाएंगे
मैं वहीं जाऊंगी यह मेरा धर्म है यमराज के
बहुत समझाने पर भी सावित्री नहीं मानी
उसके पतिव्रता धर्म की निष्ठा को देखकर
यमराज बोले तुम अपने पति के बदले कोई भी
वरदान मांग लो सावित्री ने अपने दृष्टिहीन
सासससुर की आंखें मांग ली यमराज ने
तथास्तु कहा और आगे चले सावित्री फिर उनके
पीछे-पीछे चल दी तब यमराज ने सावित्री से
कहा एक वर और मांग लो सावित्री ने अपने
साससुर के राज्य को वर के रूप में मांग
लिया और यमराज ने तथास्तु कह दिया फिर वह
आगे चले सावित्री फिर भी उनके पीछे चलने
लगी अब यमराज बोले चलो एक वर और मांग लो
तब सावित्री ने अपने पिता के लिए 100
पुत्रों का वरदान मांगा यमराज ने उसे
तथास्तु कहकर वापस लौटने को कहा लेकिन
सावित्री नहीं मानी फिर उनके पीछे चल दी
यमराज बोले सावित्री तुम मुझसे अपने पति
के प्राणों के अलावा कोई भी वरदान मांग लो
यह आखिरी वर होगा तब सावित्री ने वर मांगा
कि उसे सत्यवान से 100 पुत्र प्राप्त हो
इस बार भी यमराज ने तथास्तु कहा और आगे
बढ़ने लगे परंतु सावित्री एक बार फिर उनके
पीछे चल दी यमराज बोले मैंने तुम्हारे
मांगे हुए सभी मनवांछित वर तुम्हें दे दिए
अब तुम मेरे पीछे क्यों आ रही हो तो
सावित्री बोली महाराज आपने मुझे सत्यवान
से 100 यशस्वी पुत्रों का वरदान दिया है
और सत्यवान के बिना पुत्र कैसे संभव होंगे
ऐसा कहकर सावित्री ने यमराज को उलझन में
डाल दिया तब यमराज बोले सावित्री मैं
तुम्हारे पतिव्रता धर्म से अति प्रसन्न
होकर सत्यवान के प्राणों को छोड़ रहा हूं
साथ ही साथ तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि
तुम्हारी यह कहानी युगों युगों तक सुनाई
जाएगी ऐसा कहकर यमराज ने सत्यवान के प्राण
छोड़ दिए और यमलोक को लौट गए तब सत्यवान
और सावित्री अपनी कुटिया में वापस पहुंचे
तो सत्यवान के माता-पिता की आंखों की
दृष्टि लौट आई थी और उन्हें अपना खोया हुआ
राज्य भी वापस मिल गया ।
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