दुख और सुख के कारण | गौतम बुद्ध की कहानियां pdf

दुख और सुख के कारण | गौतम बुद्ध की कहानियां pdf | Motivational Kahani in Hindi. 


 नमस्कार दोस्तों कहते हैं कि सुख और दुख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं सुख में व्यक्ति का मन प्रसन्न रहता है और चेहरे पर मुस्कान होती है वही कोई विपदा या दुख आ जाए तो व्यक्ति परेशान हो उठता है लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है कि जब कोई विपदा आए व्यक्ति तभी परेशान हो कई बार तो लोग बिना वजह के भी परेशान हो जाते हैं उनके मन में भूतकाल की घटनाओं को लेकर प्रश्न उठते हैं तब वह उस बारे में सोच सोच कर परेशान हो जाते हैं बार-बार अपनी पिछली गलतियों का विश्लेषण करके भी परेशान हो जाते हैं कई बार भविष्य में होने वाली घटनाओं को लेकर भी व्यक्ति आज से ही परेशान होना शुरू कर देते हैं इस तरह से परेशान रहने से व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है और उसकी सोचने समझने की क्षमता भी कमजोर हो जाती है परेशानी एक ऐसी वजह है जिससे व्यक्ति को हृदय रोग ब्लड प्रेशर जैसी समस्याएं भी हो जाती हैं यह ना सिर्फ मानसिक स्वास्थ्य थे बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक मानी जाती है ऐसे में अब आपके मन में भी सवाल उठ रहे होंगे कि क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे परेशान रहने वाली आदत से छुटकारा पाया जा सके जी हां बिल्कुल ऐसे उपाय हैं जिनकी मदद से आप परेशान रहने वाली अपनी आदत से छुटकारा पा सकते हैं इन उपायों को जानने से पहले हम आपको एक कहानी सुनाते हैं और उम्मीद करते हैं कि आप इस कहानी को ध्यान लगाकर सुनेंगे दोस्तों गौतम बुद्ध की शिक्षा हर किसी के जीवन को नई दिशा दे सकती है अगर आप भी इसे मानते हैं तो कमेंट्स में नमो बुद्धाय लिखना मत भूलिए ।



गौतम बुद्ध की कहानियां pdf

बहुत समय पहले की बात है बुद्ध सन्यासी के आश्रम में 500 से भी अधिक विद्यार्थी उनके शिष्य बनकर उनके सानिध्य में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे सभी विद्यार्थी बहुत ही कमटी स्वभाव के थे वह सभी बुद्ध की आज्ञा को सबसे ऊपर रखते थे।


 एक दिन बुद्ध सन्यासी जब शिष्यों को उपदेश देकर अपने स्थान की ओर लौट रहे थे तभी उन्होंने देखा कि एक साधारण सा व्यक्ति दौड़ा दौड़ा उनकी तरफ चला आ रहा है बुद्ध सन्यासी के पास पहुंचते ही वह व्यक्ति धरती पर बैठ गया।



 बुद्ध सन्यासी ने उसे उसकी इस दशा का कारण पूछा तब उसने बताया कि दरअसल वह अपने मन में उठ रहे विचारों के तूफान से वह बहुत अधिक परेशान हो हो चुका है और अब वह सन्यासी बनना चाहता है बुद्ध सन्यासी उस व्यक्ति की परेशानी को समझ चुके थे।


 उन्होंने उससे कहा कि तुम सचमुच सन्यासी बनना चाहते हो या केवल सन्यासी जैसे दिखना चाहते हो तब उस व्यक्ति ने उत्तर दिया कि मैं तो अवश्य ही सन्यासी बनना चाहता हूं तब बुद्ध सन्यासी ने कहा कि मेरे आश्रम में पहले से ही 500 पर्याप्त शिष्य हैं मैं तुम्हें अभी अपना शिष्य नहीं बना सकता।


 जब मुझे ठीक लगे उस दिन मैं तुम्हें अपना शिष्य अवश्य बनाऊंगा उस व्यक्ति ने बुद्ध सन्यासी की आज्ञा स्वीकार कर ली और कहा कि ठीक है मैं मन से आपको अपना गुरु मानता हूं इसलिए आपकी हर बात स्वीकार है किंतु मैं इसी आश्रम में रहकर उस क्षण की प्रतीक्षा करना चाहता हूं।



 जब आप मुझे अपने शिष्य के रूप में स्वीकार करेंगे बुद्ध सन्यासी ने कहा कि ठीक है तुम इसी आश्रम में रहो और सभी 500 शिष्यों के लिए धान को टने का काम करो बुद्ध सन्यासी की आज्ञा को मानते हुए वह व्यक्ति धान कूटने के काम पर लग गया धान कूटने के कार्य में उसने अपने जीवन के लगभग 12 वर्ष बिता दिए और बुद्ध सन्यासी ने उसे अभी तक नहीं बुलाया था।।


