जीवन में परेशानियों से लड़ना सिखों | Gautam Buddha Story

 जीवन में परेशानियों से लड़ना सिखों | Gautam Buddha Story | Inspirational Story 


नमस्कार दोस्तों स्वागत है आप सभी का एक और नए कहानी Gautam Buddha Story में तो दोस्तों आज की हमारी कहानी कहती है कि अहंकार एक विनाशकारी भावना है जो व्यक्ति को अंधेरे के रास्ते पर ले जाती है यह व्यक्ति को अपनी कमियों को देखने से रोकता है और उसे यह झूठा विश्वास दिलाता है कि वह दूसरों से श्रेष्ठ है अहंकारी व्यक्ति हमेशा दूसरों से बेहतर होने का दावा करता है और वह कभी भी अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करता है यह अहंकार किसी भी व्यक्ति को दूसरों की सलाह और आलोचना अनदेखा करवाता है वह दूसरों की राय को सुनने के लिए तैयार नहीं रहता है और वह हमेशा अपने ही हिसाब से काम करना चाहता है जिससे वह सीखने और सुधार करने के अवसरों से वंचित रह जाता है अहंकार व्यक्ति को अकेला कर देता है क्योंकि कोई भी व्यक्ति अहंकारी व्यक्ति के आसपास रहना पसंद नहीं करता है।

 अहंकार व्यक्ति को गलत रास्ते पर ले जाता है और उसे विनाश की ओर धकेल है अहंकार के कई रूप हैं यह अभिमान घमंड और श्रेष्ठता के भाव के रूप में प्रकट हो सकता है अहंकार व्यक्ति के जीवन में कई समस्याएं पैदा करता है यह उसके रिश्तों को खराब करता है और उसे सफल होने से रोकता है अहंकारी व्यक्ति अक्सर दूसरों को दुख देता है और वह खुद भी दुखी रहता है चलिए इसे आज की बौद्ध कहानी के माध्यम से समझते हैं और यह भी जानने का प्रयास करते हैं कि आखिर इसका समाधान क्या है और अपने अहंकार को नियंत्रित करने के लिए हम क्या कर सकते हैं।
 

अहंकार को नियंत्रित कैसे करें। 


बहुत समय पहले की बात है एक छोटा सा राज्य था उस राज्य में एक व्यापारी रहता था जो बहुत अमीर था जिसके पास किसी चीज की कोई कमी नहीं थी उसके पास वह सारी सुख सुविधाएं थी जो वह चाहता था उसका एक पुत्र भी था जो अब युवा हो चुका था उस व्यापारी के पुत्र ने अब तक अपने जीवन में कोई दुख नहीं देखा था।

 जो भी वह चाहता था वह व्यापारी उसे सब कुछ लाकर दे देता था जिस कारण उसे अपने जीवन में किसी प्रकार के दुख का अनुभव अब तक नहीं किया था उस व्यापारी के पुत्र के कई सारे मित्र भी थे उसके पास अथाह संपत्ति थी।

 धन दौलत की उसके पास कोई कमी नहीं थी लेकिन एक दिन अचानक वह व्यापारी बीमार पड़ गया और देखते ही देखते उसकी बीमारी ने उस पर पूरी तरह से पकड़ बना ली थी वह व्यापारी अपने जीवन की आखिरी सांसें गिन रहा था।


 अब उस व्यापारी को यह प्रतीत होने लगा था कि वह नहीं बच पाएगा उसका अंतिम समय आ चुका है इसीलिए उसने अपने पुत्र को अपने पास बुलाया और उससे कहा बेटा तुमने आज तक केवल सुख ही देखा है तुम्हें जो कुछ चाहिए था वह मैंने सब कुछ तुम्हें कर दिया इसलिए तुमने आज तक दुख का अनुभव नहीं किया दुख क्या होता है यह तुम्हें पता तक नहीं और इसी बात की चिंता मुझे खाई जा रही है कि जब तुम्हारे पर दुखों के बादल मंडराने लगे तो तुम सह नहीं पाओगे।


