चुप रहने के फायदे | बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी
चुप रहने के फायदे |बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी | Inspirational And Motivational Kahani in Hindi.
एक बार गौतम बुद्ध अपने आश्रम में अपने सभी शिष्यों को शिक्षा दे रहे थे कि दुनिया की सबसे तेज छोरी हमारी जुबान है और दुनिया के सबसे खतरनाक हथियार हमारे शब्द हैं जो बिना किसी का खून बहाए लोगों को अंदर ही अंदर मार सकते हैं। हमारे शब्द हमारी ताकत भी हो सकते हैं लेकिन यह हमारी सबसे बड़ी कमजोरी भी हो सकते हैं ।
अगर हमें नहीं पता कि कब कहां और क्या बोलना है यदि हम सही समय पर सही इरादे के साथ सही शब्द का प्रयोग करते हैं तो यह हमें एक सफल व्यक्ति बनाता है लेकिन अगर हम सही समय पर सही इरादे से सही शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते तो यह हमारे जीवन को नर्क से भी बदतर बना सकता है। तो दोस्तों आज की स्टोरी के माध्यम से मैं आपको यह बताने वाली हूं कि चुप रहकर कैसे हम अपने जीवन को बदल सकते हैं।
आपको चुप रहने की शक्ति का एहसास इस कहानी में होने वाला है कहानी शुरू करने से पहले कमेंट बॉक्स में नमो बुद्धाय लिखकर कहानी को लाइक जरूर करिएगा तो चलिए इस कहानी को शुरू करते हैं।
बुद्ध की प्रेरणादायक कहानी :
जापान में एक बहुत ही प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षुक रहता था उसका नाम रिसाई था। रिसाई अकेले रहते थे दुनिया के शोर सराबे से दूर जंगल में वह अकेले रहते थे। और वह बड़े ही ध्यानी और प्रभु भक्त थे इसलिए वह पूरे जापान में बहुत अधिक प्रसिद्ध थे।
एक दिन एक राजकुमार रिसाई के आया और बोला हे प्रिय भिक्षु मैं हमेशा थका हुआ निराश और परेशान महसूस करता हूं मेरा मन बहुत अशांत रहता है हालांकि मेरे पास सब कुछ है दौलत शोहरत सुख सुविधाएं जो हर व्यक्ति चाहता है या पाने की इच्छा करता है लेकिन फिर भी मेरे अंदर इतनी अशांति और चिंता क्यों है ?
रिसाई ने उसकी बात बहुत ही ध्यानपूर्वक सुनी और कुछ सोचने के बाद कहा तुम इस प्रश्न का उत्तर जानते हो बस तुमने कभी इस प्रश्न को हल करने की कोशिश ही नहीं की है रिसाई ने आगे कहा मैं एक रिसर्च करना चाहता हूं क्या तुम मेरा साथ उसमें दोगे।
इस रिसर्च के बाद तुम्हारे जीवन में किसी भी तरह की अशांति और चिंता नहीं रहेगी यह बातें सुनकर राजकुमार बहुत हैरान था उसने रिसाई से कहा बताइए मुझे क्या करना होगा अपने मन की शांति के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूं ।
राजकुमार की इन्हीं बातों को सुनकर भिक्षु ने कहा तो फिर आप अगले 15 दिन के लिए मेरे आश्रम में रहोगे और एक सामान्य व्यक्ति की तरह अपना जीवन व्यतीत करोगे और इन 15 दिनों में तुम अकेले और चुपचाप रहोगे। जितना हो सके कम बोलोगे राजकुमार उस भिक्षु की बातें सुनकर सहमत हो गया।
पहले दिन तो राजकुमार को लगा उसका मन सामान्य से अधिक अशांत और विचलित है उसके मन में तरह-तरह के विचार आ रहे हैं और वह आम लोगों की तरह जीवन जीने में असहज महसूस कर रहा है उसे अंदर से बोलने की इच्छा हो रही थी। लेकिन वह चुपचाप था उसके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला बस वह चुपचाप बैठा रहता।