 व्यक्ति धान कूटने में वह इतना मगन हो चुका था कि उसे ना दिन का होश रहता था ना ही रात का वह सुबह उठता धान कटता शाम को फिर से धान कटता और सो जाता इस प्रक्रिया में उसने इतना लंबा समय बिताया कि अब उसके मन में कोई विचार नहीं बचे थे।



 जो उसे परेशान कर सके उसका तो बस एक ही लक्ष्य था धान कूटना 12 वर्षों के समय ने उसके मन के सभी विचारों को समाप्त कर दिया था लेकिन उसे इस बात का पूरा विश्वास था कि एक दिन बुद्ध सन्यासी उसे जरूर बुलाएंगे।


 दिन बीत रहे थे एक दिन आश्रम में बहुत हलचल मची हुई थी आज गुरुजी अपने उत्तराधिकारी का चुनाव करने वाले थे सभी शिष्य में से एक ऐसा शिष्य होगा जो बुद्ध आश्रम का सर्वे सर्वा होगा लेकिन बुद्ध सन्यासी गुरु ने अभी तक यह नहीं बताया था।


 कि चुनाव की प्रक्रिया क्या होगी जब चुनाव की प्रक्रिया जानने के लिए सभी शिष्य एकत्रित हुए तब बुद्ध सन्यासी गुरु ने कहा कि मैं चाहता हूं जो भी शिष्य स्वयं को इस पद के लिए योग्य मानते हैं वे आज रात को मेरे कमरे की बाहरी दीवार पर चार पंक्तियां लिखें किंतु य यह पंक्तियां किसी शास्त्र अथवा पुस्तक की नहीं होनी चाहिए बल्कि वह शिष्य के स्वयं के विचार होने चाहिए।


 बुद्ध गुरु की इन बातों को सुनकर सभी शिष्य आपस में बातचीत करने लगे और मन ही मन सोचने लगे कि गुरु को धोखा देना इतना आसान नहीं है यदि हमने किसी शास्त्र अथवा किसी पुस्तक से पढ़ी गई पंक्ति को लिखा तो गुरु तुरंत ही पहचान जाएंगे।



 इन सभी शिष्यों में से एक शिष्य ने बड़ी हिम्मत के साथ गुरु के कमरे के बाहर की दीवारों पर चार पंक्तियां लिख डाली मन एक दर्पण की तरह है उस पर धूल जम जाती है धूल को साफ कर दो तो धर्म और सत्य की प्राप्ति हो जाएगी सुबह जब बुद्ध सन्यासी ने दीवार को देखा तो उस शिष्य को सामने आने का आदेश दिया जिसने यह पंक्तियां लिखी थी।


 लेकिन उस शिष्य के अंदर इतना भय था कि उसने पहले ही आश्रम का त्याग कर दिया था और अपने मित्रों को कहा था कि यदि गुरु इन पंक्तियों की प्रशंसा करें तो मेरे पास संदेश भेजना किंतु यदि हमारे गुरु उपस्थित होने का आदेश दें तो समझ लेना कि मैंने कुछ गलती की है।


 आश्रम में सब और इसी बात की चर्चा थी कि इतनी सुंदर पंक्तियां लिखने के बाद भी गुरु उस शिष्य पर क्रोधित है उसने बिल्कुल सही पंक्तियां लिखी हैं लेकिन फिर भी गुरु उसे दंडित करना चाहते हैं अब देखना यह होगा कि बुद्ध गुरु इससे ऊंची पंक्तियां लिखने वाले व्यक्ति को कहां से लेकर आते हैं।



 इन्हीं सब बातों पर चर्चा करते हुए दो शिष्य धान कूटने वाले व्यक्ति के पास जा पहुंचे उस धान कूटने वाले व्यक्ति के अंदर भी जिज्ञासा हुई उसने पूछा कि आश्रम में क्या चल रहा है तब दोनों शिष्यों ने सारी बात उसे बताई पहले तो वह हंसने लगा।


 दोनों शिष्यों ने जब उससे हंसने का कारण पूछा तो उसने कहा कि इससे अच्छी पंक्तियां तो मेरे पास है वह भी स्वयं की बनाई हुई दोनों शिष्य को लगने लगा था कि धान कूटने वाले व्यक्ति का मजाक बनाते हैं जो कभी शास्त्र की एक किताब नहीं पढ़ा।