 इसीलिए आज मैंने तुम्हें यहां पर बुलाया है मैं बस आखिरी समय पर तुमसे यह कहना चाहता हूं कि तुम सावधान रहना मेरी मृत्यु के बाद तुम्हारे अपने ही तुम्हारे दुखों का कारण बन जाएंगे इतना कहकर वह व्यापारी मृत्यु को प्राप्त हो गया उस व्यापारी का पुत्र अपने पिता की मृत्यु पर बहुत दुखी था।


 वह रो रहा था तभी उसके पास उसका एक मित्र आया और वह उसे समझाते हुए कहता है मित्र तुम रो क्यों रहे हो तुम्हारा पिता ही मरा है लेकिन तुम्हारे पास तो अब भी यह सारी धन दौलत है यह सारी संपदा है कि सारी संपत्ति तुम्हारी ही तो है अब तो तुम उन चीजों का भी आनंद ले सकते हो जिनका आनंद तुम अपने पिता के रहते नहीं ले पाए।


 अपने मित्र की यह बात सुनकर वह बड़ा प्रसन्न हुआ और उसे भी इस बात का एहसास हो चुका था कि उसके पास अथाह संपत्ति है धन है दौलत है जिसकी मदद से वह अपना जीवन खुशी-खुशी बिता सकता है।


 लेकिन इसी धन संपदा के कारण वह अब बुरी आदतों का शिकार भी हो चुका था उसे हर प्रकार का नशा करने की आदत लग चुकी थी जहां उसका मन करता वह वहां चला जाता जब भी उसका मन करता वह किसी को भी अपने घर बुला लेता फिर चाहे दिन हो या रात जो भी उसका मन करता वह खरीद लेता क्योंकि ?


 उसके पास संपत्ति थी और तो और उसके पिता का सारा व्यापार भी अब उसी के हाथों में था और अब वह बहुत खुश था वह अपने जीवन को अपनी मर्जी के हिसाब से जी रहा था एक दिन उसके मन में ख्याल आया कि पिता ने मुझे बेवजह ही डरा दिया कि लोग मेरा फायदा उठाएंगे मेरे दुश्मन बन जाएंगे ।


मेरे दुखों का कारण बन जाएंगे लेकिन अब तो मैं और भी मजे से जी रहा हूं मेरे सुख के दिन तो अब आए हैं मैं आज तक जो नहीं कर पाया था वह सब करने में अब मैं सक्षम हूं यह सब सोचकर उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था वह बहुत खुश था तभी एक दिन उस राज्य में एक बहुत बड़ा अस्पताल का निर्माण हो रहा था और इस अस्पताल के निर्माण के समय पर एक घोषणा करवाई गई कि जो भी इस अस्पताल के लिए सबसे अधिक दान देगा उसका नाम उस अस्पताल के एक पत्थर पर स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।



 जब उसके मित्र ने यह बात सुनी तो वह दौड़ा दौड़ा उसके पास आया और उसे सारी बात बता दी तब उस व्यापारी के पुत्र ने यह तय किया कि वह अस्पताल को सब से बड़ा दान देगा और उसने ऐसा ही किया और साथ ही यह भी निश्चित हो गया कि उसका नाम उस अस्पताल के एक पत्थर पर स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।



 लेकिन जब वह दान देकर वापस घर की ओर लौट रहा था तो रास्ते में उसे एक साधु मिले जो भोजन की मांग कर रहे थे इस पर वह घमंडी व्यापारी का पुत्र कहता है तुम जैसे लोग केवल दो वक्त की रोटी के लिए हमेशा चिल्लाते रहते हो पता नहीं तुम लोग कहां से आ जाते हो और भगवान तुम लोगों को पैदा ही क्यों कर करता है।



 तुम लोग गंदगी हो तुम्हें जीने का कोई हक नहीं केवल अपना पेट भरने के लिए दो वक्त की रोटी के लिए तुम किसी के सामने भी झुक जाते हो यदि झुकना ही है तो उस ईश्वर के सामने झुको शायद वह तुम्हारी गलतियों को माफ कर दे और तुम्हें एक अच्छा जीवन प्रदान करें हो सकता है।