लेकिन रात होते होते उसे अंदर ही अंदर शांति का अनुभव होने लगा उसके लिए यह अनुभव अजीब था वह खुद से पूछ रहा था कि वह अंदर ही अंदर इतना खुश क्यों है। और उसकी आंतरिक बेचैनी और चिंता कम क्यों होने लगी है अगले दिन राजकुमार अकेला चुपचाप बैठा रहा और प्रकृति को निहार रहा था वह पौधों को फूलों को आकाश में उड़ रहे पक्षियों को वह अपने जीवन में पहली बार यह अद्भुत दृश्य महसूस कर रहा था कि उसके पास कितनी सुंदरता है ।
वह दिन भर प्रकृति की सुंदरता को निहारता रहता और उसकी ताजगी को महसूस करता रहता इसी तरह से 10 दिन बीत गए और उसके मन की सारी बेचैनी सारी हलचल सारी उथल-पुथल और सारा तनाव गायब हो गया।
ग्यारहवे दिन की सुबह राजकुमार फिर से एकांत में बैठ गया और कुछ ही मिनटों में उसकी आंखें अपने आप बंद हो गई और वह गहरे ध्यान में चला गया वह पूरे दिन वहीं बस आंखें बंद करके बैठा रहा।
और गहरे ध्यान में डूबा रहा ना कोई शब्द ना कोई चिंता राजकुमार भीतर से असीम शांति और आनंद से भर गया राजकुमार अपने बाकी के चार दिन इसी तरह गहन ध्यान में व्यतीत करने के बाद 15 दिन बाद रिसाई के सामने प्रस्तुत हुआ और रिसाई को प्रणाम करके बोला।
प्रिय भिक्षु मुझे उत्तर मिल गया कि मेरे मन में इतनी उथल पुथल और चिंता क्यों थी मैं जान गया कि मेरा मन इतना अशांत और विचलित क्यों था। रिसाई मुस्कुराते हुए पूछे बताओ तुम्हें क्या उत्तर मिला राजकुमार ने कहा मैं आवश्यकता से अधिक बातें करता था।
मैं किसी पर भी अपने शब्द और ऊर्जा व्यर्थ करता था मैं दिन भर अपने लोगों से फालतू की बातें करता रहता और फिर उन्हीं के बारे में अकेले में सोचता रहता और ज्यादातर समय नकारात्मक ही सोचता रहता इस तरह मैं बस अपना समय बर्बाद कर रहा था।
ज्यादा बोलने और नकारात्मक सोचने की से मेरा मन अशांत और बेचैन हो गया था और इसी वजह से मैं किसी भी काम को ठीक से नहीं कर पा रहा था और फिर इन्हीं असफलताओं की वजह से मैं उदास और चिड़चिड़ा हो गया इन्हीं सभी चीजों की वजह से मेरा जीवन नष्ट हो रहा था।
लेकिन यहां पर बिताए हुए 15 दिन मेरे लिए पूरी तरीके से अलग थे मुझे कुछ अलग ही एहसास यहां पर हो रहा था अब तो मुझे ऐसा लग रहा है मैं अपना जीवन पूरी तरीके से जी रहा हूं। लेकिन इससे पहले मैं अपना जीवन गलत तरीके से जी रहा था और मैंने यह भी सीखा कि हमें सिर्फ ध्यान करने की जरूरत नहीं है।
ध्यान अपने आप होता है जब हमें शांत और मौन होते हैं ध्यान के पिछले कुछ दिनों के दौरान मैंने जो पहली चीज सीखी वह यह है कि मनुष्य के जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण घटना स्वयं को जानना है यह सुनकर रिसाई ने कहा सिर्फ तुम ही नहीं दुनिया में ज्यादातर लोग जरूरत से ज्यादा बोलते हैं।
आज भी लोग ज्यादातर समय केवल एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए ही बोलते हैं कुछ लोग ना चाहते हुए भी बातें करते हैं और अपना जीवन बर्बाद कर लेते हैं रिसाई ने राजकुमार को चुप रहने का महत्व समझाते हुए कहा ।
एक बार गौतम बुद्ध से उनके शिष्यों ने पूछा प्रिय बुद्ध आप ज्यादातर समय चुप क्यों रहते हैं। बुद्ध ने कहा क्योंकि चुप रहने से व्यक्ति अंदर से अनंत शांति की गहराइयों में होता है मौन अपने भीतर उतरने की पहली सीढ़ी है मौन के बिना स्वयं को जानना असंभव है।