 उसके पास ध्यान क्या होगा तब एक शिष्य ने कहा कि बताओ वह पंक्ति क्या है और चलकर उसे दीवार पर लिख दो तब डान कूटने वाले उस व्यक्ति ने कहा कि यदि उसने पंक्तियों को दीवार पर लिख दिया तो तो वह गुरु जी का उत्तराधिकारी बन जाएगा।


 और उसकी उत्तराधिकारी बनने की कोई इच्छा नहीं है और 12 वर्षों तक लगा तार धान कुट कटते वह लिखना भी भूल गया है शिष्यों ने उससे कहा कि कोई बात नहीं तुम हमें बताओ हम लिख देंगे डान कूटने वाले व्यक्ति ने बताया कि जो जाकर लिख दो कैसा दर्पण कैसी धूल ना कोई दर्पण ना कोई धूल जो जान गया।



 यह रहस्य धर्म और सत्य उसे ही प्राप्त है उन शिष्यों ने पंक्तियों को जाकर बुद्ध गुरु की दीवार पर लिख दिया किंतु बुद्ध गुरु जान चुके थे कि यह विचार तो उस धान कूटने वाले व्यक्ति के हैं थोड़ी देर बाद जब शिष्य वहां से चले गए तब गुरु स्वयं उस धान कूटने वाले व्यक्ति से मिलने आए और उससे कहा कि अब वह उत्तराधिकारी बन चुका है।



 उसकी इच्छा हो या ना हो गुरुजी का उत्तराधिकारी बन गया है बुद्ध सन्यासी से कहा कि अब वह इस आश्रम को छोड़कर जाए और कहीं दूर आश्रम बनाकर ञान का प्रचार प्रसार करें क्योंकि इस आश्रम के लोग तुम्हें कभी गुरु नहीं मानेंगे वह यह नहीं पहचान पाएंगे कि बिना शास्त्र की पढ़ाई के भी कोई ञान को प्राप्त हो सकता है ।


वह धान कूटने वाला व्यक्ति बुद्ध गुरु को प्रणाम करता है उसके कृतज्ञता के आंसू गुरु के पैरों पर गिरते हैं वह समर्पण की भावना से खुद को गदगद महसूस करता है गुरु उसे बढे प्रेम से उसे उठाते हैं गले लगाते हैं और कहते हैं कि तुम जान को प्राप्त हो इस प्रकाश को दुनिया में फैलाओ गुरु को वंदन करके वहां से निकल जाता है।



 अगले दिन बुध गुरु जी ने धान कूटने वाले उसे व्यक्ति की बातें अन्य सभी शिष्यों को बताई और कहा कि जिस दिन तुम्हारे मन में विचार उठना समाप्त हो जाएंगे असल में सत्य का अनुभव तुम्हें उसी दिन होगा तुम खुद को और इस ब्रह्मांड को अच्छी तरह से समझ और जान पाओगे।


 और यही धर्म प्राप्ति का पहला मार्ग है मन के विचारों को शांत करने का सबसे अच्छा तरीका है अपने विचारों पर ध्यान देना मन में किस प्रकार के विचार आ रहे हैं उस पर बड़ी ही सावधानी से निरीक्षण करने की आवश्यकता होती है लेकिन इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि मन में आने वाले विचारों को दबा दिया जाए ऐसा करने से विचारों की जड़े और तेजी से फैलेंगे।


 इसलिए अपने मन पर ध्यान देना है हो सकता है कि आपका मन थोड़े समय के लिए भटकने की अवस्था में आ जाए लेकिन आपको जैसे से ही यह याद आए कि आप तो विचारों का निरीक्षण करने आए थे तुरंत ही अपने विचारों पर ध्यान लगाना शुरू कर दें शुरुआत में परेशानी हो सकती है।


 मन इधर-उधर भागने लगेगा लेकिन कुछ ही दिनों में जब आपको इसकी आदत पड़ जाएगी तब आप आसानी से अपने विचारों को समझ पाएंगे और देख पाएंगे कि आपका मन किस दिशा में जा रहा है धीरे-धीरे आप पाएंगे कि आपके मन में विचार उठना कम हो गए हैं।


 अब आप ना तो अपने भत काल की चिंता करते हैं नहीं भविष्य काल की आपका मन और जीवन दोनों ही वर्तमान में जीना सीख जाते हैं इस प्रकार बुद्ध गुरु जी ने शिष्यों के साथ अपनी बातचीत समाप्त की उम्मीद करते हैं कि आपको यह कहानी पसंद आई होगी और इससे आपने कुछ महत्त्वपूर्ण सीखा होगा जो आपके जीवन में काम आएगी।


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