 वह तुम्हें भोजन भी दे दे वह लड़का उन साधु को खरी खोटी सुनाकर वहां से चला गया धीरे-धीरे उस लड़के के पास उसके मित्रों सहयोगियों और रिश्तेदारों की संख्या बढ़ने लगी अब हर कोई उससे बिना पूछे कोई काम नहीं करता था हर चीज में उसी से पूछा जाता था ।


जिस कारण उस लड़के को लगने लगा था कि अब मेरे बिना कोई काम नहीं हो सकता जो भी हूं मैं ही हूं जिस कारण उस लड़के का अहंकार अब सातवें आसमान पर था सभी लोगों ने उसका मन जीत लिया था सब लोग उसके विश्वास पात्र बन चुके थे उस लड़के के पास अपार धन था जिस कारण सब उससे जुड़े हुए थे।



 लेकिन यह बात उस लड़के को समझ नहीं आ रही थी सभी लोग विश्वास के नाम पर अब उस लड़के से धन उधार लेने लगे थे और वह भी खुशी-खुशी लोगों को धन उधार में दे दिया करता है जो कोई उसे धन उधार लेने आता वह जितना मांगता वह उससे ज्यादा ही उन्हें दिया करता क्योंकि वह सभी की नजरों में अपने आप को साबित करना चाहता था वह अपने आप को महान दिखाना चाहता था।

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 लेकिन धीरे-धीरे उसकी बुरी आदतों के कारण अब उसका व्यापार चौपट होने लगा था देखते ही देखते एक दिन व्यापार में उसे बहुत बड़ा घाटा हुआ उसका पूरा व्यापार कर्ज में डूब गया अब वह बहुत परेशान हो चुका था बहुत चिंतित हो चुका था उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब क्या हुआ।


 मेरे पास तो कुछ समय पहले अपार धन था और आज मेरे ऊपर बहुत बड़ा कर्जा है जिसे मुझे चुकाना ही होगा तभी उसे उधार दिया हुआ धन याद आया जो उसने अपने मित्रों और सहयोगियों को दिया था अपने रिश्तेदारों को दिया था उसने सभी से वह अपना दिया हुआ कर्ज वापस मांगना शुरू किया।


 लेकिन किसी ने भी उसका दिया हुआ कर्ज उसे वापस नहीं दिया बल्कि लोगों ने उसे दुत्कार कर वहां से भगा दिया वे एक-एक करके सभी के पास गया लेकिन किसी ने उसकी कोई मदद नहीं की देखते ही देखते उसका सब कुछ बिक गया अब उसके पास कुछ ना था वह सड़क पर आ चुका था तभी वह यह सोचने लगा कि अपने सुख के दिनों में मैं यह नहीं जान पाया कि मैं अपने शत्रुओं से घिरा हुआ हूं।


 मेरे पिताजी सही कहते थे कि मेरे अपने ही मेरे दुखों का कारण बनेंगे पिता जी आपका धन्यवाद लेकिन मैं आपकी बातों को समझ नहीं पाया और आज देखिए क्या-क्या हो गया वह सारा दिन यहां से वहां भटकता रहा और सोचता रहा कि अब आगे क्या होगा वह कैसे खाएगा कहां रहेगा और कैसे सोएगा उसे अपने पिता की याद सता रही थी वह उन्हें याद कर कर के रो रहा था।



 उसकी आंखों से आंस बह रहे थे लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी और अब धीरे-धीरे उसे भूख भी लग रही थी तभी उसने सोचा कि मैं उसी अस्पताल पर चलता हूं जहां पर पत्थर पर मेरा नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है मैं जाकर वहां पर कुछ मदद मांगता हूं वह वहां पहुंचा और वहां के मालिक से वह कहता है।


 आपने मुझे पहचाना मैं वही हूं जिसने इस अस्पताल को सबसे बड़ा दान दिया है और मेरा नाम इस अस्पताल के पत्थर पर स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है हालांकि इस समय मेरी हालत कुछ खराब है और मेरे पास खाने के लिए भी कुछ नहीं है क्या आप मुझे कुछ भोजन दे सकते हैं मैं भूखा हूं मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है।