स्वयं को जानने और समझने का पहला नियम है कि मौन हो जाओ उतना ही बोलो जितना अत्यंत आवश्यक हो फिजूल की बातें करना छोड़ दो तुम अचानक पाओगे कि 10 से भी ज्यादातर लोग व्यर्थ ही ज्यादा बोलकर अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। ना बोलने का कोई भी नुकसान नहीं है ।
लेकिन यदि आप ज्यादा बोलते हैं तो आप अत्यधिक गलती कर देते हैं अगर व्यक्ति कम बोलना शुरू कर दे तो दुनिया की आधे से ज्यादा मुसीबतें कम हो जाएंगी झगड़े फसाद कम हो जाएंगे अदालतें कम हो जाएगी अगर लोग थोड़ा चुप रहना सीख लिए संसार की बहुत सारी समस्याएं अपने आप खत्म हो जाएंगी।
क्योंकि जब तुम नहीं बोलते तब तुम एकांत में होते हो जिसने मौन की कला जान ली वह भीड़ में भी अकेले होने की कला जान लेता है वह अपने भीतर ही डुबकी लगाने लगता है। एकांत में तो आदमी स्वर्ग में है दूसरे की उपस्थिति तो बेचैनी पैदा करती है पहले तुम्हें चुप रहने की शक्ति को धारण करना होगा इससे तुम अधिकतर ऊर्जा को बचा लोगे और फिर इस स्थिति में पहुंच जाओगे कि तुम कम बोलने लगोगे।
अगर तुम किसी के यहां पर जा रहे हो और परेशान हो जाओ तो ऐसे में उचित है कि आंखें बंद कर लो और अपने आप में खो जाओ वहां से आपको ताजगी महसूस होगी। क्योंकि तुम्हारे अंदर ही जीवन का वह स्त्रोत छिपा है वो किसी दूसरे में नहीं है जब तुम चुप रहना शुरू कर देते हो तुम्हारे चेहरे पर एक नई रौनक आ जाती है।
तुम्हारी आंखें किसी अमृत के समान हो जाती है और तुम अनंत शांति के समुद्र में डूबने लगते हो इतना कहकर भिक्षु रिसाई ने अपनी बात खत्म की और वह भी मौन में चले गए राजकुमार उनका धन्यवाद करके अपने महल में चला गया।
दोस्तों आपने भी अनुभव किया होगा कि बहुत ज्यादा बात करने से दिमाग अशांत हो जाता है। जिससे हम अपने दिमाग पर अपना नियंत्रण खो देते हैं और साथ ही अपना ध्यान भी खो देते हैं जो लोग बहुत ज्यादा बोलते हैं उनके पास किसी एक काम पर ध्यान केंद्रित करने की काबिलियत नहीं होती वह अपने किसी भी लक्ष्य पर पूरी तरीके से केंद्रित नहीं कर पाते ।
अगर हमारा दिमाग एक जगह केंद्रित नहीं है तो हम जीवन की सच्चाई नहीं समझ पाते और ना ही मनचाही सफलता कभी हासिल कर पाएंगे इसके अलावा भी आपने देखा होगा कि जो लोग अधिक बोलते हैं वह अक्सर लोगों के बीच हंसी का पात्र बन जाते हैं और जो कम बोलते हैं वह अपनी बात पर कायम रहते हैं।
उन्हें लोगों से सम्मान मिलता है लोग उनकी बातों को सुनते हैं और उन पर भरोसा भी करते हैं जो लोग जरूरत से ज्यादा बोलते हैं और अपने विचारों के बारे में पक्के नहीं होते उनका दिमाग अस्थिर और विचलित रहता है। शोर से भरा रहता है और एक अशांत दिमाग वाला व्यक्ति जीवन में किसी भी चीज में सफल नहीं हो पाता क्योंकि वह किसी भी काम में फोकस नहीं कर पाता।
दोस्तों उम्मीद करती हूं आपको यह कहानी से एक अच्छी सीख मिली होगी यह कहानी आपको कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताइएगा और साथ ही इस कहानी को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करिए ताकि उन्हें भी इस कहानी से कुछ सीखने को मिल सके।
धन्यवाद ...
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