 मेरे अपनों ने मुझे धोखा दे दिया है क्या आप मुझे कुछ भोजन दे सकते हैं तभी मालिक कहता है भिखारियों को भोजन इस अस्पताल के बाहर दिया जाता है अस्पताल के अंदर नहीं जाओ और जाकर बाहर बैठ जाओ और रही बात तुम्हारे नाम की तो भिखारियों का नाम अस्पताल के पत्थर पर स्वर्ण अक्षरों में नहीं लिखा जाता मालिक ने तुरंत ही उस लड़के का नाम अस्पताल के उस पत्थर पर से हटवा दिया और फिर एक बार घोषणा करवा दी कि अस्पताल को जो सबसे बड़ा दान देगा।


 उसका नाम इस अस्पताल के पत्थर पर स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा यह सब देखकर वह लड़का बड़ा हैरान था बड़ा अचरज में था वह मन ही मन रो रहा था और सोच रहा था कि जीवन कितना दुखदाई है जीवन बहुत छोटा है अब मैंने जान लिया कि पत्थर पर लिखा हुआ नाम भी मिटाया जा सकता है।


 और यदि पत्थर पर लिखा हुआ नाम मिटाया जा सकता है तो इस जीवन का क्या मोल यह जीवन भी कभी भी समाप्त हो सकता है उस लड़के को जोरों की भूख लगी थी वह अस्पताल के बाहर जाकर एक कोने में बैठ गया लोग आते रहे और भिखारी को कुछ ना कुछ दान देते रहे लेकिन वह लड़का उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वह भीख मांग सके और ना ही वह उन भिखारियों में बैठना चाहता था।

Hindi Motivational Kahani in Hindi 


 देख देखते ही देखते दोपहर से रात का समय हो चुका था लेकिन अब तक उसे कुछ भी ना मिला था लेकिन उसकी भूख बढ़ती चली जा रही थी और उसे जोरों की भूख लगी थी पहली बार उसने अपनी भूख को जाना था अपने पेट की इस आग के बारे में जाना था और इस भूख के कारण वह इतना परेशान हो चुका था कि उसने तय किया कि वह अस्पताल से ही कुछ चुरा लेगा और उसे खाकर अपना पेट भर लेगा।


 जैसे ही वह वहां से उठता है तभी वह साधु वहां पर जाते हैं जिसे उस लड़के ने बहुत खरी खोटी सुनाई थी वह साधू उस लड़के के पास आकर कहते हैं बेटा हम पहले भी मिल चुके हैं वह साधु भिक्षा से वापस लौट रहे थे उन्होंने कुछ भोजन उसे देते हुए कहा यह लो खालो तुम्हें जोरों की भूख लगी होगी।


 मैं तुम्हें जानता हूं मैं समझता हूं कि हालात तुम्हें जबरदस्ती झुकाना चाहते हैं लेकिन तुम लोगों के सामने झुकना नहीं चाहते लेकिन अगर तुम लोगों के सामने झुकेंगे नहीं तो तुम्हें भोजन भी नहीं मिलेगा आज तो मैंने तुम्हें भोजन दे दिया है।



 जिससे तुम्हारी भूख मिट जाएगी लेकिन यह भूख रोज लगेगी यह पेट की आग कभी नहीं मिटती इस पर वह लड़का उन साधु से कहता है जब मेरे पास धन था दौलत थी संपत्ति थी तो मेरे पीछे मेरे मित्रों की सहयोगियों की रिश्तेदारों की कतार लगी रहती थी सभी लोग मेरे शुभ चिंतक थे।


 लेकिन मेरे ऊपर दुख आते ही वह सब पलट गए वह सब अब मेरे शत्रु बन चुके लेकिन तुम जिसे मैंने इतनी खरी खोटी सुनाई थी वही मेरे दुख में मेरा सहयोगी बना है तुम मेरे इस दुख में मेरे पहले मित्र हो मेरे पहले रिश्तेदार हो जिसने मुझ पर दया की है मैं तो अपने आप को बहुत बड़ा समझता था।


 लेकिन देखो इस वक्त की मार ने मुझे कहां से कहां पहुंचा दिया आज मैं इस बात को अच्छी तरह समझ चुका हूं कि धन से बड़ा कोई मित्र नहीं इतना कहकर उस लड़के ने भोजन किया और उसने पहली बार भोजन के सुख का आनंद उठाया उसके हाथ कांप रहे थे।

 वह जल्दी-जल्दी उस भोजन को समाप्त करना चाहता था जल्दी जल्दी उसे चबा लेना चाहता था और उसकी आंखों से झरझर आंसू भी बह रहे थे उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो आज से पहले ऐसा लजीज भोजन उसने आज तक ना किया हो भोजन करते वक्त जो अनुभव उसे प्राप्त हुआ ऐसा अनुभव उसे आज तक नहीं मिला था।



 तभी वह साधु से कहता है यह कैसा सुख है मैं इस दुख में भी इस भोजन के संतुष्टि का अनुभव कर पा रहा हूं तभी वह साधु कहते हैं जहां संतुष्टि होती है वहां सुख का अनुभव होता है लेकिन सावधान संतुष्टि बहुत खतरनाक भी होती है जब संतुष्टि हमारी आवश्यकताओं हमारी इच्छाओं से ऊपर उठ जाती है।


 तब यह दुख के दर्शन भी हमें कराती है आज जो भोजन तुम कर रहे हो ऐसा भोजन यदि तुम्हें पहले प्राप्त होता तो तुम इसे छूते तक नहीं लेकिन आज इसी भोजन को करके तुम्हें संतुष्टि मिल रही है लेकिन जब तुम्हारे पास धन था दौलत थी तब तुमने इससे भी अच्छा भोजन किया होगा।




 लेकिन तब तुम्हें संतुष्टि नहीं मिली होगी वह सुख प्राप्त नहीं हुआ होगा जो तुम आज अनुभव कर रहे हो लेकिन सावधान अगर ऐसा ही भोजन तुम्हें रोज मिलता रहे तो तुम और भी अच्छे भोजन की कामना करने लगोगे और इसी कामना की संतुष्टि के लिए तुम्हारे मन में दुख पैदा होगा और जब तुम अपने मन की इस कामना की संतुष्टि कर दोगे तो तुम्हें सुख भी प्राप्त होगा। 


 लेकिन यह सुख आएगा और चला जाएगा और जब तुम्हारे जीवन में इसी प्रकार के भोजन हमेशा आते रहेंगे और जाते रहेंगे तो तुम किसी और कामना किसी और इच्छा की ओर आगे बढ़ने लगोगे तब तुम किसी और इच्छा की पूर्ति करना चाहोगे।


 तुम किसी और इच्छा की संतुष्टि करना चाहोगे और जब वह इच्छा पूरी नहीं होगी जब तुम्हें संतुष्टि नहीं मिलेगी तो तुम्हें दुख होगा तकलीफ होगी पीड़ा होगी और यह श्रृंखला ऐसे ही आगे बढ़ती चली जाएगी लेकिन जब तुम्हारे पास धन था दौलत थी।


 तब तुमने इससे भी अच्छा भोजन किया किया होगा लेकिन तब तुम्हें संतुष्टि नहीं मिली होगी वह सुख प्राप्त नहीं हुआ होगा जो तुम आज अनुभव कर रहे हो लेकिन सावधान अगर ऐसा ही भोजन तुम्हें रोज मिलता रहे तो तुम और भी अच्छे भोजन की कामना करने लगोगे।


 और इसी कामना की संतुष्टि के लिए तुम्हारे मन में दुख पैदा होगा और जब तुम अपने मन की इस कामना की संतुष्टि कर दोगे तो तुम्हें सुख भी प्राप्त होगा लेकिन यह सुख आएगा और चला जाएगा और जब तुम्हारे जीवन में इसी प्रकार के भोजन हमेशा आते रहेंगे और जाते रहेंगे तो तुम किसी और कामना किसी और इच्छा की ओर आगे बढ़ने लगोगे।


 तब तुम किसी और इच्छा की पूर्ति करना चाहोगे तुम किसी और इच्छा की संतुष्टि करना चाहोगे और जब वह इच्छा पूरी नहीं होगी जब तुम्हें संतुष्टि नहीं मिलेगी तो तुम्हें दुख होगा तकलीफ होगी पीड़ा होगी और यह श्रंखला ऐसे ही आगे बढ़ती चली जाएगी।


 तुम हमेशा सुख के पीछे भागोगे लेकिन दुख तुम्हारे पीछे यूं ही भागता रहेगा तुम सुख को पकड़ पकड़ना चाहोगे तो तुम्हें पकड़ना चाहेगा इसी प्रकार यह प्रक्रिया यूं ही निरंतर चलती रहेगी तभी साधु अपने थैले में से एक सोने की थैली निकालकर उस लड़के के हाथ पर रख देता है तभी वह लड़का उस साधु से कहता है।


 हे महाराज आपके पास इतना धन कहां से आया आप तो एक वैरागी हैं तभी वह साधु उस लड़के से कहता है कि यह धन तुम्हारा ही है उस दिन जब तुम मुझे खरी खोटी सुनाकर अपने घर की ओर आगे बढ़ रहे थे तभी तुम्हारी जेब से यह सोने के सिक्कों से भरा हुआ थैला नीचे गिर पड़ा।


 और मैंने इसे उठाकर अपने पास रख लिया यह सोचकर कि जब तुम मुझे मिलोगी तब मैं इसे तुम्हें लौटा दूंगा लेकिन उस दिन के बाद से आज तुम मुझे मिले हो इसलिए मैं तुम्हें इसे लौटा रहा हूं ले लो यह तुम्हारा ही है इस पर वह लड़का कहता है।


 हे महाराज इसी धन के लिए तो मुझे मेरे मित्रों ने मेरे सहयोगियों ने यहां तक कि मेरे रिश्तेदारों ने भी मुझे धोखा दिया लेकिन आप वह पहले शख्स हैं जो मुझे य यह धन लौटा रहे हैं और वहीं पर जो मैंने धन जो कर्ज मैंने अपने मित्रों अपने सहयोगी अपने रिश्तेदारों को दिया था।


 अपने बुरे समय पर जब मैंने उनसे मांगा तो उन सभी ने वह धन देने से मुझे मना कर दिया कईयों ने तो मुझे खरी खोटी सुनाकर अपने घर से ढक्कन करर निकलवा दिया लेकिन आप आप महाराज वह पहले शख्स हैं जिन्होंने मेरे इस बुरे समय पर मेरा साथ दिया है मेरा धन मुझे वापस लौटाया है।


 मैं आप की सहायता के लिए आपका आभारी हूं मैं इस धन से अपना व्यापार फिर से शुरू करूंगा और इस व्यापार को नई ऊंचाइयों तक ले जाऊंगा तभी वह साधु उस लड़के से कहते हैं हमें कोई दुख नहीं देता बल्कि दुख के कारण तो हम स्वयं ही होते हैं।



 हम स्वयं ही खुद को धोखा देते हैं सुख में हम भ्रमित रहते हैं हमें यह पता नहीं चलता कि हम सही कर रहे हैं या गलत और इसी प्रकार हम एक माया जाल में फंसते चले जाते हैं क्योंकि सुख में हम अपनी आंखें बंद करके बस उस सुख का आनंद लेते हैं और हम किसी चीज की तरफ ध्यान नहीं देना चाहते।



 हम नहीं जानना चाहते कि जीवन मीठा है तो कड़वा भी है सच है तो झूठा भी है सुख में हम केवल अपने अहंकार को बढ़ावा देते हैं अहंकार व्यक्ति को गलत रास्ते पर ले जाता है और उसे विनाश की ओर धकेल है व्यक्ति को अंधा बना देता है इसी के विपरीत अगर हम देखें तो विनम्रता एक ऐसा गुण है जो व्यक्ति को सफलता की ओर ले जाता है।


 यह उसे दूसरों से सीखने में मदद करता है और उसे अपनी कमियों को स्वीकार करने की शक्ति देता है अहंकार का त्याग कर विनम्रता को अपनाना ही सफलता और खुशी का मार्ग है विनम्रता हमें अपनी कमियों को स्वीकार करने और उनमें सुधार करने की शक्ति देती है यह हमें दूसरों से सीखने और उनके अनुभवों से लाभ उठाने के लिए प्रेरित करता है।



 विनम्र व्यक्ति दूसरों का सम्मान करता है और उनके विचारों को महत्व देता है जिससे वह एक अच्छा मित्र और सहयोगी बन जाता है और वह कभी भी किसी को नीचा नहीं दिखाता है इसलिए अहंकार से बचना चाहिए और अपने अंदर विनम्रता का भाव रखना चाहिए अहंकार और विनम्रता के बीच का अंतर एक कहानी के माध्यम से समझा जा सकता है।


 तभी इस पर वह लड़का कहता है आप ठीक कहते हैं जब मेरे पास धन दौलत थी संपत्ति थी तब मैं अंधा हो चुका था मैं किसी चीज पर ध्यान नहीं देता था मैंने उसे अपने इन दोनों हाथों से लुटाया है और आज जब वह मेरे पास नहीं है है तब मुझे उसके जाने का एहसास हो रहा है और अब जब कि मैं इन दुखों से जूं रहा हूं।


 तब जाकर मेरी आंखें खुली हैं विनम्रता हमें अपनी कमियों को स्वीकार करने और उनमें सुधार करने की शक्ति देती है यह हमें दूसरों से सीखने और उनके अनुभवों से लाभ उठाने के लिए प्रेरित करता है विनम्र व्यक्ति दूसरों का सम्मान करता है और उनके विचारों को महत्व देता है।


 जिससे वह एक अच्छा मित्र और सहयोगी बन जाता है और वह कभी भी किसी को नीचा नहीं दिखाता है इसलिए अहंकार से बचना चाहिए और अपने अंदर विनम्रता का भाव रखना चाहिए अहंकार और विनम्रता के बीच का अंतर तुम्हारी कहानी के माध्यम से समझा जा सकता है तभी इस पर वह लड़का कहता है।

Motivational kahani in hindi 



 आप ठीक कहते हैं जब मेरे पास धन दौलत थी संपत्ति थी तब मैं अंधा हो चुका था मैं किसी चीज पर ध्यान नहीं देता था मैंने उसे अपने इन दोनों हाथों से लुटाया है और आज जब वह मेरे पास नहीं है तब मुझे उसके जाने का एहसास हो रहा है और अब जब कि मैं इन दुखों से झूं रहा हू। 


 तब जाकर मेरी आंखें खुली हैं तभी मैं यह भी जान पाया कि कौन मेरे साथ है और कौन मेरे खिलाफ और यह जो ज्ञान दुख द्वारा मुझे प्राप्त हुआ है यह ज्ञान मैं हमेशा अपने साथ रखूंगा अपने सुख में भी अब से अपनी आंखें खुली रखूंगा।


 इस कहानी से हमें यह सबक मिलता है कि अहंकार हमें विनाश की ओर ले जाता है जबकि विनम्रता हमें सफलता और खुशी की ओर ले जाती है इसलिए हमें हमेशा विनम्र रहना चाहिए और दूसरों से सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए विनम्रता ही सफलता का मार्ग है।

 दोस्तों उम्मीद है कि आपने आज की इस कहानी से जरूर कुछ ना कुछ सीखा होगा तो इस कहानी को लाइक और अपने दोस्तों के साथ शेयर करना ना भूलें और हमें ऐसे ही सपोर्ट करने के लिए चैनल को सब्सक्राइब बटन को जरूर दबा दें तो चलिए मिलते हैं अगले कहानी में,



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